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कर्मठता की प्रतिमूर्ति - श्री कैलाशचन्दजी चौधरी
संत, विद्वान, श्रेष्ठि एवं सामाजिक कार्यकर्त्ता ये चारों मिलकर समाज को दिशा देते हैं। कोई भी बड़ा सामाजिक कार्य इन चारों के सम्मिलित प्रयासों के बिना शक्य नहीं है। पारम्परिक रूप से गुरुभक्त हमारी समाज संतों की प्रेरणा से प्रारंभ किये गये कार्यों में ही अपनी सहभागिता एवं समर्थन देती है। विद्वान किसी भी योजना के स्वरूप के युक्तियुक्तकरण एवं आगम की दृष्टि से उसकी सुसंगतता की पुष्टि करते हैं। विद्वान सम्यक सुझाव देकर योजना के स्वरूप को सुगठित, सार्थक एवं समाजोपयोगी बनाते हैं। क्रियान्वयन हेतु आर्थिक सहयोग उपलब्ध कराने का दायित्व श्रेष्ठियों का रहता है किन्तु उसको क्रियान्वित कौन करेगा? कोई भी योजना केवल आशीर्वाद, सुझाव एवं धन से नहीं चलती है। उसको चलाने वाला चाहिये। इसमें लगता है समय, शक्ति, मेघा एवं न्यूनाधिक अर्थ भी। किसी योजना की कार्ययोजना (Work Plan) तैयार करना, मानवीय संसाधनों को एकत्र करना उन्हें मानसिक रूप से योजना के विविध पक्षों के क्रियान्वयन हेतु सक्षम एवं सचेष्ट करना, योजना के क्रियान्वयन में आने वाली दिक्कतों की कल्पना कर उनके निराकरण हेतु तैयारी करना और इन सबसे ऊपर प्रत्येक कार्य में छिद्रान्वेषण कर उसकी निरर्थक, अनर्गल आलोचना करने वालों के व्यंगबाणों, आरोपों को धैर्यपूर्वक सुनते हुए अपने वैयक्तिक, पारिवारिक दायित्वों की अपेक्षा सामाजिक दायित्वों को वरीयता देना जिसका काम है उसे हम कहते हैं सामाजिक कार्यकर्त्ता । भगवान महावीर के 2500 वे निर्वाण महामहोत्सव प्रसंग पर धर्मचक्र का प्रवर्तन एवं महावीर ट्रस्ट की स्थापना, भगवान बाहुबली मूर्ति प्रतिष्ठापना सहस्राब्दि महोत्सव प्रसंग पर जनमंगल महाकलश का प्रवर्तन एवं गोम्मटेश जनकल्याण ट्रस्ट की स्थापना, भगवान ऋषभदेव की निर्वाण स्थली के प्रतीक रूप में अष्टापद बद्रीनाथ में भगवान आदिनाथ के चरण चिन्ह स्थापित कर निर्वाण स्थली का विकास एवं उसके प्रबन्धन तथा अन्य सम्बद्ध कार्यों हेतु आदिनाथ आध्यात्मिक अहिंसा फाउन्डेशन की स्थापना एवं संचालन में इन्दौर की जिस एक मात्र शख्सियत का नाम सामाजिक कार्यकर्त्ता के रूप में लिया जाता है एवं लिया जाना चाहिये उसका नाम है कैलाशचन्द्र चौधरी । इन्दौर के उदारमना, प्रज्ञावान श्रेष्ठि श्री देवकुमारसिंहजी कासलीवाल के साथ अभिन्न रूप से जुड़कर आपने अनेक योजनाओं को मूर्तरूप दिया है। यदि मैं यह कहूँ कि बीसवीं सदी के अंतिम 3 दशकों में दिगम्बर जैन समाज इन्दौर, दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी - मध्यांचल तथा सिद्धवरकूट, पावागिरि ऊन, बनेड़िया, मक्सी, बड़वानी आदि क्षेत्रों की व्यवस्थाओं एवं विकास में श्री चौधरीजी का योगदान अप्रतिम है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
15 नवम्बर 1929 को इन्दौर के प्रतिष्ठित श्री कंवरलाल बापूलाल चौधरी के परिवार में जन्में श्री कैलाशचन्दजी की माता का नाम श्रीमती मूलीबाई था। 12 वर्ष की अल्पायु में ही पिता का विछोह सहे श्री चौधरी का विवाह 23 जून 1946 को मालादेवीजी से हुआ। आपकी संताने श्री प्रदीप, श्री दिलीप एवं श्रीमती रानी आज अपने अपने क्षेत्रों में समाजसेवा में रत हैं। आपकी शिक्षा - दीक्षा तिलोकचन्द जैन हाईस्कूल - इन्दौर, होल्कर कॉलेज - इन्दौर एवं मध्य भारत हिन्दी साहित्य समिति - इन्दौर से सम्पन्न हुई। जहां से आपने इण्टर, बी.ए. एवं साहित्यरत्न की परीक्षायें उत्तीर्ण कीं ।
दिगम्बर जैन उदासीन आश्रम ट्रस्ट के ट्रस्टी के रूप में मुझे कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ की गतिविधियों के संयोजन में उनका मार्गदर्शन अनेकशः प्राप्त हुआ है। दीर्घकालिक योजनाओं के गुण दोषों पर विचार कर उनको चरणबद्ध रूप में क्रियान्वित करने की उनकी रीति ने मुझे बहुत प्रभावित किया है।
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अमृत महोत्सव ( इन्दौर 11 जनवरी 04 ) के पावन प्रसंग पर हम कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ परिवार की ओर से उनके स्वस्थ एवं सुदीर्घ जीवन की मंगल कामना करते हैं।
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अर्हत् वचन का यह 60 वाँ अंक सुधी पाठकों के हाथों में समर्पित है। कृपया अपने सुझावों से हमें अवश्य अवगत कराये। पत्रिका की षष्टिपूर्ति पर आश्रम ट्रस्ट के सभी माननीय ट्रस्टीगणों, सम्पादकीय परामर्श मंडल के सभी विद्वान सदस्यों एवं लेखकों का अभिनन्दन ।
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अर्हत् वचन,
डॉ. अनुपम जैन
15 (4), 2003
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