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________________ कृति ET वर्ष - 19, अंक - 3,जुलाई-सितम्बर 2007, 87-88 पुस्तक समीक्षा : जैन आगम में दर्शन लेखका : समणी मंगलप्रज्ञा, कुलपति-जैन विश्व भारती संस्थान, लाडनूँ (राज.) प्रकाशक : जैन विश्व भारती, लाडनूँ - 341306 संस्करण एवं वर्ष : प्रथम, जून 2005 मूल्य : रू.125%D00 पृष्ठ संख्या : XII + 330 समीक्षक : डॉ. अनुपम जैन, प्राध्यापक-गणित, शासकीय होलकर ज्ञान महाविद्यालय, इन्दौर समीक्ष्य शोधपूर्ण कृति आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी की सुशिष्या एवं जैन दर्शन की गहन अध्येता समणी मंगलप्रज्ञाजी का शोध प्रबन्ध है। मूलत: 'जैन आगमों के दार्शनिक चिन्तन का वैशिष्ट्य' शीर्षक से लिखा गया यह Ph.D. शोध प्रबन्ध ही परिवर्तित संक्षिप्त शीर्षक से प्रकाशित है। इसमें निम्नांकित 7 अध्याय हैं। विषय प्रवेश आगम साहित्य की रूपरेखा तत्व मीमांसा आत्म मीमांसा कर्म मीमांसा आचार मीमांसा आगमों में प्राप्त जैनेतर दर्शन लेखिका ने व्यापक दृष्टि अपनाते हुए सम्प्रदायातीत विचार व्यक्त किये हैं विषय प्रवेश (प्र.21) में ही वे लिखती हैं 'कतिपय कारणों से जैन धर्म बहुत समय पूर्व ही दो मुख्य सम्प्रदायों में विभक्त हो गया था। वह विभाजन आज भी यथावत है। इस विभाजन का एक दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम यह हुआ कि पूरा जैन वांगमय भी दो भागों में विभक्त हो गया।' प्रथम अध्याय में आपने आगम साहित्य का तथ्य परक, तटस्थ एवं विस्तृत परिचय दिया है। पृ. 31 पर आप लिखती हैं कि 'श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार ग्यारह अंग आंशिक रूप में उपलब्ध हैं। बारहवां अंग दृष्टिवाद सर्वथा लुप्त हो गया है। दिगम्बर परम्परा के अनुसार ग्यारह अंग सर्वथा लुप्त हो गए, बारहवें दृष्टिवाद का कुछ अंश बचा है, दोनों परम्पराओं का आगम उपलब्धि की दृष्टि से समन्वय करके देखें तो प्राप्त होता है कि बारह ही अंगों का कुछ न कुछ भाग वर्तमान में भी उपलब्ध है। यह जैन परम्परा के लिये गौरव की बात है।' वास्तव में श्वेताम्बर परम्परा का वर्तमान उपलब्ध आगम साहित्य मुख्यतः पाँचवी वाचना का प्रतिफल है। उस समय का संकलन वैचारिक मतभेद होने के कारण परिवर्तित, परिवर्द्धित रूप में ही उपलब्ध है। मतभेद के बिन्दुओं के अलावा अन्य बहुत सी सामग्री तो मूल रूप में ही उपलब्ध है जो भारतीय संस्कृति की अमूल्य निधि है। अर्हत् वचन, 19 (3), 2007 87 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526575
Book TitleArhat Vachan 2007 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2007
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size7 MB
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