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________________ सेठजी के कामों को देखकर आश्चर्य होता है कि एक साधारण पढ़े-लिखे धनिक पर नये समय का और उसके अनुसार काम करने का इतना अधिक प्रभाव कैसे पड़ गया। जिन कामों में जैनसमाज का कोई भी धनिक खर्च करने को तैयार नहीं हो सकता, उन कामों में सेठजी ने बड़े उत्साह से द्रव्य खर्च किया। दिगम्बर जैन-डायरेक्टरी-एक ऐसा ही काम था। इसमें सेठजी ने लगभग 15 हजार रुपये लगाये। दूसरे धनिक नहीं समझ सकते कि डायरेक्टरी क्या चीज है और उससे जैनसमाज को क्या लाभ होगा। विलायत एक "जैन-छात्रावास" बनवाने की ओर भी सेठजी का ध्यान था परन्तु वह पूरा न हो सका। धनवैभव का मद या अभिमान सेठजी को छू तक न गया था। इस विषय में आप जैन-समाज में अद्वितीय थे। गरीब-से-गरीब ग्रामीण जैनी से भी आप बड़ी प्रसन्नता से मिलते थे-उससे बातचीत करते थे और उसकी तथा उसके ग्राम की सब हालात जान लेते थे। आप शाम के दो घंटे प्राय: इसी कार्य में व्यतीत करते थे। सैकड़ों कोसों की दूरी से आये हुए यात्री जिस तरह आपकी कीर्तिकहानियाँ सुना करते थे, उसी तरह प्रत्यक्ष में भी पाकर और मुंह से चार शब्द सुनकर अपने को कृतकृत्य समझने लगते थे। आपका व्यवहार इतना सरल और अभिमान-रहित था कि देखकर आश्चर्य होता था। विलासिता और आरामतलबी धनिकों के प्रधान गुण हैं परन्तु ये दोनों बातें आप में न थी। आप बहुत ही सादगी से रहते थे और परिश्रम से प्रेम रखते थे। 63 वर्ष की उम्र तक आप सवेरे से लेकर रात 11 बजे तक काम में लगे रहते थे। आलस्य आपके पास खड़ा न होता था। परिश्रम से घृणा न होने के कारण ही आपका स्वास्थ्य बहुत अच्छा रहता था। आपकी शरीर-सम्पत्ति अंत तक अच्छी रही-शरीर से आप सदा सुखी रहे । सेठजी की दानवीरता प्रसिद्ध है। उसके विषय में यहाँ पर कुछ लिखने की जरूरत नहीं। अपने जीवन में उन्होंने लगभग पाँच लाख रुपयों का दान किया है, जो उनके जीवनचरित में प्रकाशित हो चुका है। उसके सिवाय अभी उनके स्वर्गवास के बाद मालूम हुआ कि सेठजी एक-दो लाख रुपये का बड़ा भारी दान और भी कर गये हैं, जिसकी बाकायदा रजिस्ट्री भी हो चुकी है। बम्बई में इस रकम की एक आलीशान इमारत है, जिसका किराया 1100 महीना वसूल होता है । यह द्रव्य उपदेशकभंडार, परीक्षालय, तीर्थरक्षा, छात्रवृत्तियाँ आदि उपयोगी कार्यों में लगाया जाएगा। इसका लगभग आधा अर्थात् पाँच सौ रुपया महीना विद्यार्थियों को मिलेगा। सेठजी के किन-किन गुणों का स्मरण किया जाए ? वे गुणों के आकार थे। उनके प्रत्येक गुण के विषय में बहुत कुछ लिखा जा सकता है। उनका जीवन, आदर्श जीवन था। यदि वह किसी सजीव कलम के द्वारा चित्रित किया जावे तो उसके द्वारा सैकड़ों पुरुष अपने जीवनों को आदर्श बनाने के लिए लालायित हो उठे। यदि अच्छे कामों का अच्छा फल मिलता है तो इसमें सन्देह नहीं कि दानवीर सेठजी की आत्मा स्वर्गीय सुखों को प्राप्त करेगी और अपने इस जन्म के लगाये हुए पुण्यविटपों को फलते-फूलते हुए देखकर निरन्तर तृप्तिलाभ करने का अवसर पायेंगी। -जैन हितैषी, अंक 8, सन् 1914 से साभार, श्री सतीश जैन के सौजन्य से प्राप्त * कुन्दकुन्द भारती 18-बी, स्पेशल इंस्टीटयूशनल एरिया, महरौली रोड़, नईदिल्ली-110067 अर्हत् वचन, 24 (1), 2012 85
SR No.526592
Book TitleArhat Vachan 2012 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2012
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size3 MB
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