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________________ अर्हत् वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर वर्ष - 14, अंक 2 - 3, 2002, 15 - 30 आचार्य श्रीधर और उनका गणितीय अवदान -डॉ. अनुपम जैन*, ममता अग्रवाल (मेरठ) ** एवं प्रशान्त तिलवनकर (इन्दौर) *** भाग-2 अर्हत् वचन, वर्ष-8, अंक-1, जनवरी 1996 में 'आचार्य श्रीधर एवं उनका गणितीय अवदान' (अनुपम जैन एवं कु. ममता सिंघल) शीर्षक लेख प्रकाशित हुआ था। इस आलेख में आचार्य श्रीधर के जीवन, जीवनकाल, कृतियों, धार्मिक मान्यता के बारे में विस्तार से विवेचन किया गया है। इस आलेख में लेखकों ने आचार्य श्रीधर पर 1995 तक किये गये शोध कार्यों को भी सूचीबद्ध किया है। प्रस्तुत आलेख में उनकी कृतियों में निहित गणित का विवेचन किया गया है। -सम्पादक श्रीधराचार्य (799 ई.) के ज्ञान का मूल स्रोत जैन परम्परा का पारम्परिक ज्ञान था, उन्होंने अपनी-अपनी प्रतिभा का उपयोग करते हुए उसे परिष्कृत, विस्तृत एवं विवेचित किया है। प्रस्तुत अध्याय में हम पाटीगणित के तत्कालीन विषयों पर बिन्दुवार चर्चा करेंगे। अनेक विषय, जिन पर श्रीधर एवं महावीर दोनों ने लेखनी चलाई है, उनको हमने लेख के भाग-3 में तुलनात्मक रूप में विस्तार से विवेचित किया है। फलत: यहाँ उनको स्पर्श मात्र किया है। अत: श्रीधर के गणितीय अवदान को सम्यक् रूप से समझने हेतु प्रस्तुत भाग-2 एवं शीघ्र प्रकाश्य भाग-3 दोनों देखना चाहिये। अष्ट परिकर्म पारम्परिक रूप से अष्ट परिकर्म के अन्तर्गत पाटीगणित में संकलन, व्यकलन, गुणन, भाग, वर्ग, वर्गमूल, घन एवं घनमूल को सम्मिलित किया जाता है। इनके पहले संख्याओं एवं स्थानमान की सूचियाँ दी जाती हैं। हम यहाँ श्रीधर की सूची प्रस्तुत कर रहे हैं। 1. एक = 10° 10. अब्ज ___= 10% 2. दश - 10 11. खर्व 3. शत = 102 12. निखर्व 101 4. सहस्र 103 13. महासरोज 5. अयुत = 104 14. शंकु लक्ष 15. सरितापति प्रयुत 16. अन्त्य 1015 8. कोटि 17. मध्य = 1016 9. अर्बुद = 108 18. परार्ध = 1017 श्रीधर ने अपनी पाटीगणित एवं पाटीगणितसार में मापन पद्धतियों की भी चर्चा की 1010 - 1012 1013 1014 105 106 - 100 12 अष्ट परिकर्मों की श्रृंखला में संकलन एवं व्यकलन अत्यन्त सरल है। श्रीधर ने * गणित विभाग, होल्कर स्वशासी विज्ञान महाविद्यालय, इन्दौर-452017 ** केनरा बैंक क्षेत्रीय कार्यालय, 144-145, प्रसाद हाऊस, दिल्ली रोड़, मेरठ-50002 *** शोध छात्र - कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, 584, म. गांधी मार्ग, इन्दौर-452001 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526554
Book TitleArhat Vachan 2002 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2002
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size9 MB
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