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________________ वर्ष - 14, अंक - 4, 2002, 81-84 अर्हत् वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर जैन परम्परा से जुड़ी माया सभ्यता डा.जे. डी.जैन* उत्तरी अमेरिका में मैक्सिको देश के युकटन उपमहाद्वीप, बेलीज, गौतेमाला, होंडुरास व एल - सैल्वेडोर - देशों में माया सभ्यता का उद्भव व विकास हुआ। यहां के लोगों को भारतीय कहा जाता था क्योंकि भारत की खोज में निकले कोलम्बस ने गलती से पश्चिम की तरफ पहुंचकर इन देशों को भारत का भाग समझकर इन्हें भारतीय घोषित कर दिया था। ईसा के 1000 से 1500 वर्ष पहले से लोग यहां सर्वप्रथम नदियों के किनारे बसने लगे थे। ज्यों-ज्यों आबादी बढ़ी, जगह की कमी पड़ी तो ये लोग अपने छोटे - छोटे कुनबों सहित अन्यत्र जगह - जगह बसने लगे। ये लोग अवश्य ही धार्मिक प्रवृत्ति के रहे होंगे क्योंकि इन्होंने अपनी - अपनी बस्तियों में मंदिर बनवाने आरंभ कर दिये। इस प्रकार उपरोक्त वर्णित देश में सैकड़ों मंदिरों की स्थापना हो गई। इन मंदिरों की विशेषता यह रही कि प्रत्येक क्षेत्र में एक साथ 2,3,4 या उससे अधिक मंदिर पाये गये हैं और प्राय: सभी जगहों पर एक कुंआ अवश्य है। ऐसी श्रृंखलाबद्ध मंदिरों की कतारों को देखते हुये ऐसा लगता है कि इन मंदिरों की स्थापना के समय अपने इष्ट देवी-देवता के विभिन्न अवसर मनाने के लिए यह मंदिर / भवन बनाते हों। इनकी ऐसी परम्परा की संभावना को देखते हुये ऐसा लगता है जैसे माया सभ्यता पर जैन धर्म का अवश्य ही प्रभाव रहा होगा। क्योंकि जैन धर्मावलम्बी अपने तीर्थंकरों के पंचकल्याणक उत्सव जन्म, तप, ज्ञान, मोक्ष कल्याणक आदि उत्सव मनाने के लिए पाण्डकशिला आदि का निर्माण करते हैं। इन मंदिरों का निर्माण काल सन् 700 से 1200 ई. के मध्य का माना गया है। अगर हम संपूर्ण विश्व में जहां - जहां भी पत्थर के विशाल मंदिर बने हैं, जैसे इण्डोनेशिया में जावा का बोरोबुदुर मंदिर, कम्बोडिया में अंगकोर के मंदिर, भारत में खजुराहो के मंदिर इत्यादि का अध्ययन करें, तो पायेंगे कि वे सब मंदिर इसी अवधि के दौरान बने हैं। चार माया स्थलों - तलम. सोलीमन. तन्खहा एवम इक्सेल्हा में तलम तो जैसे माया सभ्यता की पैतृक सम्पत्ति ही है। ये सब कैरेबियन समुद्रतट पर बसे हुए हैं। पश्चिम में चिचेन इटूजा, उक्समहल इत्यादि हैं। वास्तु शिल्पकला में यद्यपि तुलुम चिचेन इटूजा इत्यादि का मुकाबला नहीं कर सकता। परन्तु पूर्वी समुद्रतट पर यह एक महत्वपूर्ण माया स्थल है। यहां की करीब 60 इमारतों में टोल्टेक स्थापत्य कला का प्रभाव नजर आता है। एक पिरेमिड मंदिर तो भित्ति चित्रों से सुशोभित है। वीराज एवं तबस्को प्रान्तों में ओलेमेक निर्माण शैली में बने मर्तियों के धड मिले हैं जो 1200 से 900 ई. पूर्व बनाये गये थे। एक धड़ तो 11 फुट ऊंचा है। पुरातत्वज्ञ तो इन्हें वहां के प्रमुख शासकों के प्रारूपी धड़ मानते हैं। इन धड़ों के चित्रों के अनुसार मुझे ऐसा लगा कि इनके आकार इत्यादि कम्बोडिया में अंगकोर के प्रसिद्ध बायों मंदिर के शिखरों पर बने धड़ों के समान हैं। इनके अलावा जो अन्य मूर्तियां पायी गई हैं वो पद्मासन है और सामने देखती हुयी है। ऐसा लगता है जैसे ये प्रतिमायें जीवन्त हों। समय के साथ इन इमारतों की बनावट इत्यादि में बदलाव आते गये, उदाहरण के लिये मंदिर के पिछले भाग में राजा के महल भी बनने लगे, मंदिर के सामने ऊंचे चबूतरे बनने लगे ताकि लोग धार्मिक उत्सव देख सकें। धीरे-धीरे मंदिर परिसरों में ही * ए-2, श्रीजी नगर, दुर्गापुरा, जयपुर (राज.) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526556
Book TitleArhat Vachan 2002 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size9 MB
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