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श्री फलस्तुवरस्तिक्तो ग्राही रूक्षोऽग्निपित्तकृत। वातश्लेष्महरो बल्यो लघुरूष्णश्च पाचनः ।। 13|| भा.प्र.नि., पृ.-274 बेल कषाय तथा तिक्त रस युक्त, ग्राही, रूक्ष, अग्निवर्धक, पित्तकारक, वातकारक, वातकफनाशक, बलकारक, लघु, उष्णवीर्य तथा पाचक है।
11- भगवान श्रेयांसनाथ
द्विसंवत्सरमानेन छाद्मस्थये गतवत्यसौ।। मुनिर्मनोहरोद्याने तुम्बुरद्रमसंश्रयः ।।5 1।। उत्तर पुराण, पृ.-82 इस प्रकार छद्मस्थ अवस्था के दो वर्ष बीत जाने पर एक दिन महामुनि श्रेयांसनाथ मनोहर नामक उद्यान में दो दिन के उपवास का नियम लेकर तुम्बुर वृक्ष के नीचे बैठे।
तुम्बुरुः सौरभः सौरो वनजः सानुजोऽन्धकः ।। 113|| भा.प्र.नि., पृ.-56 तुम्बुरु, सौरभ, सौर, वनज, सानुज और अन्धक ये तुम्बुरु फल के नाम हैं । लेटिन नाम Zanthoxylum alatum Roxb. Fam. Rutaceae है।
यह हिमालय की गरम तराइयों में जम्मू से भूटान तक, खासिया पहाड़, टेहरी गढ़वाल, नागपहाड, विजिगापट्टम और गंजाम के पहाड़ों पर पाया जाता है। इसका वृक्ष झाड़ीदार या क्वचित छोटे वृक्षवत रहता है।
तम्बरुप्रथितं तिक्तं कटूपाकेऽपि तत्कट। रूक्षोष्ण दीपनं तीक्ष्णं रूच्यं लघुविदाहि च ।।114||
वातश्लेष्माक्षिकर्णोष्ठिशिरोरुग्गुरुता कृमीन। कुष्ठशूलारूचिश्वासप्लीहकृच्छ्राणि नाशयेत ।।115।। भा.प्र.नि., पृ.-56 तुम्बुरु फल तिक्त तथा कटुरस युक्त है और विपाक में भी कटुरस युक्त है। यह रूक्ष, उष्णवीर्य, अग्निदीपक, तीक्ष्ण, रुचिजनक, पाक में लघु और विदाही होता है । यह वात, श्लेष्म, नेत्र, कर्ण, ओष्ठ तथा शिर के रोगों को एवं गुरुता (शरीर का भारीपन), कृमि, कुष्ठ, शूल, अरुचि, श्वास, प्लीहा और मूत्रकृच्छ इन सब रोगों को भी दूर करता है।
12 - भगवान वासुपूज्य शिबिकां देवसंरूढामारुह्य पृथिवीपतिः। वने मनोहरोद्याने चतुर्थोपोषितं वहन् ।।37।।
कदम्ब वृक्षमूलस्थः सोपवासोऽप्राहके। माद्यज्योत्स्नाद्वितीयायां विशाखःऽभवञ्जिनः ।।42।। उत्तर पुराण, पृ.-90 भगवान ने मनोहर नामक उद्यान में कदम्बर वृक्ष के नीचे बैठ कर उपवास का नियम लिया।
कदम्ब कदम्बः प्रियको नीपो वृत्तपुष्पो हलिप्रियः । भा.प्र.नि..प्र.-495 कदम्ब, प्रियक,नीप, वृत्तपुष्प और हलिप्रिय ये सब संस्कृत नाम हैं। लेटिन नाम Anthocephalus Cadamba miq. Fam. Rubiaceae $1 अर्हत् वचन, 19 (3), 2007
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