________________
से कुछ के प्रकाशन में श्री दिगम्बर जैन समाज चैन्नई तथा श्री प्रद्युम्न झवेरी, प्लेनो, टैक्सास (U.S.A.) का भी सहयोग रहा है। इनके अतिरिक्त निज- ज्ञान सागर शिक्षा कोश, सतना द्वारा प्रकाशित Jaina System in Nutshell' (1993) तथा पोत्दार धार्मिक एवं नारमार्थिक न्यास, टीकमगढ़ द्वारा प्रकाशित 'सर्वोदयी जैन तंत्र' का अंग्रेजी अनुवाद का कार्य भी कर रहे हैं जिसका एक खण्ड अब प्रकाशनाधीन है। इनके इन कार्यों से वर्तमान पीढ़ी तथा आने वाली पीढ़ी निश्चित रूप से लाभान्वित होगी।
डॉ. जैन को अनेकों पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। रींवा में 'जैन केन्द्र' की स्थापना तथा उसे बढ़ाने में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आप जैन विश्व भारती, लाडनूं से भी जुड़े हुए हैं। डॉ. जैन ने विदेशों में भ्रमण करने के पश्चात यह महसूस किया के वहाँ अधिकतर लोग या तो जैन धर्म के बारे में कुछ जानते ही नहीं हैं या फिर वहाँ जैन धर्म / दर्शन के बारे में अपूर्ण / त्रुटिपूर्ण जानकारी है। ये मानते हैं कि इसका मुख्य कारण विदेशों में जैन साहित्य का अभाव रहा है। इसी कारण आप प्रयत्नशील हैं कि विदेशों में जैन साहित्य को शीघ्र से शीघ्र पहुँचाया जाये और जहाँ तक हो वहाँ तक अंग्रेजी में साहित्य उपलब्ध कराया जाये ।
डॉ. जैन से विभिन्न विषयों पर मेरी घंटों चर्चा हुई है। कई मुद्दों पर हम एक दूसरे से असहमत भी हुए हैं। अन्य कई जैन विद्वान भी विभिन्न विषयों पर उनसे मतभेद रखते हैं। लेकिन इससे उनकी दृढ़ता एवं विद्वत्ता ही झलकती है। विभिन्न विषयों में क्रोनोलोजिकल आर्डर में जैन आगम में वर्णित सिद्धान्तों पर उनकी गहरी पकड़ है। आप अपनी बात को तर्क एवं प्रमाण के आधार पर प्रस्तुत करते हैं। जैन समाज को ऐसे अध्येता की विद्वत्ता एवं क्षमता का भरपूर लाभ उठाना चाहिये ।
हम डॉ. जैन के दीर्घायु की कामना करते हैं जिससे हम उनके ज्ञान का एवं अनुभवों का निरन्तर लाभ प्राप्त रहें ।
प्राप्त - 17.03.03
( हीरक जयन्ती 16 अप्रैल 2003 के अवसर पर कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ की ओर से हार्दिक बधाई । अर्हत् वचन के 15 (1-2), जनवरी - जून 03 अंक को पूर्व प्रकाशित सामग्री की वर्गीकृत सूचियों के विशेषांक के रूप में प्रकाशित किये जाने के कारण इस परिचय को विलम्ब से प्रकाशित किया जा रहा है।
सम्पादक)
106
Jain Education International
* प्रबन्धक - तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग बी - 26, सूर्यनारायण सोसायटी, साबरमती, अहमदाबाद- 380005
1
For Private & Personal Use Only
अर्हत् वचन, 15 (3), 2003
www.jainelibrary.org