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________________ - अर्हत् वचन, वर्ष 15 अंक जनवरी - जून 2003 प्राप्त हुआ। प्रस्तुत विशेषांक अत्यन्त उपादेय है। अनुसंधानकर्ता तथा अभ्यासक कर्ता को यह संकलन गागर में सागर जैसा है। इसी तरह कोई एक विषय लेकर 'अर्हत वचन' का वार्षिक विशेषांक प्रकाशित करें। ■ डॉ. दिपक म. तुपकर, सावंतवाडी - 416510 आपके द्वारा प्रेषित अर्हत् वचन का नया अंक प्राप्त हुआ। इसमें विगत चौदह वर्षों के शैक्षणिक कार्यों और प्रकाशनों की बहुत उपयोगी जानकारी आपने प्रदान की है। कुनदकुन्द ज्ञानपीठ निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसित होता रहे, मेरी ओर से यही मंगल कामना है। 10.09.03 ■ प्रो. प्रेमसुमन जैन, उदयपुर आपके द्वारा प्रेषित 'अर्हत् वचन' का वर्ष 15 अंक 12 (जन जून 2003) प्राप्त हुआ। इस संयुक्तांक का आद्योपान्त अवलोकन करने से इस अंक की उपयोगिता का अहसास स्वतः हो जाता है। अर्हत् वचन की दिगत चतुर्दश वर्षीय यात्रा का सांगोपांग विवरण विभिन्न आयामों में वर्गीकृत करते हुए जिस प्रकार प्रस्तुत किया गया है वह सम्पादक के श्रमसाध्य एवं समय साध्य प्रयास का सुपरिणाम है। तदर्थ निश्चय ही वे बधाई के पात्र हैं । विभिन्न कोणों से सूची का निर्माण करना सम्पादक के विलक्षण बुद्धि वैशिष्ट्य की ओर इंगित करता है पाठक जिस किसी भी रूप में 'अर्हत् वचन' के चतुर्दश वर्षीय क्रियाकलाप की जानकारी प्राप्त करना चाहे वह उसे सहज रूप में प्राप्त हो जायेगी। यह संयुक्तांक केवल सामान्य अंक नहीं है, अपितु यह एक ऐसा संग्रहणीय महत्त्वपूर्ण दस्तावेज है जो आद्योपान्त शोधपरक सामग्री से परिपूर्ण है अतः शोधार्थियों के लिये तो यह उपयोगी सामग्री सुलभ कराता ही है, सामान्य जिज्ञासु पाठकों के लिये भी इसमें अपेक्षित जानकारी युक्त भरपूर सामग्री विद्यमान है। इसके अतिरिक्त प्रस्तुत संयुक्तांक से ज्ञानपीठ की उन विभिन्न गतिविधियों, संगोष्ठियों, क्रिया कलापों एवं आयोजनों की जानकारी प्राप्त होती है जो विगत चौदह वर्षों में ज्ञानपीठ द्वारा संचालित / आयोजित हुई हैं। इससे निश्चय ही एक बहुत बड़े अभाव की पूर्ति हुई है। - ज्ञानपीठ की सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपलब्धि है निराबाध रूप से 'अर्हत् वचन' का प्रकाशन जिसमें सदैव उच्च स्तरीय शोधपूर्ण उत्कृष्ट लेखों का प्रकाशन हुआ है। इससे अल्प समय में ही पत्रिका ने अपना उच्च स्तर बना लिया और पत्रिका विद्वत् वर्ग एवं प्रबुद्धजनों में लोकप्रिय बन गई। अतः यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि वर्तमान में जैनधर्म के विभिन्न पक्षों विषयों पर शोधपूर्ण साम्रगी प्रस्तुत करने में यह पत्रिका अग्रणी रही है। सुन्दर छपाई, आकर्षक कलेवर एवं साजसज्जा के कारण भी पत्रिका ने जनमानस में अपनी पैठ बनाई है। वर्तमान में जैन समाज में विभिन्न स्थानों से प्रकाशित होने वाली पत्रिकाएँ तो अनेक है किन्तु उन सभी में अर्हत् वचन ने अपना जो स्थान बनाया है वह सबसे अलग और सर्वोपरि है। इस सब के मूल में है पत्रिका के सम्पादक डॉ. अनुपम जैन की श्रम साधना, अथक अनवरत प्रयास तथा जैन धर्म और उसके साहित्य के प्रति समर्पण भाव। अतः वे निश्चय ही साधुवाद के पात्र हैं। - ■ आचार्य राजकुमार जैन निदेशक जैनायुर्वेद अनुसंधान एवं चिकित्सा केन्द्र, इटारसी धन्यवाद। जैन विषयों में शोधकर्ताओं या अभिरूचि रखने विस्तृत शोध क्षेत्र से जुड़े हैं। कई स्वयंसेवी संस्थाओं अर्हत् वचन जनवरी जून 03 अंक मिला। बालों के लिये अंक निश्चय ही लाभदायक है। आप एवं दानवीरों का सहयोग प्राप्त है। किन्तु इधर शोध की चर्चा मखौल है। व्यक्तिगत आंतरिक अभिरूचि ही जोड़े हुए है। मैंने भी कई लेखों में जैन गणितज्ञों की देन का आश्रय लिया है। 25.09.03 ■ प्रो. गंगानन्दसिंह झा प्राध्यापक गणित, विनोदपुर कटिहार (बिहार) अर्हतु वचन का वर्गीकृत सूची विशेषांक मुझे तथा डॉ. सुनीता को प्राप्त हो गया है। आभार लें। चौदह वर्षों में प्रकाशित सामग्री के उपयोग के सन्दर्भ एक साथ उपलब्ध हो जाने से शोधकर्ता को विशेष सुविधा होगी । कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ का प्रगति विवरण भी आ गया। इससे संस्थान की प्रवृत्तियों की जानकारी सर्व सुलभ हो गई। 'सिरिभूवलय परियोजना' की प्रगति और पूरी योजना पर स्वतंत्र विवरण पुस्तिका का प्रकाशन ज्ञानपीठ से शीघ्र आना चाहिये। 1.10.03 18.10.03 122 Jain Education International - ■ प्रो. गोकुलचन्द्र जैन जैन बालाविश्राम, धमुपुरा, आरा- 802301 For Private & Personal Use Only अर्हत् वचन, 15 (4), 2003 www.jainelibrary.org
SR No.526560
Book TitleArhat Vachan 2003 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2003
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size11 MB
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