________________
साधना सिद्धि बन गई
आचार्य श्री के जीवन के कण-कण में साधना की गरिमा प्रस्फुटित है। जून मास की चिलचिलाती दोपहरी, सूर्य के प्रखर तेज से तप्त धरणी, तप्त शिलाएं। ऐस में एक साधक तपस्या में लीन अविचल, अटल, अडोल। छःछः घण्टे ध्यान में स्थित। दिल्ली के लक्ष्मी नारायण मन्दिर (बिरला मन्दिर) के पृष्ठ भाग में स्थित अरावलियाँ और कानन का जर्रा-जरा आचार्य जी की साधना का साक्षी है और साक्षी है महरौली स्थित दादावाडी का पावन तीर्थ, जहां महीनों रह कर कठोर साधना की। अंततः मुनिजी ने जो अमृत प्राप्त किया, उसको
विश्व कल्याण हेतु शंकर बन मुक्त भाव से वितरित किया।
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जैन धर्म का प्रसार
१७ जुन सन् १९७५ को विदेश-यान्ना का कान्तिकारी साहसिक कदम उठा कर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भगवान महावीर के दिव्य संदेशों को विश्व के १५ राषट्रों में व्यापक रूप से प्रसारित किया।
अर्ह योग, ध्वनि-विज्ञान, नवकार-विज्ञान, आरोग्य-विज्ञान, रंग-विज्ञान, मंत्र-विज्ञान, ध्यान साधना के द्वारा नैतिक और आध्यात्मिक चेतना का सूत्रपात किया। विदेश-यान्नाओं के अल्पकाल में ही कनाडा में अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना ही अमेरिका, कनाडा, मैक्सिको, इंग्लैंड, फानस, जर्मनी, स्वीडन, जापान, हांगकांग नार्वे, हालैंड, डेनमार्क, इटली, थालैंड, बेल्जियम आदि देशों में कई मुख्य आश्रम और उनकी शाखाओं की स्थापना।
इन देशों में लाखों का जीवन तो शाकाहारी बना ही, साथ ही नवकार और अर्ह योग की स्थापना और ध्यान-साधना की ओर भी उनकी प्रवृति में आश्चर्यजनक वृद्धि।
अन्तर्राष्ट्रीय जैन कागेस
समूचे विश्व के जैनों समन्वय, सदभावना, और एकता के सूत्र में आबद्ध करना, साम्पदायातीत जैनों का संगठन, एक मंच पर सब लोगों को लाना, इस संस्था का प्रमुख कार्य है। लोगों द्वारा किये गए समाज सेवा के कार्य, स्थापत्य कला के अनुपम उदाहरण, साहित्य का सृजन और देशान्तरों में मंदिरों का निर्माण, अहिंसा के लिये सम्पूर्ण शक्ति को लगाना, ये ही वर्ल्ड जैन कांग्रेस के मुख्य उद्येश्य हैं।
Page 44
June 1994 Jain Digest
Jain Education Intermational 2010_02
Jain Education Interational 2010_02
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org