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________________ ___ हमारे पुराण, श्रावकाचार, यत्याचार, कर्म सिद्धान्त आदि की युक्तियुक्त समीक्षा की आवश्यकता हर विचारशील जैन को महसूस होती होगी, ऐसा मेरा सोच है। पिछले 30 - 40 वर्षों में पी-एच डी., डी.लिट्, विद्यावारिधि आदि उपाधियों के लिये 1000 - 1500 शोध प्रबन्ध लिखे गये हैं। काफी संख्या में इसके अलावा भी छोटी - बड़ी पुस्तकें छपी हैं। पचासों संस्थानों में पचासों विद्वानों के निर्देशन में जैन विद्या का उच्चस्तरीय अध्ययन हो रहा है। बढ़ती हुई संख्या में जैन पत्रिकायें छप रही हैं। हमारे संसाधन - विद्वान (जिनकी आजीविका जैन विद्या के अध्ययन/अध्यापन, धार्मिक, सामाजिक क्रियाओं पर निर्भर करती) अर्थ आदि सीमित हैं, उसका सही तथा अधिकाधिक उपयोग सुनिश्चित करने के लिये एक समीक्षा की आवश्यकता है। शुरूआत एक 1-2 दिवसीय विद्वत् गोष्ठी से की जाये। स्थान - श्रीमहावीरजी ध्यान केन्द्र, आयोजक - महासभा, महासमिति या जैन विद्या संस्थान श्रीमहावीरजी, समय - चैत्र शुक्ला 15 (भगवान पदमप्रभु का केवलज्ञान दिवस) रखा जा सकता है। इसकी सूचना जैन पत्रों (गजट, संदेश, पत्रिका) द्वारा तथा आवश्यकतानुसार पत्रों द्वारा विद्वत् परिषद, शास्त्री परिषद, संस्थान, जहाँ जैन विद्या का उच्चस्तरीय अध्ययन/अध्यापन होता है, को प्रसारित की जाये। __जो विद्वान उसमें योगदान कर सकें, वे अपना परिचय, शिक्षा (लौकिक, धार्मिक), आजीविका/व्यवसाय, लेखन, अध्ययन, अध्यापन का विवरण आयोजक को माघ पूर्णिमा तक उपरोक्त विषय पर अपने विचार, जिसमें प्राचीन शास्त्रों में वर्णित विषयों, जिन पर अध्ययन की आवश्यकता है तथा (1) अध्ययन के लिये विद्वान का योगदान, (2) संस्थान जहाँ अध्ययन होगा, उसकी युक्तियुक्त उपयुक्तता, (3) अर्थ तथा अन्य सहयोग की आवश्यकता, (4) योग्य अध्येताओं की आवश्यकता तथा (5) उनकी समर्पित रूचि के बारे में राय/रूचि जागरण की संभावना तथा उपाय आदि पर विचार हों, भेज दें। आमंत्रित विद्वान अपने आलेख की 3 प्रतियाँ फाल्गुन पर्णिमा तक आयोजक को भेज दें ताकि उसकी प्रति आमंत्रित विद्वानों को अध्ययनार्थ भेजी जा सके। 9.12.02 . पी. सी. जैन, कोलकाता- 1 उत्तम वातावरण, शोध की दृष्टि से बहुत प्रशंसनीय सुविधाएँ, निरन्तर विकसित हो। शुभकामनाएँ। 19.12.02 - डॉ. राजेन्द्र मिश्र प्राचार्य - शासकीय महाविद्यालय, बालाजी अपार्टमेन्ट, स्नेहलतागंज, इन्दौर - 452004 कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ में शोध से सम्बद्ध अत्याधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध हैं। श्रेष्ठ ग्रन्थालय का होना इसे श्रेष्ठ संस्थानों में सम्मिलित करता है। शुभकामनाएँ। 19.12.02 . प्रो. प्रहलाद तिवारी विभागाध्यक्ष - गणित, शासकीय होल्कर स्वशासी विज्ञान महाविद्यालय, इन्दौर - 452017 बहुत अच्छा वातावरण। 19.12.02 - प्रो. नवीन जैन पूर्व निदेशक - कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर आवश्यक सूचना अर्हत् वचन का वर्ष 15, अंक - 1, जनवरी - मार्च 2003 जनवरी 2003 में प्रकाश्य है। जिन माननीय सदस्यों का सदस्यता शुल्क बकाया है उन्हें पत्र भेजे जा चुके हैं। कृपया बकाया राशि शीघ्र भेजने का कष्ट करें। सदस्यता शुल्क बकाया होने की स्थिति में वर्ष 15 के अंक भेजना संभव नहीं होगा। आशा है कि आपका सहयोग हमें यथावत अवश्य प्राप्त होगा। प्रकाशक 114 अर्हत् वचन, 14 (4). 2002 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526556
Book TitleArhat Vachan 2002 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size9 MB
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