SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खान-पान की भी सुव्यवस्था कर सकता है। शाकाहार सदा, सर्वथा ही अच्छा है, कारण कि आज के विविध वैज्ञानिक अनुसंधानों में भी जहाँ मांसाहार को विविध रोगों, यहाँ तक कि कैंसर आदि जैसे भयंकर रोगों का जनक बतलाया गया है, वहीं शाकाहार को उन रोगों से बचाव ही का कारण नहीं, अपितु भयंकर रोगों की चिकित्सार्थ भी श्रेष्ठ पाया गया है। यूँ तो ध्रुव क्षेत्रों की सर्वाधिक प्रतिकूल परिस्थितियों से बहुधा जन सामान्य न्यूनाधिक परिचित है ही, यदि पत्रकार श्री गोविन्द राजू ही की इन पंक्तियों को भी पढ़ लिया जाए, तो श्रेष्ठ रहेगा। "यों तो इन दिनों अंटार्कटिका में पूरे 24 घंटे दिन ही रहता है। फिर भी बादलों और घने कोहरे के कारण अधिक दूरी तक देख सकना संभव नहीं होता। तेज हवाएं अलग बाधा पैदा करती हैं। चारों ओर एक सा हिम वियाबान होने के कारण हेलीकाप्टर चालकों के लिए मार्ग - निर्धारण में बहुत कठिनाईयाँ होती हैं। जरा सी चूक होने पर भटक जाने की संभावनाएं होती हैं। लेकिन हमारी वायुसेना व नौसेना के जांबाज ऐसी स्थितियों में भी अंटार्कटिका में पूरी कुशलता से कार्य करते हैं। " यथार्थ में, "आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है", यही तर्क उक्त ध्रुव क्षेत्र में शाकोत्पादन, शाकाहार दर्शाने वाली रिपोर्ट पर लागू होने योग्य है। शाकाहार की आवश्यकता या मांसाहार त्याग की आवश्यकता क्यों है ? इस प्रश्न के प्रबल उत्तर कई बिन्दुओं पर केन्द्रित हैं, यथा । (1) मानव की शारीरिक संरचना मांसाहार के अनुकूल नहीं। (2) मांसाहार पूर्ण आहार नहीं, जब कि शाकाहार पूर्ण आहार है, यही कारण है कि मांसाहारी को 'शाकाहार' करना ही पड़ता है जब कि शाकाहारी को 'मांसाहार' करना आवश्यक नहीं। ( 3 ) मांसाहार मानवोचित नहीं तथा मानव के सद्गुण, मानवीयतापरक गुण के सर्वथा प्रतिकूल है। ( 4 ) मांसाहार कई रोगों, जघन्यतम रोगों का जनक है। (5) जिन पशु आदि का मांस मांसाहारी जन खाते हैं, वे पशु प्रायः शाकाहारी ही होते हैं, जो 'शाकाहार ही में शक्ति का स्रोत है' तथ्य के प्रबल प्रमाण हैं । यद्यपि वैज्ञानिकों ने विकटतम ठण्डे कर दिया है, किन्तु प्रतीत होता है कि अभी है नहीं, क्योंकि यदि वह जनमानस तो अवश्य ही अपनी शाकाहार प्रवृत्ति एवं मात्र शाकाहारानुकूल शारीरिक संरचनादि के " 88 - बावजूद मांसाहार में लिप्त हुआ एवं उस लिप्तता से सर्वथा छुटकारा न पा लेने वाला न दिखने में आता। यह कुप्रवृत्ति निश्चित ही अज्ञानतादि एवं जिह्वा लोलुपतादिवश सदियों से, युगों में दृष्टव्य हुई है एवं आज भी हो रही है। Jain Education International 'दया' क्षेत्रों तक में शाकाहार क्रान्ति का सूत्रपात अधिकांश जनमानस उस सूत्रपात का अनुमोदक 'शाकाहार' के समर्थन में सही अर्थों में होता समग्र जनसमुदाय को यह तथ्य जान लेना चाहिए कि इस तथाकथित विश्वलोक के समस्त देशों में, अर्थात् विदेशी राष्ट्रों में, जहां मांसाहार का प्रचलन था अब तेजी से शाकाहार अपनाया जा रहा है। यही कारण है कि आज विदेशों में लगातार शाकाहारी रेस्तरां, होटल आदि सब अधिक से अधिक संख्या में खुलते जा रहे हैं। किन्तु हम भारतीय लोगों में से पूर्वतः अधिकांश शाकाहारी होते हुए भी आज मांसाहारी अर्हत् वचन, 14 (4), 2002 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526556
Book TitleArhat Vachan 2002 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy