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________________ अर्हत्व कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर टिप्पणी तीर्थंकर महावीर स्वामी जैन धर्म के चौबीसवें अर्थात् वर्तमान अवसर्पिणी के अन्तिम तीर्थंकर हैं। उनका लांछन सिंह एवं केवलज्ञान वृक्ष साल है। शासन देवताओं के रूप में मातंग यक्ष और सिद्धायिका यक्षिणी तथा चामरधारी के रूप में मगध नरेश श्रेणिक अथवा बिम्बसार को इनकी प्रतिमाओं के साथ शिल्पांकित किया जाता है। कल्पसूत्र, उत्तरपुराण, त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र तथा वर्धमान चरित्र आदि ग्रन्थों में महावीर स्वामी के परिचय से संबंधित अनेक बातें लिखी गई हैं। ये कुण्डलपुर के महाराज सिद्धार्थ के पुत्र थे जिनकी राजधानी कुण्डलपुर कहलाती थी । जो वर्तमान में बिहार के नालंदा जिले में स्थित है। इनकी माता का नाम त्रिशला था। महावीर स्वामी को बाल्यकाल में वर्धमान कहा जाता था। गौतम इन्द्रभूति उनके प्रमुख शिष्य थे। केवल 72 वर्ष की आयु में ईसा पूर्व 527 के लगभग महावीर स्वामी ने निर्वाण प्राप्त किया। प्रस्तुत आलेख में रामपुरा जिला नीमच एवं उज्जैन से प्राप्त महावीर स्वामी की प्रतिमाओं का विवरण प्रस्तुत है - -8 तीर्थंकर महावीर की दो धातु प्रतिमाएँ ■ नरेशकुमार पाठक * रामपुरा की तीर्थंकर महावीर स्वामी की धातु प्रतिमा 2 तीर्थंकर महावीर स्वामी की यह प्रतिमा थाना रामपुरा जिला नीमच द्वारा जब्त की गई है एवं वर्तन में थाना रामपुरा में जमा है। मिश्रित धातु से निर्मित जैन तीर्थंकर महावीर स्वामी की यह प्रतिमा ध्यान मुद्रा में पद्मासनस्थ है। तीर्थकर महावीर कुंचित केश, वक्ष पर श्रीवत्स चिन्ह अंकित है। आगे के दोनों हाथ योग मुद्रा में हैं। पादपीठ पर दो सिंह सम्मुख मुद्रा में अंकित हैं। पादपीठ पर अन्य कोई ध्वज लांछन अथवा पार्श्वचर का अंकन नहीं है। प्रतिमा में उत्कृष्ट शिल्पांकन है। नुकीली नाक, धनुषाकार भौहें अर्द्धनिमीलित नेत्र हैं। यह प्रतिमा सांचे में ढालकर बनाई गई है। प्रतिमा का आकार 23 x 15 x 7 से.मी. है। शैलीगत आधार पर इसका काल लगभग 12 वीं 13 वीं सदी ईस्वी का प्रतीत होता है। प्रतिमा में पीछे की ओर ड्रिल मशीन से छिद्र किये हुए हैं। प्रतिमा पुरातत्वीय दृष्टि से महत्वपूर्ण है। उज्जैन की तीर्थंकर महावीर स्वामी प्रतिमा ३ यह प्रतिमा उज्जैन के जीवाजीगंज थाने में चोरी में पकड़ी गई थीं। चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी को ध्यानस्थ मुद्रा में पद्मासन में प्रदर्शित किया गया है। प्रतिमा के कुंचित केश, लम्ब कर्ण तथा वक्षस्थल पर श्रीवत्स चिह्न को आकर्षक मुद्रा में प्रदर्शित किया गया है। कला की दृष्टि से यह प्रतिमा लगभग 17 वीं शताब्दी ईस्वी की अनुमानित है। प्रतिमा पर उकेरा गया लांछन सिंह निर्माण के समय न उकेरते हुए बाद में उकेरा गया है क्योंकि प्रतिमा सांचे से ढालकर उकेरी गई है। प्रतिमा का वजन 5 किलो 240 ग्राम है। प्रतिमा अष्टधातु की बनी है, प्रतिमा का आकार 20 x 15.5 x 6.2 से.मी. है। मूर्ति की निर्माण योजना उच्च कोटि की है। सन्दर्भ अर्हत् वचन, 15 (3), 2003 1. मालवा की मूर्तिकला पाँच, इन्दौर संग्रहालय में संरक्षित जैन तथा बौद्ध प्रतिमाएँ एवं विविध कलाकृतियाँ, भोपाल, 1991, पृष्ठ 42. Jain Education International 2. इस प्रतिमा की जानकारी डॉ. रमेशचन्द्र यादव, सहायक संग्रहाध्यक्ष, यशोधर्मन संग्रहालय, मन्दसौर से प्राप्त हुई । 3. इस प्रतिमा की जानकारी डॉ. रमण सोलंकी, संग्रहालय प्रभारी, डॉ. वाकणकर पुरातत्व संघ संग्रहालय, उज्जैन से प्राप्त हुई। प्राप्त - 30.05.02 For Private & Personal Use Only * संग्रहाध्यक्ष केन्द्रीय संग्रहालय ए.बी. रोड़, इन्दौर - 452001 93 www.jainelibrary.org
SR No.526559
Book TitleArhat Vachan 2003 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2003
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size12 MB
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