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________________ कोलिन, हिस्टामिन तथा ग्लासन के संश्लेषण को बड़े पैमाने पर प्रभावित करती है। गायों का मांस बढ़ाने के लिये इंग्लैण्ड में गायों को चारे के साथ अप्राकृतिक भोजन मछली का मांस खिलाने से 'काऊडिजीज़' नामक असाध्य बीमारी हो गई। मांसाहार व्यक्तियों में उनींदापन लाता है। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के शोध- वैज्ञानिक हर्टमैन ने सन् । में तथा हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के माइकल योगमैन ने भी इसी तथ्य की पुष्टि की है। 10 स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयार्क द्वारा बफैलों में की गई शोध से यह प्रकाश में आया है कि अमेरिका में 47,000 से भी अधिक बच्चे ऐसे जन्म लेते हैं, जिन्हें माता - पिता के मांसाहारी होने के कारण कई बीमारियाँ जन्म से ही लगी होती हैं। 11 स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, मांसाहार में पाये जाने वाले लिस्टेना नामक विष से दिमाग की झिल्ली में सूजन (मेनिंगजाइटिस) जैसी बीमारी हो जाती है। 12 पश्चिम में फेफड़ों के पश्चात् सर्वाधिक कैन्सर रोग बड़ी आँत में होता है। फेफड़ों के कैन्सर का बड़ा कारण सिगरेट है। बड़ी आँत के कैन्सर का बड़ा कारण है - पश्चिम में माँस - मज्जा का अधिक प्रयोग और शाकाहार की कमी 13, जिसके कारण ये लोग शौच प्रतिदिन या दिन में दो बार के स्थान पर सप्ताह में दो-तीन बार (कुछ व्यक्ति तो सप्ताह में केवल एक बार और वह भी कोई रेचक औषधि लेकर) ही जाते हैं। मांसाहार ही आज विश्व में अशान्ति का कारण है। 14 निष्कर्ष भोजन के प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन तथा खनिज आदि अवयवों की दृष्टि से मांसाहार की तुलना में शाकाहार सस्ता, सुस्वाद, स्वास्थ्यवर्द्धक तथा हितकर है। अत: मनुष्य को मांसाहार नहीं, शाकाहार ही लेना चाहिये। सन्दर्भ 1 डॉ. सुधा गुप्ता, 'मानवीय आहार', एक प्रकाशित ग्रन्थ, पृष्ठ 2, 45. 2. डॉ. जगदीशप्रसाद, 'वृक्षों में आत्मा के सन्दर्भ में भारतीय दर्शन शास्त्रों का वैज्ञानिक अध्ययन', 1996, डी.लिट्, (संस्कृत) शोध प्रबन्ध, चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय, मेरठ, पृ. 302. 3. डॉ. सत्यप्रकाश, 'ह्यूमेनिटेरियन डायट', पृ. 43 - 60 तथा 72 - 76. 4, देखें सन्दर्भ 2 एवं डॉ. नीलम जैन, 'शाकाहार - एक जीवन पद्धति', 1997, प्राच्य श्रमण भारती, मुजफ्फरनगर (उ.प्र.), पृ. 26. 5. देखें सन्दर्भ 3. 6 वही 7. वही 8. वही 9. देखें सन्दर्भ 2. 10 देखें सन्दर्भ 3. 11. देखें सन्दर्भ 4. 12. वही 13. हेमचन्द्र जैन एवं नरेन्द्रकुमार जैन, 'जीवन की आवश्यकता : शाकाहार या मांसाहार', 1996, श्री वर्द्धमान जैन सेवक मंडल, दिल्ली, पृ. 15. 14. सुभाषचन्द्र जैन, 'शाकाहार की विजय', 1997, प्राच्य श्रमण भारती, मूजफ्फरनगर (उ.प्र.), पृ. 58. अर्हत् वचन, 14 (4), 2002 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526556
Book TitleArhat Vachan 2002 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size9 MB
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