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==== अहत् वचन
22.07.03
■ आचार्य कनकनन्दी
अर्हत वचन का जनवरी जून 2003 अंक आज ही प्राप्त किया है इस उपयोगी अंक हेतु बहुत बहुत धन्यवाद। आपने अर्हत् वचन और कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ के योगदान को एक सूत्र में पिरोकर हम सभी के समक्ष रखा है कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ का कार्य सहज ही इतना है जितना विश्वविद्यालयों में भी संभव नहीं हो पा रहा है। कभी कभी बिखरे कार्य समझ में नहीं आते किन्तु जब वे ही एक साथ प्रस्तुत किये जाते हैं तब पता चलता है कि संस्था तथा विद्वान ने कितना किया समाज तथा विद्वान दोनों से सामंजस्य बिठाकर धैर्यपूर्वक कार्य करना पुरातनों से ही संभव नहीं है, नूतन भी कर सकते हैं। यह अंक अनुपम है। यह अंक ही क्या, आपकी हर प्रस्तुति अनुपम ही लगती है।
अर्हत् वचन, 15 (12) प्राप्त हुआ। की है। बहुत वैज्ञानिक ढंग से कम्प्यूटर की मदद से
23.07.03
24.07.03
मत अभिमत
आपके द्वारा प्रेषित अर्हत् वंचन प्राप्त हुआ। अर्हत् वचन को मैंने देखा जिससे मुझे ज्ञात हुआ कि अर्हत् वचन में प्रकाशित अनेक लेख मेरे द्वारा रचित अनेक साहित्यों के ऊपर जो मेरे सान्निध्य में सम्पन्न हुई पाँच राष्ट्रीय एवं एक अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में पढ़े गये शोध पत्र हैं। कुछ पुरस्कृत लेख भी मेरे साहित्य के ऊपर लिखे गये शोध पत्र हैं। इससे सिद्ध होता है कि हम जो कार्य कर रहे हैं उनमें से कुछ कार्य आप लोग भी कर रहे हैं। यह प्रसन्नता की बात है । परन्तु जो अभी तक अर्हत् वचन तीन महीने में एक अंक प्रकाशित हो रहा है उसे और भी शीघ्र अधिक संख्या में प्रकाशित करना चाहिये। इन्दौर जैसे नगर में और इतनी बड़ी संस्था की तरफ से यह कार्य होना सरल संभव है।
आपको हमारा बहुत बहुत आशीर्वाद
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■ प्राचार्य निहालचन्द जैन, बीना
अर्हत् वचन का संयुक्तांक 15 (1-2) कोरियर द्वारा अभी 2 घंटे पूर्व प्राप्त हुआ। अंक का मुखपृष्ठ झाना आकर्षक लगा कि शोध का अन्य कार्य स्थगित करके इस अंक को पढ़ने बैठ गया। दो घंटे के अनवरत आद्योपान्त अवलोकन - अध्ययन के पश्चात आपके आदेशानुसार यह पत्र लिख रहा हूँ। प्रस्तुत संयुक्तांक में समाहित सामग्री 'गागर में सागर' दीर्घकालीन श्रमसाध्य तथा प्रशंसनीय है। जैन धर्म से सम्बद्ध किसी भी धारा दिया के शोधार्थियों को अपने से सम्बन्धित क्षेत्र का एकत्रित ज्ञान एक ही स्थान पर उपलब्ध कराने में यह अंक समर्थ होने के कारण सन्दर्भ ग्रन्थ है, जिससे इसकी उपादेयता बढ़ गई है। प्रस्तुत अंक पठनीय तथा संकलनीय है।
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■ डॉ. कुमार अनेकान्त जैन व्याख्याता लालबहादुर शास्त्री केन्द्रीय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली 110067
अर्हत् वचन की अद्यतन सम्पूर्ण जानकारी (15 वर्ष की) संकलित संयोजित है । बधाई ।
आपने अर्हत् वचन का 15 ( 12 ), जनवरी - जून 2003 का विशेषांक प्रकाशित कर अध्येताओं और शोधार्थियों का बहुत उपकार किया है। यह अंक 'ALL IN ONE' है जो विगत 14 वर्षों की विषयवार जानकारी एक ही अंक में सुलभ करा रहा है। इस बहुश्रम साध्य और प्रातिभ प्रस्तुति के लिये हार्दिक बधाईयाँ स्वीकार करें।
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■ डॉ. जगदीश प्रसाद
115, कृष्णापुरी, मेरठ - 250002
■ डॉ. भागचन्द्र जैन 'भागेन्दु' निदेशक संस्कृत, प्राकृत तथा जैन विद्या अनुसंधान केन्द्र, दमोह
अर्हत् वचन, 15 (3), 2003
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