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________________ अनेकान्त [वर्ष ३, किरण १ और मिथ्या हैं । यही दृष्टि थी जिसके आवेशमें .की दृष्टि है । इसी दृष्टि द्वारा निष्पक्ष हो, साहसऋग्वेद १-१६४-४६ के निर्माता ऋषिको वैदिक- पूर्वक विविध अनुभवोंका यथाविधि और यथाकालीन विभिन्न देवताओंमें एकताका भान जग स्थान समन्वय करते हुए सत्यकी ऐसी विश्वव्यापी उठा और उसकी हृदयतन्त्रीसे एकं सत् विप्राः बहुधा सर्वग्राहक धारणा बनानी चाहिये जो देश, काल वदन्ति' का राग बह निकला । यह दृष्टि ही वेदान्त- और स्थितिसे अविच्छिन्न हो, प्रत्यक्ष-परोक्ष, तथा दर्शनकी दृष्टि है । . तर्क अनुमान किसी भी प्रमाणसे कभी बाधित न विशेष-ज्ञेयज्ञानकी दृष्टि वा भेददृष्टि (Ana- हो, युक्तिसंगत हो और समस्त अनुभवोंकी सत्यांlytic-view) से देखने पर, वस्तु अनेक विशेष शरूप संतोषजनक व्याख्या कर सके। भावोंकी बनी हुई प्रतीत होती है। प्रत्येक भाव क्या सत्यनिरीक्षणकी इतनी ही दृष्टियाँ हैं भिन्न स्वरूप वाला, भिन्न संज्ञावाला दिखाई पड़ता जिनका कि ऊपर विवेचन किया गया है ? नहीं, है। जितना जितना विश्लेषण किया जाय, उतना यहाँ तो केवल तत्त्ववेत्ताओंकी कुछ दृष्टियोंकी ही उतना विशेष भावमेंसे अवान्तर विशेष और रूपरेखा दी गई है । वरना व्यक्तित्व, काल, अवान्तर विशेषमेंसे अवान्तर विशेष निकलते परिस्थिति और प्रयोजनकी अपेक्षा सत्यग्रहणकी निकलते चले जाते हैं, जिसका कोई अन्त नहीं है। दृष्टियाँ असंख्यात प्रकार की हैं । और दृष्टिअनुरूप यही दृष्टि वैज्ञानिकोंकी दृष्टि है। यह दृष्टि ही वि- ही भिन्न भिन्न प्रकारसे सत्यग्रहण होने के कारण भिन्न विज्ञानोंकी सृष्टिका कारण है। सत्य सम्बन्धी धारणायें भी असंख्यात हो जाती समन्वयकारि-ज्ञानकी दृष्टि (Philosophi- हैं । cal View ) से देखने पर वस्तु सामान्य विशेष, तत्त्वजोंकी मान्यताओं में विकार । अनुभावक-अनुभव्य, (subjective and obje- संसारके तत्त्वज्ञोंकी धारणाओंमें सबसे बड़ा ctive), भेद्य-अभेद्य, नियमित-अनियमित, नित्य- दोष यही है कि किसीने एक दृष्टिको, किसीने अनित्य, एक-अनेक, सत-असत्, तत-अतत् आदि दूसरी दृष्टिको, किसीने दो वा अधिक दृष्टियोंको अनेक सहवर्ती प्रतिद्वन्दोंकी बनी हुई एक सुव्यव- सम्पूर्ण सत्य मानकर अन्य समस्तदृष्टियोंका बहिस्थित, संकलनात्मक, परन्तु अभेद्य सत्ता दिखाई ष्कार कर दिया है । यह बहिष्कार ही उनकी सबपड़ती है,जो सर्वदा सर्व ओरप्रसारित,विस्तृत और से बड़ी कमजोरी और निःस्साहस है । इस बहिउद्भव हो रही है ।। यह दृष्टि ही 'वीरशासन' कारने ही अनेक विरोधाभासि-दर्शनोंको जन्म * Das Gupta--A History of Indian Philosophy, P. 177.. उपर्युक्त दृष्टि के लिये देखें धर्मद्रव्य अर्थात् Ether के बहिष्कारने (अ) B. Russil-The Analysis of Matter. * (अ) गोम्मटसार-कर्मकाण्ड, ८६४ ___London 1927. Chap-XXIII तत्त्वार्थसूत्र १-३३ पर की हुई राजवार्तिक टीका (आ) हरिवंशपुराण, २८-६२ (इ) न्यायावतार, २६ की सिद्धर्षिगणि कृत टीका । गोम्मटसार-कर्मकाण्ड ८१५ . (था)
SR No.527156
Book TitleAnekant 1939 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, USA_Jain Digest, & USA
File Size18 MB
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