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काका सा. की एक विशेषता थी कि वे व्यापक विचार-विमर्श के उपरान्त कोई कार्य हस्तगत करते थे एवं एक बार हस्तगत कर लेने के बाद उसकी सफलता हेतु हर संभव प्रयास करते थे। न लक्ष्य से हटते थे एवं न उसकी उपेक्षा करते थे। उन्होंने अपना लक्ष्य कभी नहीं बदला । चरणबद्ध तरीके से किये कुछ कार्य निम्नवत हैं1988 - सित. 88 में तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा के करकमलों से अर्हत्वचन
शोध त्रैमासिकी के प्रवेशांक का फिक्की सभागार-दिल्ली में विमोचन ।
अद्यतन 92 अंक प्रकाशित, शताधिक पत्रिकाएं प्रत्यावर्तन में सतत् प्राप्त । 1989 - बहरीन वि. वि. के गणित के प्राध्यापक प्रो. श्रीधर बाजपेयी (वर्तमान स्वामी
श्रीधरानन्द) के व्याख्यान से कुन्दकुन्द व्याख्यानमाला का प्रारंभ ।
अब तक 18 व्याख्यान सम्पन्न । 1990 - अर्हत् वचन में एक वर्ष में प्रकाशित 3 सर्वश्रेष्ठ आलेखों के लेखकों को अर्हत् वचन
पुरस्कार से सम्मानित करना। प्रथम पुरस्कार - 5000/द्वितीय पुरस्कार - 3000/तृतीय पुरस्कार - 2000/योजना अद्यतन गतिमान है। जापान से गणित के प्राध्यापक प्रो. योशिमाशा मिचिवाकी एवं कु. मुत्सुको मिचिवाकी
का 09.01.90 को आगमन 1991 - कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ पुस्तकालय का 24.03.91 को शुभारम्भ ।
काका सा. द्वारा व्यक्तिगत संग्रह से प्रदत्त 65 पुस्तकों से प्रारम्भ इस पुस्तकालय में आज 32000 से अधिक पुस्तकें, 731 पांडुलिपियां एवं सहस्राधिक पत्रिकायें संग्रहीत
1992 - विद्वानों को पारस्परिक विचार विमर्श का मंच देने हेतु जैन विद्या संगोष्ठी की श्रृंखला
प्रारम्भ । ज्ञानपीठ द्वारा प्रथम संगोष्ठी 12-13 जनवरी - 92 को।
अब तक 16 जैन विद्या संगोष्ठियों एवं अन्य अनेक राष्ट्रीय संगोष्ठियों का आयोजन। 1993 - कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ पुरस्कार की स्थापना एवं समर्पण ।
पुरस्कार राशि - रुपए 25000/-, प्रथम पुरस्कार से सम्मानित स्व. पं. नाथूलाल जैन शास्त्री अपनी कृति प्रतिष्ठा प्रदीय हेतु सम्मानित । योजना वर्तमान में भी प्रचलित । अद्यतन 17 विद्वान सम्मानित । जैन विद्याओं के शोध एवं उन्नयन हेतु 2 मई 1993 को तत्कालीन कुलपति प्रो. उमरावसिंह चौधरी की अध्यक्षता में बैठक । इस बैठक के बाद से शोध कार्यों को गति देना प्रारम्भ। अब तक इस केन्द्र के माध्यम से 01 D. Litt., 30 Ph.D. तथा 34 MPhil. / M.A. / M.Sc. शोध प्रबन्ध तैयार किये जा चुके हैं।
अर्हत् वचन, 23 (4),2011