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________________ 5. अतिथि भोजनालय उपलब्ध हो, इस दृष्टि से भोजनशाला सुचारू रूप से दानदाताओं के सहयोग से चल रही है। 6. प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन शोध संस्थान द्वारा समाज में धार्मिक एवं नैतिक सदाचरण के प्रचार प्रसार हेतु प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन स्थानीय एवं अन्य नगरों में वृहद स्तर पर किया जाता है। पूजन प्रशिक्षण शिविर एवं प्राकृत भाषा प्रशिक्षण शिविरों के माध्यम से संस्थान की एक अलग पहचान बनती जा रही है। 7. हस्तलिखित ग्रन्थ प्रदर्शनी संस्थान द्वारा देश के प्रमुख शहरों में इस प्रदर्शनी का आयोजन इस उद्देश्य से किया जा चुका है कि युवा पीढ़ी एवं समाज हमारी अमूल्य धरोहर हस्तलिखित ग्रन्थ, ताड़पत्र ग्रन्थों का परिचय प्राप्त कर इसके संरक्षण हेतु आगे आयें। - शोध संस्थान में आगत त्यागी प्रतियों, विद्वानों एवं अतिथियों को शुद्ध भोजन 8. अनेकान्त पाण्डुलिपि संरक्षण केन्द्र संस्थान ने वर्ष 2002 में इस केन्द्र को स्थापित किया है। इसके माध्यम से नष्ट हो रही दुर्लभ पाण्डुलिपियों को विभिन्न प्रकार के रासायनिक पदार्थों एवं वैज्ञानिक तरीके से सुरक्षित किया जाता है। 9 विभिन्न स्थानों पर अनेकान्त वाचनालयों की स्थापना भगवान महावीर स्वामी की 2600 वीं जन्म जयन्ती के पावन प्रसंग पर 26 स्थानों पर अनेकान्त वाचनालयों की स्थापना करने का उपक्रम संस्थान द्वारा किया जा चुका है। अभी तक 17 स्थानों पर ये वाचनालय प्रारम्भ किये जा चुके हैं। संस्थान का आगामी रूप श्रुतधाम के रूप में संस्थान का आगामी स्वरूप श्रुतोपासकों के लिये निकट भविष्य में देखने को मिलेगा। वर्ष 2002 में बीना शहर के निकट बीना खुरई मार्ग पर 9 एकड़ भूमि क्रय कर इसके निर्माण का कार्य प्रारम्भ किया जा चुका है। कुएं का निर्माण एवं समस्त भूमि की कम्पाउण्ड वाल ( चारदीवारी) का कार्य पूर्ण किया जा चुका है। वीर शासन जयंती 2003 को नंदनवन का भी शुभारम्भ कर सम्पूर्ण परिसर को हरे भरे फलदार वृक्षों से समन्वित किया जा रहा है। इस भूमि पर अनेक प्रकार की योजनाएँ उदार दानदाताओं के आर्थिक सहयोग से सम्पन्न की जानी हैं। जिनमें से कतिपय योजनाएँ निम्न प्रकार है - 1. अनेकान्त प्रज्ञाश्रम / समाधि साधना केन्द्र पूर्वक मरण के इच्छुक ज्ञान पिपासा शांत केन्द्र शीघ्र ही निकट भविष्य में प्रारम्भ होगा। 7. छात्रावास 8. धर्मशाला आदि 82 2. अनुयोग मन्दिर - शोध संस्थान के समस्त ग्रन्थों को विनय पूर्वक विराजमान करने के लिये श्रुतवेदिका के साथ इस मन्दिर का निर्माण होगा। यह मन्दिर भी अपने आप में एक अनूठा मन्दिर होगा। - Jain Education International - 3. तीर्थंकर उद्यान तीर्थंकरों ने जिन वृक्षों के नीचे केवलज्ञान प्राप्त किया है, उन वृक्षों को इस उद्यान के अन्तर्गत विकसित किया जायेगा। प्रत्येक वृक्ष के नीचे ध्यान कुटी रहेगी, साथ ही प्रत्येक तीर्थंकर के चरण चिन्ह एवं तीर्थकर का परिचय भी रहेगा। 4. वर्णी संग्रहालय / दुर्लभ पाण्डुलिपि प्रदर्शनी कक्ष 5. जिनालय 6. देशना मण्डप - सेवा निवृत्त प्रज्ञापुरुष, त्यागी - व्रती भाई अथवा समाध करते हुए केन्द्र में रहकर साधना कर सकते हैं। यह * संस्थापक अनेकान्त ज्ञान मन्दिर, बीना (सागर) म.प्र. अर्हत् वचन 15 ( 4 ), 2003 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526560
Book TitleArhat Vachan 2003 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2003
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size11 MB
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