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________________ 4. हम विज्ञान जगत को एक नये प्रकार के जीवन के सिद्धांत को दे सकेंगे। उसमें बहुत सी अन्य जानकारियां उजागर होगी। 5. मानव को अपने महत्वपूर्ण संसाधन के प्रति नजरिया बदलने में मदद मिलेगी। 6. वैज्ञानिक अवधारणाओं में बहुत महत्वपूर्ण परिवर्तन होगा तथा पर्यावरण संरक्षण में विशिष्ट औजार उपलब्ध होंगे। द) अब हम जानने को एक प्रयास करते हैं कि अभी तक की वैज्ञानिक शोध से कैसे सिद्ध होता है कि जल भी जीव होता है ? i) प्राचीन काल की मान्यताएं - हमारे ऋषि मुनियों ने खोज करके हजारों वर्ष पूर्व बताया था कि जल भी एक प्रकार का वैसा ही जीव है, जैसा कि वनस्पति (पेड़-पौधे) का जीव होता है सर जगदीशचन्द्र बोस ने करीब 100 वर्ष पूर्व अपने यंत्रों द्वारा विज्ञान जगत को बताया था कि पेड़-पौधों में संवेदनाएँ होती है तथा वे एक प्रकार के जीव होते हैं। तब से इन पर बहुत तीव्र गति से खोज होने लगी। सर बोस ने तो पत्थरों में भी जीव की कल्पना की थी, लेकिन उन पर कोई प्रयोग करने के पहले ही उनका देहान्त हो गया था। अतः पता नहीं है कि उन्होंने किस प्रकार के कोषाणुओं की उनमें कल्पना अपने मन में संजोयी थी। हो सकता है कि वह किसी भौतिक रवों का अविकसित कोषाणु रूप रहा हो । ii) शास्त्रानुसार जल के गुण हमारे शास्त्रों में जलजीव के बारे में भी काफी विस्तृत वर्णन और चिन्तन मिलता है। जैन ग्रंथों मैं तो यहां तक बताया गया है कि पानी को उबालने से या उसमें राख आदि घोलने से वह पानी निर्जीव (अचित्त) बन जाता है। फिर यही पानी कुछ घंटों बाद, अलग-अलग ऋतुओं में अलग-अलग अवधि में, जिसको कालमर्यादा कहते हैं, वापिस जीव (सचित) बन जाता है। यह सब विज्ञान को एक आश्चर्य लगता है तथा युवा लोगों को प्रेरित करता है कि वे इन तथ्यों के राज की वैज्ञानिकता को उजागर करने का प्रयास करे । iii) पानी पर वैज्ञानिक शोध - 1. जल की काया (शरीर) का वैज्ञानिक ढांचा इसकी वैज्ञानिकता को समझने के लिए पिछले वर्षों में पानी के अणुओं की बनावट का गहन अध्ययन किया गया। पानी के आवेश धारी अणु, पंजभुजी और षटभुजी द्विआयामी ढांचा बनाने में सक्षम है। इसके अलावा पानी में घुली हुई चित्र जल जीव की काया , हवा भी ऑक्सीजन मूलक (आयन) के रूप में पाई जाती है। इन मूलकों की मौजूदगी में, पानी का पंजभुजी और षटभुजी रवा जुड़कर एक त्रिआयामी ढांचा बनाता है, जो कमरे के तापक्रम पर भी स्थायी रहता है। यह इकाई रूप आकार अपनी केन्द्रित ऊर्जा से सहजातिक अणुओं को आकर्षित करके, 18-60 इकाइयों का एक जालीनुमा बेलनाकार (बकीबॉल जैसा ) कोषाणु बनाता है। इनकी अपनी जुड़ाव की शक्ति काफी मजबूत होती है। यह पाइपनुमा आकार करीब 0.1 म्यू (काफी सूक्ष्म) लम्बा होता है। यह पाईपनुमा नेनो ट्यूब उबालने पर टूट जाती है। इस आकार में, इसकी सतही ऊर्जा अल्पत्तम होती है। (संलग्न चित्र ) 2. जीवित रहने की प्रक्रिया और परिकल्पना - यह ढांचा / कोषाणु अपनी विद्युत ऊर्जा से लगातार समाविष्ट रहता है। फिर सोखी हुई हवा अर्हत् वचन, 24 (1), 2012 27
SR No.526592
Book TitleArhat Vachan 2012 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2012
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size3 MB
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