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अर्हत् वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर
टिप्पणी- 2
जैन ज्योतिष की मौलिकता
■ आचार्य अशोक सहजानन्द *
इक्कीसवीं शती में जब अंतरिक्ष में अनुसंधान के लिए अत्यधिक समुन्नत उपकरण उपयोग में लाये जा रहे है और हमारे चिर-परिचित ग्रहों के सम्बंध में अब तक अज्ञात नयी-नयी खोजें की जा रही है, तब क्या हम प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों में वर्णित इन ग्रहों के विवरणों और तथाकथित प्रभावों को किस सीमा तक मार्ने ?
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हम सभी जानते हैं कि हमारी पृथ्वी सूर्य परिवार अर्थात् सौर मंडल का अंग है। इस सौर मण्डल के केन्द्र में सूर्य है और पृथ्वी सहित अन्य हमारे ज्ञात ग्रह अर्थात् मंगल, बुध, गुरु, शुक्र एवं शनि अपनी-अपनी कक्षा में सूर्य की परिक्रमा कर रहे हैं। चन्द्रमा पृथ्वी का एक उपग्रह है जो अपनी परिक्रमा करता हुआ, उसके साथ-साथ सूर्य की परिक्रमा कर रहा हैं। चन्द्रमा जैसे उपग्रह अन्य ग्रहों के भी हैं, जैसे गुरु और शनि की परिक्रमा करने वाले अनेक ग्रह हैं।'
भारतीय ज्योतिष में राहु-केतु सहित नवग्रहों की चर्चा है अर्थात् सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु एवं केतु राहु-केतु पार्थिव ग्रह नहीं, काल्पनिक हैं। इसलिए इन्हें छाया ग्रह कहा जाता है। इधर पाश्चात्य खगोलविदों ने तीन और ग्रहों की खोज की है। ये है नेपच्यून, यूरेनस और प्लूटो ।
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अब यह भी एक सर्वमान्य तथ्य है कि अंतरिक्ष में हमारे सौर मंडल की भांति अनेक सौर मंडल हैं, असंख्य सूर्य हैं। इसी तरह हमारा सौर मंडल जिस आकाश गंगा या गैलेक्सी में स्थित है, वैसी आकाश गंगाएं भी असंख्य हैं, इन्हें निहारिकाएं नाम दिया गया है।
निहरि कहते हैं रूई के फोये के समान गिरते हुए बर्फ को । आकाश में जो इस प्रकार के बर्फ या धुंए या हल्के बादल के समान फैले हुए धब्बे दिखायी पड़ते हैं, उन्हें निहारिका कहते हैं। इनकी संख्या भी लाखों में है। ज्योतिषियों का अनुमान है कि कम से कम एक अरब निहारिकाएं तो हैं ही और प्रत्येक निहारिका में लगभग इतने ही तारे अर्थात् सूर्य है।'
ज्योतिष एक सम्पूर्ण विज्ञान
सूर्य और चंद्र का प्राणी जगत एवं वनस्पति जगत पर पड़ने वाले प्रभाव से सभी परिचित हैं। सूर्य से ही धरती पर जीवन है पर वैज्ञानिकों ने शोध कर पता लगाया है कि यदि चंद्रमा या गुरु ग्रह न होता तो भी सूर्य के होने के बावजूद धरती पर आज जैसा जीवन नहीं होता। यदि चंद्रमा न होता तो शायद मनुष्य का वर्तमान रूप भी न होता, धरती पर सारा जीवन जलमय ही होता अर्थात् पृथ्वी पर थलचर की बजाय जलचर ही होते अर्थात् पानी में रहने वाले जीव। इसी प्रकार यदि गुरु अपने गुरुत्वाकर्षण से अंतरिक्ष के शीतकाय उल्का पिंडों को अपनी ओर नहीं खींचता तो शायद वे पृथ्वी से टकराते रहते और उस स्थिति में आज जैसा जीवन होता, इसमें संदेह है। डाइनासोरों आदि का विनाश भी ऐसे ही एक भीमकाय उल्का पिंड के पृथ्वी से टकराने से हुआ था।
यद्यपि आज ज्योतिष शास्त्र की वैज्ञानिकता, उसकी उपयोगिता और इक्कीसवीं शती में उसकी सार्थकता को लेकर पक्ष-विपक्ष में काफी बहस होती रहती है। कुछ लोगों के लिए वह महज एक अंधविश्वास है तो कुछ लोग उसकी सहायता के बिना जीवन के अनेक महत्वपूर्ण निर्णय, विवाह संबंध, अर्हत् वचन, 23 (4), 2011
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