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________________ वर्ष - 15, अंक - 4, 2003, 17 - 20 1 अर्हत् वचन कैलाला या ((जार पचन.) कैलाश पूजा या क्षेत्र पूजा ही लिंङ्ग पूजा है कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर) -रामजीत जैन * सारांश तिब्बी भाषा में लिंग का अर्थ क्षेत्र या तीर्थ है। अत: लिंग पूजा का अर्थ तिब्बती भाषा में तीर्थ पूजा या क्षेत्र पूजा है। तिब्बत के लोगों में कैलाश पर्वत के प्रति बड़ी श्रद्धा है। वे इसकी 32 मील की परिक्रमा करते हैं। भगवान ऋषभदेव की निर्वाण भूमि होने के कारण कैलाश पर्वत परम पवित्र है। लेखक की राय में वर्तमान में प्रचलित शिव लिंग की पूजा कैलाश क्षेत्र की पूजा की ही एक प्रागैतिहासिक परम्परा है। सम्पादक तीर्थ शब्द क्षेत्र या क्षेत्रमंगल के अर्थ में बहु प्रचलित एवं रूढ़ है। तीर्थक्षेत्र न कहकर के केवल तीर्थ शब्द कहा जाये तो उससे तीर्थक्षेत्र या तीर्थ-- स्थान का आशय होता है। जैनों में चैत्य - वृक्षों की पूजा के साथ-साथ क्षेत्र मंगलरूप पूजा भी प्राचीन काल से प्रचलित है।' दिगम्बर जैन समाज में तीन प्रकार के तीर्थक्षेत्र प्रचलित हैं - सिद्धक्षेत्र (निर्वाणक्षेत्र), कल्याणक क्षेत्र और अतिशय क्षेत्र। निर्वाण क्षेत्र - जहाँ तीर्थंकरों या किन्हीं तपस्वी मुनिराज का निर्वाण हुआ हो। संसार में शास्त्रों का उपदेश, व्रत - चारित्र, तप आदि सभी कुछ निर्वाण प्राप्ति के लिये है। यही चरम और परम पुरुषार्थ है। अत: जिस स्थान पर निर्वाण होता है, उस स्थान पर इन्द्र और देव पूजा को आते हैं। निर्वाण क्षेत्रों का महत्व अधिक होता है। तीर्थंकरों के निर्वाणक्षेत्र कुल पाँच हैं - कैलाश, चम्पा, पावा, उर्जयन्त और सम्मेदशिखर। इन निर्वाण क्षेत्रों के अतिरिक्त अन्य मुनियों की निर्वाण भूमियाँ हैं। इन्हें सिद्धक्षेत्र भी कहते हैं। सम्मेदशिखर का एक विहंगम दृश्य * एडवोकेट, टकसाल गली, दानाओली, ग्वालियर -1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526560
Book TitleArhat Vachan 2003 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2003
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size11 MB
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