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________________ हमारा परिचय (प्रश्न एक, उत्तर अनेक ) जब अन्य द्वारा हमसे यह पूछा जाये 'आप कौन हैं ? ', तब उत्तर निम्नांकित प्रकार के होंगे ( व्यावहारिक परिचय) मनुष्य, भारतीय, अमरीकी, पुत्र, मित्र, खिलाड़ी, व्यापारी, विद्वान, साधु, सुन्दर, धनवान (उचित विशेषणों एवं संबंधों सहित उक्त पदवियाँ) इसकी उपयोगिता क्या है ? लोक व्यवहार इस प्रकार के उत्तर से ही चलता है। सावधानी 1. आवश्यकतानुसार पर्याप्त एवं सही परिचय की समझ से व्यक्ति की प्रामाणिकता बनती है। 2. दुनिया के सामने हम कई रूपों में होते हैं किन्तु विभिन्न रूपों में रहते भी हमारे असली हुए या स्थायी परिचय को नहीं भूलना चाहिये। अर्हत् वचन, 15 (3), 2003 Jain Education International जब यह प्रश्न हम स्वयं ही स्वयं से पूछें तब उत्तर दो प्रकार के होंगे। ( बदलने वाला परिचय ) अभिमानी, लालची, क्रोधी, दु:खी, प्रसन्न, तनावग्रस्त, रागी, द्वेषी. इसकी उपयोगिता क्या है ? इस परिचय से हमें ज्ञात हो सकता है कि हमारी आत्मा का विकास कितना हुआ है। यदि तनावग्रस्त एवं दुःखी हैं तो इसका अर्थ यह हुआ कि आत्मा का विकास अल्प हुआ है। स्थायी परिचय को न समझने के कारण बदलते हुए परिचय को ही अपना स्थायी परिचय मान लेना दुःख एवं तनावों का कारण बनता है। सावधानी हम स्वयं हमारे सामने भी विभिन्न रूपों में बदलते हुए आते हैं। किन्तु इन सभी विभिन्न रूपों में रहते हुए भी हमारे असली या स्थायी परिचय को नहीं भूलना चाहिये। बदलते हुए रूपों को स्थायी मानने की भूल भी नहीं होना चाहिये । • For Private & Personal Use Only (स्थायी परिचय) सदैव एक जैसा हूँ, ज्ञान एवं चेतना लक्षण वाला हूँ। समस्त विकारों व वासनाओं से परे हूँ। समस्त अन्य पदार्थों से पृथक हूँ। इसकी उपयोगिता क्या है ? यह शाश्वत वास्तविकता है जिसकी स्वीकृति एवं समझ में सुख एवं अस्वीकृति में दुःख है। इस सुख या आनन्द की प्राप्ति हेतंच इन्द्रियों की 'आवश्यकता नहीं होती है। सावधानी जिस प्रकार निवास स्थान का स्थायी पता बताने हेतु मकान • का रंग बताना आवश्यक नहीं होता है, रंग का उल्लेख गौण किया जाता है, इसका अर्थ यह नहीं होता कि मकान रंगहीन है। इसी प्रकार आत्मा के स्थायी परिचय के आधार पर अपने को समझने हेतु बदलते हुए परिचय या लौकिक परिचय को गौण करने की आवश्यकता है, नकारने की आवश्यकता नहीं है। 41 www.jainelibrary.org
SR No.526559
Book TitleArhat Vachan 2003 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2003
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size12 MB
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