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________________ अर्हत् वच कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर आख्या जैन पुस्तकालय एवं शोध संस्थान राष्ट्रीय संगोष्ठी, सोनागिर 13-14 सितम्बर 2003 ■ डॉ. अनुपम जैन * जैन धर्म के इतिहास में पहली बार सराकोद्धारक, राष्ट्र संत शाकाहार प्रवर्तक, उपाध्यायरत्न, परमपूज्य 108 श्री ज्ञानसागरजी महाराज के सान्निध्य में श्रुत संवर्द्धन संस्थान, मेरठ तथा संस्कृति संरक्षण संस्थान, दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान तथा डॉ. संजीव सराफ, सागर के संयोजकत्व में 'जैन पुस्तकालय एवं शोध संस्थान' विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी श्री सोनागिर दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र संरक्षिणी कमेटी के सहयोग से 13-14 सितम्बर 2003 को सम्पन्न हुई। इसमें देश-विदेश के लगभग 60 प्रतिभागियों ने पाँच सत्रों में भाग लिया। विभिन्न सत्रों का संक्षिप्त विवरण निम्नवत् है दि. 13.9.03, मध्यान्ह 2.00 बजे, उद्घाटन एवं प्रथम सत्र अध्यक्षता : श्री डालचन्द जैन पूर्व सांसद व अध्यक्ष सोनागिर सिद्ध क्षेत्र संरक्षिणी कमेटी मुख्य अतिथि 4. श्री राजेन्द्र भारती, विधायक, दतिया विशिष्ट अतिथि : डॉ. अनुपम जैन, मानद सचिव कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर एवं श्री प्रमोद जैन, अध्यक्ष - सोसायटी फार सराक वेलफेअर एण्ड डेवलपमेन्ट, सरधना मंगलाचरण : ब्र. अनीता दीदी व ब्र. मंजुला दीदी संघस्थ वक्ता एवं विषय 1. डॉ. अनुपम जैन, इन्दौर जैन शोध संस्थानों की भूमिका 2. प्रो. शुभचन्द्र, मैसूर, कर्नाटक में जैन पुस्तकालय / शोध संस्थान 3. प्रो. एस. ए. भुवनेन्द्रकुमार, कनाड़ा, नार्थ अमेरिका में जैन शोध संस्थान 4. श्री गोपीनाथ कालमोर, खण्डवा, जैन पुस्तकालय / शोध संस्थान की भूमिका 5. श्री के. कृष्णराव, सागर (वि.वि.), इन्टरनेट पर जैन समाज 6. श्री नरेश पाठक, पन्ना, म. प्र. में जैन धर्म का विकास 7. श्री गुलाबचन्द जैन ( पटना वाले), सागर, मूर्ति एवं शास्त्र संरक्षण संगोष्ठी का शुभारम्भ ब्र. अनीता दीदी व ब्र. मंजुला दीदी के मंगलाचरण के साथ श्री डालचन्द जैन ( पूर्व सांसद व कोषाध्यक्ष म. प्र. कांग्रेस कमेटी) के दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। उन्होंने चन्द्रप्रभु भगवान के चित्र का अनावरण भी किया। इस अवसर पर वीर निकलंक के सम्पादक श्री रमेश कासलीवाल ने भजन प्रस्तुत किया। श्री डालचन्द जैन ने कहा कि जैन ग्रन्थों को पूजने की परम्परा प्राचीन समय से चली आ रही है। जरूरत है इसे जन-जन तक पहुँचाने की। उन्होंने विद्वानों से निवेदन किया कि वर्तमान में हमारे जितने भी ग्रन्थ हैं उनका सूचीकरण किया जाये । कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ द्वारा पूरे मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र एवं अन्य प्रान्तों में जो शास्त्रों का सूचीकरण किया जा रहा है वह प्रशंसनीय है। Jain Education International मुख्य अतिथि के रूप में दतिया के विधायक श्री राजेन्द्र भारती ने कहा कि जैन धर्म के सबसे बड़े सूत्र अहिंसा के बल पर भारत को आजादी मिली। यह अहिंसा की सबसे बड़ी विजय है। ऐसा विश्व इतिहास में और कहीं देखने को नहीं मिलता है। अर्हत् वचन, 15 (4), 2003 For Private & Personal Use Only 93 www.jainelibrary.org
SR No.526560
Book TitleArhat Vachan 2003 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2003
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size11 MB
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