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________________ कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर महावीर, अहिंसा और जैनधर्म तीनों एक दूसरे से इतने अभिन्न रूप से जुड़े हुए हैं कि किसी एक के बिना अन्य की कल्पना करना भी मुश्किल लगता है। अत: जैन धर्म की उन्नति हेतु अहिंसा की वैज्ञानिकता सिद्ध करना सर्वाधिक सामयिक प्रतीत होता है। स्वामी विवेकानन्द, महात्मा गांधी जैसे महामनीषी भी धर्म और विज्ञान के प्रबल पक्षधर रहे हैं। जैन धर्म में अहिंसा का विशद विवेचन किया गया है तथा वर्तमान विज्ञान के आलोक में एक ओर जहाँ अहिंसक आहार से अपराध, खाद्य समस्या, जल समस्या और रोगों का निदान दिखायी देता है वहीं दूसरी ओर अहिंसा के द्वारा जैव विविधता संरक्षण एवं कीड़ों का महत्व भी दृष्टिगोचर होता है। वर्ष 14, अंक 4, 2002, 25-30 अहिंसा की वैज्ञानिक आवश्यकता और उन्नति के उपाय • अजित जैन 'जलज' * इस प्रकार अहिंसा की जीव वैज्ञानिक आवश्यकता का अनुभव होने पर अहिंसा हेतु विभिन्न वैज्ञानिक उपाय, वृक्ष खेती, ऋषि - कृषि, समुद्री खेती, मशरूम खेती, जन्तु विच्छेदन विकल्प, अहिंसक उत्पाद विक्रय केन्द्र, इत्यादि हमारे सामने आते हैं। यह सब देखने पर भारत के कतिपय वैज्ञानिकों के इस विचार की पुष्टि होती है कि आधुनिक विज्ञान का आधार बनाने में प्राचीन भारत का अमूल्य योगदान रहा है । ' इसके साथ प्रसिद्ध गांधीवादी चिंतक स्व. श्री यशपाल जैन द्वारा अपने जीवन भर के अनुभवों का निचोड़, मुझको निम्नलिखित रूप में लिखने का औचित्य भी समझ में आता है कि 'वर्तमान युग की सबसे बड़ी आवश्यकता विज्ञान और अध्यात्म के समन्वय की है।' (अ) अहिंसा का जैन धर्म में महत्व - - जैन धर्म में जीवों का विस्तृत वर्गीकरण कर प्रत्येक जीव की सुरक्षा हेतु दिशा-निर्देश अनेक स्थानों पर मिलते हैं। जैन शास्त्रों में माँस के स्पर्श से भी हिंसा बतायी गई है। 2 त्रस हिंसा को तो बिल्कुल ही त्याज्य बताया गया है। 3 निरर्थक स्थावर हिंसा भी त्याज्य बताई गई है। " धर्मार्थ हिंसा, देवताओं के लिये हिंसा, अतिथि के लिये हिंसा, छोटे जीव के बदले बड़े जीवों की हिंसा, पापी को पाप से बचाने के लिये मारना, दुखी की रक्षा का विचार 12 हिंसा 14, 10 या सुखी को मारना ", एक के वध में अनेक हेतु गुरु का शिरच्छेद मोक्ष प्राप्ति के लिये सब हिंसाओं को हिंसा मानकर इनको त्यागने का निर्देश जिनमत सेवी कभी हिंसा नहीं करते। 16 समाधि में सिद्धि भूखे को भी माँसदान 15 इन है और स्पष्ट कहा गया है कि Jain Education International इनके अलावा अहिंसा के संबंध में कुछ अन्य जिनसूत्र भी दृष्टव्य हैं 'ज्ञानी होने का सार यही है कि वह किसी भी प्राणी की हिंसा ना करे' 17 'सभी जीव जीना चाहते हैं, मरना नहीं इसलिये प्राण वध को भयानक मानकर निर्ग्रन्थ उसका वर्जन करते - हैं' 18 'जीव का वध अपना ही वध है, जीव की दया अपनी ही दया है' 19, 'अहिंसा 7 के समान कोई धर्म नहीं है' 201 (आ) जीवन के आलोक में अहिंसा 1. आहार और अपराध सात्विक भोजन से मस्तिष्क में संदमक तंत्रिका संचारक (न्यूरो इनहीबीटरी ट्रांसमीटर्स) उत्पन्न होते हैं जिनसे मस्तिष्क शांत रहता है वहीं असात्विक * अध्यापक, वीर मार्ग, ककरवाहा जिला टीकमगढ (म.प्र.) - - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526556
Book TitleArhat Vachan 2002 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size9 MB
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