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________________ अर्हत् वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर वर्ष - 14, अंक - 4, 2002, 69 - 72 बडोह पठारी के प्राचीन जिनालयों का जैन सांस्कृतिक धरातल • डॉ. गुलाबचंद जैन* मध्य रेल्वे की भोपाल- बीना शाखा पर विदिशा से साठ किलोमीटर दूर कुल्हार नामक एक साधारण स्टेशन है। कुल्हार से पठारी मोटर मार्ग द्वारा 18 किलोमीटर है। पठारी मध्यप्रदेश स्थित विदिशा जिले की पूर्वीय सीमा के सभीप पर्वतीय पठार पर बसा एक साधारण ग्राम है। गडोरी, ज्ञाननाथ एवं अन्होरा पर्वत श्रेणियां इसे चारों ओर से घेरे हुए हैं। स्वतंत्र भारत के पूर्व यहां नवाबी शासन था। मुगलकाल में पठारी जिले का सदरमुकाम रहा है। उस काल में यह चारों ओर से एक मजबूत परकोटे से घिरा हुआ था, जिसके भग्नावशेष आज भी दिखाई देते हैं। ग्राम के दक्षिण की ओर कुछ नीचाई पर एक विस्तृत तालाब है जिसके चारों और पक्के घाट व सीढ़िया निर्मित हैं। तालाब के पश्चिम की ओर, कुछ दूरी पर, बडोह ग्राम है। नवमी - दसवीं शताब्दी में यह एक वैभवपूर्ण सम्पन्न सांस्कृतिक नगर था। ग्राम के समीप भीलों की परिधि में फैले विशाल एवं अलंकृत भग्नावशेष इसके पुरावैभव एवं शिल्पकौशल को प्रदर्शित करते हैं। उस काल में यह वटोदक या बड़नगर नाम से जाना जाता था। बडोह के प्राचीन भव्य स्मारकों में गडमरल मंदिर व जैन वन मंदिर समूह प्रमुख हैं। इनके अतिरिक्त कुछ हिंदू स्मारक भी खंडित अवस्था में यत्र तत्र बिखरे पड़े हैं। कला की दृष्टि से यह सभी स्मारक नवमी - दसवीं शताब्दी में निर्मित प्रतीत होते हैं। गडरमल मंदिर - एक वृहदाकार पांच फुट ऊंचे चबूतरे पर निर्मित है। अलंकृत चौकी एवं मंदिर के निर्माण कौशल को देखकर इस मंदिर की विशालता एवं कला सौन्दर्य का अनुमान लगाया जा सकता है। मंदिर की ऊंचाई (शिखर सहित) लगभग 80 फुट है। मंदिर के प्रारंभिक मार्ग में एक अलंकृत उन्नत तोरण द्वार था जिसका मात्र एक स्तंभ वर्तमान में अवशिष्ट है। तोरण द्वार के आगे गर्भगृह तक के मार्ग पर दोनों ओर चार व आठ पहल वाले 12 स्तंभ हैं जिनके ऊपर छत निर्मित है। यहां सभामण्डप का अभाव है। गर्भगृह एक साधारण कक्ष के रूप में है जहां वर्तमान में कोई मूर्ति नहीं है। निर्माण कला की दृष्टि में यह मंदिर ग्वालियर किले में निर्मित तेली के मंदिर के अनुरूप है। विधर्मियों द्वारा की गई तोडफोड के पश्चात जैन धर्मावलम्बियों द्वारा इस मंदिर का पुनः निर्माण किया गया। पुनः निर्माण में समीपस्थ भग्नप्राय हिन्दू मंदिरों की सामग्री का भी उपयोग किया गया जिसके चिन्ह यत्र - तत्र दृष्टिगोचर होते हैं। मंदिर के पृष्ठ भाग एवं चबूतरे में निर्मित लघुकोष्ठों में देव - देवी प्रतिमाएं थीं जिन्हें आतताइयों द्वारा नष्ट - भ्रष्ट कर दिया गया है। मंदिर की बाह्यभित्ति में नक्काशी युक्त अलंकरण दर्शनीय हैं। शिखर के पूर्वीभाग में कुछ ऊंचाई पर 18 इंच उन्नत एक जैन प्रतिमा उत्खचित है। शिखर भी कलापूर्ण है। पूर्व में मंदिर के तीन ओर कुछ देवकुलिकाएं भी थीं जिनके मात्र खंडहर ही अवशेष हैं। उत्खनन काल में पुरातत्व विदों को मंदिर के भग्नावशेषों में बालक सहित एक लेटी हुई नारी की मूर्ति प्राप्त हुई थी। जैन धर्म ग्रंथों के अनुसार बाल तीर्थकर सहित यह तीर्थकर माता की मूर्ति है। वर्तमान में यह मूर्ति ग्वालियर के गूजरी महल संग्रहालय C/o. राजकमल स्टोर्स, विदिशा (म.प्र.) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526556
Book TitleArhat Vachan 2002 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size9 MB
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