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________________ सिद्धाचलम् और विश्व जन्म जन्म का साथ है ऐ विश्व संस्कृति नमस्कार इसके उत्प्रेरक नमस्कार तुम सिद्ध और आचार्य हो तुमको मेरा हो नमस्कार ! भारत माँ का लाल है हमारा तुम्हारा-तुम्हारा सुशील मुनि के नाम से जाने हैं ये जग सारा जहां बिन मांस नहीं भोजन होता जहाँ मदिरा का झरना बहता है लौकिक आनन्दों में डूबा जन जहां निरर्थक सोता है सन १९२६, १५ जून निराला भारत माँ की कुख से जन्मा पुन प्यारा पिता सुनहरा सींहजी देते देखो दान अपारा तुमने जब वीणा स्वर छेडे वे छोड़ चले रस्ते टेढे जिज्ञासु बन आये सम्मुख प्रभो! तारो अपने भी बेडे देश विदेश में जाते पाठ अहिंसा पढाते महावीर की वाणी को जन जन को समझाते छोड के हिंसा चलो अहिंसा नारा है निराला लो मन्त्र गुंजाओ पर्वत पर होते जाओ तुम शुद्धोतर एक तीर्थ बनाता हूँ ऐसा तुम बढो सिद्ध की राहों पर विश्व धर्म सम्मेलन जिन्होंने कई कराये महामन्त्र नवकार के चमत्कार दिखलाये साक्षातकार में चमत्कार से अपना नाम कमाया अमेरिका में जाये पंच तीर्थ बनाये पालीताणा सिखरजी गीरनारजी बनाये बाहुबली संग राजगीरी को मिलन है निराला वह हुआ, नहीं जो संभावित रह गये सभी के दुग विस्मित स्फटिक शिलाओं से उभरा, एक, धवल रुप जो विश्व विदित दै एकता का नारा मानव धमर हमारा नहीं दिगम्बर नहीं श्वेताम्बर नहीं स्थानक वाला महावीर का संतान है हम सब यही हमारा नारा टूटे भम, मोह, और संशय झरती अमृत वाणी संचय विज्ञान भौतिकी देशों में ओंकार, अहिंसा, अपरिग्रह शान्ति - सरोवर प्यारा, सुशील मुनि है प्यारा पंचरंगी झण्डे के नीचे सबको चलाना हाथ जोड कर वन्दन होवे सुशील मुनि को हमारा प्रेरक सुशील मुस्काता है। आचार्य बनो समझाता है अरिहन्त वही बन पाता है जहाँ गहन धर्म जिज्ञासा है - शांतिलाल मालक अहिंसक होगा यह सकल विश्व समझेगा क्या है उसे ईष्ट गूंजेगी मन्त्रों की वाणी कहता है सिद्धाचलम् तीर्थ -कुसुम गुप्त Page 52 June 1994 Jain Digest Jain Education Intemational 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527055
Book TitleJain Digest 1994 06 Special Issue
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFederation of JAINA
PublisherUSA Federation of JAINA
Publication Year1994
Total Pages64
LanguageEnglish
ClassificationMagazine, USA_Jain Digest, & USA
File Size12 MB
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