SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुस्तक समीक्षा ऋषितुल्य को समर्पित ऋषिकल्प मूल्य शीर्षक : ऋषिकल्प (डॉ. हीरालाल जैन स्मृति ग्रंथ) सम्पादक : डॉ. धरमचन्द जैन प्रकाशक : डॉ. हीरालाल जैन जन्म शताब्दी समारोह समिति. ऋषिकल्प प्रदीप भवन, अग्रवाल कालोनी, जबलपुर डॉ० हीरालाल जैन आकार A/4, पृ. 212 + 426 + प्लेट संस्करण : प्रथम, 2001 : रु. 2100.00 समीक्षक : डॉ. अनुपम जैन, इन्दौर भारतीय साहित्याकाश के दैदीप्यमान नक्षत्र डॉ. हीरालाल जैन ने प्राकृत एवं जैन साहित्य की अप्रतिम सेवा की है। 1899 से 1973 की 74 वर्षीय जीवन यात्रा में अनेक पड़ाव रहे। जिसके अन्तर्गत आपने अमरावती (1925-44) में सहायक प्राध्यापक, नागपुर (1944 - 55) में होस्टल वार्डन एवं प्राचार्य, वैशाली शोध संस्थान - बिहार (1955 - 1960) में निदेशक तथा जबलपुर वि.वि. (1961-69) में संस्कृत के प्रोफेसर के दायित्व का निर्वाह किया। _M.A., L.L.B., Ph.D. के अतिरिक्त आपने 1944 में नागपुर वि.वि. से सर्वोच्च शोधोपाधि D.Lit. अर्जित की। 1923 से प्रारम्भ अपनी साहित्य सेवा के अन्तर्गत शताधिक ग्रन्थों का सम्पादन किया। 'भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान' आपकी निष्पक्ष, बहुश्रुत कृति है। षटखंडागम (धवला) के 16 भागों का (1936 - 1953) सम्पादन कर आप जैन जगत में अमर हो गये। 2 भागों एवं 10 खण्डों में विभाजित समीक्ष्य ग्रन्थ सम्पादक डॉ. धरमचन्द जैन के प्रयासों से एक महत्वपूर्ण सन्दर्भ ग्रन्थ बन गया है। इसके 10 खंडों - 1. संस्मरण, 2. जीवन एवं व्यक्तित्व, 3. ऐतिहासिक कृतित्व, 4. चित्रों में डॉ. हीरालाल जैन, 5. सन्दर्भ जन्मशताब्दी, 6, इतिहास, पुरातत्व व जैन स्थापत्य, 7. मध्यकालीन आर्ष भाषा की जैन परम्परा, 8. जैन धर्म और सिद्धान्त, 9. जैन चिन्तन की वैज्ञानिक दृष्टि एवं 10. श्रमण परम्परा में 70 बहुश्रुत विद्वानों के आलेख प्रकाशित हैं, जो विषय वैविध्य एवं प्रामाणिकता की दृष्टि से पठनीय तथा संग्रहणीय हैं। ___ हमें यह देखकर सुखद आश्चर्य है कि प्रस्तुत कृति में निम्न 3 लेख - (1) कालद्रव्य : जैन दर्शन और विज्ञान (कुमार अनेकान्त जैन), (2) Eco - Rationality and Jaina Karma Theory (Krivov Sergui) तथा (3) क्लोनिंग तथा कर्म सिद्धान्त (अनिलकुमार जैन) अर्हत् वचन से साभार उद्धृत हैं तथा कई अन्य आलेखों की सामग्री का आधार अर्हत् वचन है। कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ परिवार डॉ. हीरालाल जैन के प्रति सदैव से बहुमान रखता है अत: उसके लिये यह गौरवपूर्ण है। पुस्तक पठनीय एवं संग्रहणीय है किन्तु मूल्य कुछ अधिक है। 104 अर्हत् वचन, 14 (4), 2002 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526556
Book TitleArhat Vachan 2002 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy