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________________ 100 अनेकान्त " [वर्ष 3, किरण 1 मन्दिरों, विद्यालयों तथा शिक्षा संस्थाओंमें संग्रह रामजी प्रेमी, बम्बईने प्रो० साहबको इस ग्रन्थके करनेके योग्य है। सम्पादनके लिये प्रेरित किया, उसीका फल प्रन्थका (2) वराङ्गचरित-मूल लेखक, श्री जटासिंह यह प्रथम संस्करण है और यह उक्त ग्रन्थमालाका नन्दिाचार्य / सम्पादक, प्रोफेसर ए० एन० 40 वां ग्रन्थ है। . उपाध्याय, राजाराम कालिज कोल्हापुर / प्रकाशक, ग्रन्थका विषय उसके नामसे ही स्पष्ट है। पं० नाथूराम प्रेमी, मंत्री 'माणिकचन्द्र दिगम्बर यह 'वराङ्ग' नामके एक राजकुमारकी कथा है, जो जैनग्रंथमाला, हीराबाग, बम्बई 4 / साइज़, अपनी विमाता मृगसेनाके डाह एवं षडयन्त्रके 20430, 16 पेजी। पृष्ठ संख्या, सब मिलाकर कारण अनेक संकटोंमें गुजरता हुआ और 497 / मूल्य, सजिल्द 3) रु०। अपनी योग्यतासे उन्हें पार करता हुआ अन्तको ___ यह प्राचीन संस्कृत ग्रंथ भी उन लुप्तप्राय जैन- अपना नया स्वतन्त्र राज्य स्थापित करने में समर्थ ग्रन्थों में से है जिनके उद्धारार्थ-आजसे दस वर्ष हुआ और जिसने बादको जैनमुनि होकर भगवान पहले अनेकान्तमें समन्तभद्राश्रम-विज्ञप्तियोंके नेमिनाथके तीर्थमें मुक्ति लाभ किया और इस द्वारा आन्दोलन उठाया गया था और पारितोषिक तरह अपना उत्कर्ष सिद्ध करके पूर्ण स्वाधीनताभी निकाला गया था। इसके उद्धारका सारा श्रेय मय सिद्धपदकी प्राप्ति की। कथा रोचक है; 31 इसके सुयोग्य सम्पादक प्रोफेसर ए० एन० (आदि. सोंमें वर्णित है और प्राचीन साहित्यका एक नाथ नेमिनाथ ) उपाध्यायजीको है, जिन्होंने सब अच्छा नमूना प्रस्तुत करती है। से पहले कोल्हापुरके लक्ष्मीसेन भट्टारकके मठसे प्रो०साहबने इस ग्रन्थका सम्पादन बड़ी योग्यइसकी एक पुरानी ताडपत्रीय प्रतिका खोज निकाला ता तथा परिश्रमके साथ किया है / आप सम्पादन और उसका परिचय पूनाके 'एनल्स आफ दि कलामें खूब सिद्धहस्त हैं,इससे पहले प्रवचनसार भाण्डारकर आरियटल रिसर्च इन्स्टिट चट' नामक और परमात्मप्रकाश | नामक ग्रन्थका उत्तम अंग्रेजी पत्रकी 14 वीं जिल्द के अंक नं० 102 में सम्पादन करके अच्छी ख्याति लाभ कर चुके हैं। प्रकट किया। साथही यह भी सप्रमाण प्रकट किया बम्बई यूनिवर्सिटीने आपके उत्तम सम्पादनके कि इस वरांगचरितके रचयिता आचार्य जटासिंह कारण ही इस ग्रन्थ के प्रकाशन में 250 रु० की नन्दी हैं, जिन्हें जटिलमुनि भी कहते हैं और जो सहायता प्रदान की है, प्रवचनसारकी प्रस्तावना ई० सन् 778 से पहले हुए हैं-श्रीजिनसेनाचार्य पर भी वह पहले 250 रु० पुरस्कारमें दे चुकी है कृत हरिवंशपुराणके एक उल्लेख परसे इसे जो पद्म- और हालमें उसने प्रो० साहबको डाक्टर आफ चरितके कर्ता रविषेणाचार्यकी कृति समझ लिया लिटरेचर (डी० लिट०) की उपाधि से विभूषित गया था वह उस उल्लेखको ठीक न समझनेको इस ग्रन्थकी विस्तृत समालोचनाके लिये देखो, गलतीका परिणाम था / उक्त परिचयको पाकर जैन सिद्धान्त भास्करमें प्रकाशित 'प्रवचनसारका नया माणिकचन्द ग्रन्थमालाके सुयोग्य मंत्री पं० नाथू. संस्करण' नामक लेख /
SR No.527156
Book TitleAnekant 1939 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, USA_Jain Digest, & USA
File Size18 MB
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