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________________ अर्हत वचन (कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर) पुस्तक समीक्षा एक महत्वपूर्ण दस्तावेज म और उसके पिता का निकाल पृष्ठ संख्या नाम : जैन इतिहास संकलन/सम्पादन : श्री सूरजमल मूलचन्द खासगीवाला, भिवंडी जैन प्रकाशक : श्री सूरजमल मूलचन्द खासगीवाला, इतिहास 320, गोकुल नगर, आदर्श सोसायटी, ए विंग, पहला माला, फ्लैट नं. 7, माचार्य और समानुजमनिया सरित भिवंडी-421302 जिला ठाणे फोन : 255884. प्रकाशन वर्ष/संस्करण : 2003 ई./प्रथम : 72 मूल्य : रु. 40.00 समीक्षक : प्रो. अनुपम जैन, स. प्राध्यापक - गणित, होलकर स्वशासी विज्ञान महाविद्यालय, इन्दौर -452017 इतिहास एक जीवन्त विषय है। विशेषत: प्राचीनकाल के इतिहास के सन्दर्भ में नित नवीन तथ्य प्राप्त होते रहते हैं। हर नई सूचना तथ्यों के विश्लेषण एवं विश्रृंखलित कड़ियों को जोड़ने में न्यूनाधिक सहायक होती हैं। श्री सूरजमल मूलचन्दजी खासगीवाला इतिहास एवं तत्वज्ञान के प्रेमी वरिष्ठ अध्येता हैं। जैन तत्वसंग्रह (2000) एवं जैन शब्दार्थ कोश (2002) के बाद यह उनकी तीसरी कृति 2003 में प्रकाश में आई है। इस कृति में जैन ग्रन्थों एवं उनके रचयिता आचार्यों के काल के बारे में कालक्रमानुसार जानकारी संकलित की गई है। यद्यपि यह सत्य है कि अनेक ग्रन्थों एवं उनके रचनाकारों का कालनिर्धारण आज भी शेष है किन्तु वर्तमान में उपलब्ध विभिन्न मतों में से सर्वाधिक युक्तसंगत मत को चयनित कर लेखक ने सरल, सहज एवं बोधगम्य रूप में सुन्दर रीति से प्रस्तुत किया है। लेखक ने इस लघु कृति में जैन इतिहास के क्षेत्र में गागर में सागर भरा है। कालक्रमानुसार प्रत्येक कालावधि में हुए आचार्य एवं उनके ग्रन्थों के संकलन के बाद अनेक प्रकार की वर्गीकृत सूचियों यथा विशिष्ट ग्रन्थों का विवरण, द्वादशांग जिनवाणी का परिचय, जैनदर्शन के बहुचर्चित विषय - 'निश्चय एवं व्यवहार नय' में भेद आदि देकर पुस्तक को पठनीय एवं संग्रहणीय बना दिया है। लेखक ने ग्रन्थ की प्रस्तावना में लिखा है कि 'बीता हुआ काल इतिहास बनकर भविष्य की पीढ़ी के लिये उन्नत मार्ग प्रशस्त कर दीप स्तम्भ का कार्य करता है। जैनधर्म के अनेकान्त, स्याद्वाद, अहिंसा, सत्य ये शाश्वत मूल्य हैं जो हमेशा प्राणिमात्र को शांति का मार्ग बता रहे हैं और बताते रहेंगे।' इन पंक्तियों में पुस्तक सृजन का उद्देश्य स्पष्टत: परिलक्षित होता है। इस पुस्तक के सृजन हेतु लेखक बधाई के पात्र हैं। पुस्तक को प्रत्येक जिन मन्दिर, सरस्वती भंडार, पुस्तकालय में रखा जाना चाहिये। मूल्य भी उचित है। 80 अर्हत् वचन, 15 (4), 2003 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526560
Book TitleArhat Vachan 2003 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2003
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size11 MB
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