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________________ वे शराब, अण्डा मांसाहार आदि का सेवन करते हैं ताकि उनका विवेक, मानवीयता व नैतिकता नष्ट हो जाये और वे इन्हें इन कुकर्मों को करने से रोके नहीं। 16 डॉ. धनंजय के अनुसार अधिक समय तक रहें तो उनके उष्णकटिबंधीय देश है यहाँ का बाजार में लाकर बेचने तक प्रायः अण्डे भीतर ही भीतर सड़ जाते हैं और रोगों की उत्पत्ति का कारण बनते हैं। जर्मनी के प्रो. एग्नबर्ग का निष्कर्ष है 'अण्डा 51- 83% कफ़ पैदा करता है। वह शरीर के पोषक तत्वों को असंतुलित कर देता है। 7 अमरीका के डॉ. इ. बी. एमारी तथा इंग्लैण्ड के डॉ. पुस्तक 'पोषण का नवीनतम ज्ञान और रोगियों की प्रकृति अण्डा मनुष्य के लिये विष है। 18 इंग्लैण्ड के डॉ. आर. जे. विलियम का निष्कर्ष है सम्भव है अण्डा खाने वाले आरम्भ में अधिक चुस्ती का अनुभव करें, किन्तु बाद में उन्हें हृदयरोग, ऐक्जीमा, लकवा जैसे भयानक रोगों का शिकार होना पड़ता है। " भारतीय चिकित्सक डॉ. योगेशकुमार अरोड़ा के अनुसार अण्डों में डीडीटी नामक विष पाया गया है जिससे पुरानी कब्ज, आंतों का कैन्सर, गठिया, बवासीर एवं अल्सर आदि रोग उत्पन्न होते हैं। अण्डे 40° सेंटिग्रेड से अधिक ताप पर 12 घंटे से भीतर सड़ने की क्रिया आरम्भ हो जाती है। भारत एक तापमान 30° से 40° तक रहता है। पॉल्ट्री फार्म से 24 से 28 घंटे तक का समय लगता है। प्रायः अधिकांश सन्दर्भ 1. डॉ. जगदीश प्रसाद, अर्हतु वचन, 14 (4) अक्टूबर दिसम्बर 2002, पृ. 45. 2. डॉ. ए. हेग, यूरिक एसिड ऐज ए फैक्टर इन दि कोज़ेशन ऑफ डिजीज, पंचम सस्करण, 1990, जे. एण्ड ए. चर्चिल, लन्दन । 3. दयानन्द सन्देश (मासिक), मार्च 1987 आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट, दिल्ली । 4. वही 5. देखें सन्दर्भ - 2 प्राप्त - 6. कल्याण (मासिक), मार्च 1987, गीता प्रेस, गोरखपुर (उ.प्र.) । 7. नई वैज्ञानिक खोज, सम्पा. केवलचन्द जैन, 1980-81, नवजीवन दयामंडल, दिल्ली । 8. ईश्वर उपासना- क्यों और कैसे?, डॉ. वेदप्रकाश, 1999, पृ. 190, वैदिक प्रकाशन, मेरठ । 9. पवमान (मासिक) देहरादून, मार्च 1997, पृ. 79 81. 10. अथर्ववेद, 8/6/23, टीका, क्षेमकरण त्रिवेदी, दयानन्द संस्थान, नई दिल्ली, 1974 संस्करण. 11. देखें सन्दर्भ 9 12. वही 13. वही 22.02.03 14. वही 15. पवमान (मासिक), देहरादून, दिसम्बर, 1999, पृ. 343. 16. वही, मई 1997, पृ. 159. 17. शाकाहार एक जीवन पद्धति, सम्पा. - डॉ. नीलम जैन, 1997 संस्करण, प्राच्य श्रमण भारती, मुजफ्फरनगर (उ.प्र.) 18. जीवन की आवश्यकता शाकाहार या मांसाहार ?, सम्पा. - श्री हेमचन्द जैन एवं श्री नरेन्द्रकुमार जैन, 1996 संस्करण, श्री वर्धमान जैन सेवक मण्डल, कैलाश नगर, दिल्ली. 19. वही + - अर्हत् वचन, 15 (3), 2003 Jain Education International इन्हों ने अपनी विश्वविख्यात में साफ साफ माना है कि - For Private & Personal Use Only 47 www.jainelibrary.org
SR No.526559
Book TitleArhat Vachan 2003 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2003
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size12 MB
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