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भगवान महावीर 2600 वाँ जन्म कल्याणक महामहोत्सव का समापन
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी वाजपेयी ने गुरुवार, 25 अप्रैल 2002 को सीरीफोर्ट ऑडिटोरियम में आयोजित भगवान महावीर 2600 वें जन्म कल्याणक महोत्सव समापन समारोह में कहा कि भगवान महावीर का अहिंसा, करूणा, प्रेम और भाईचारे का संदेश हमें विश्व भर में फैलाना है। इस समारोह को समापन न मानकर भगवान महावीर के दर्शन व सिद्धान्तों के प्रचार-प्रसार की श्रृंखला आगे भी जारी रहनी चाहिये। प्रधानमंत्री ने कहा कि अनेकता में एकता का संदेश देने वाला भगवान महावीर का अनेकान्तवाद ही हमें भटकाव से बचा सकता है। वर्ष भर चला वह महोत्सव सरकारी तौर पर अवश्य समाप्त हुआ है लेकिन जैन समाज का दायित्व है कि वह महोत्सव के रचनात्मक कार्यक्रमों को जारी रखें। भारत सरकार इसमें पूरा सहयोग देगी तथा महोत्सव वर्ष के सभी कार्यक्रम पूरे किये जायेंगे। प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार पिछड़ जाये तो चिन्ता मत कीजिये, समाज को नहीं पिछड़ना है।
। महोत्सव के भव्य समापन समारोह का यह आयोजन पर्यटन एवं संस्कृति मंत्रालय तथा भगवान महावीर 2600 वाँ जन्म कल्याणक महोत्सव महासमिति द्वारा किया गया। प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी वाजपेयी ने मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया तथा केन्द्रीय पर्यटन व संस्कृति मंत्री श्री जगमोहन ने समारोह की अध्यक्षता की। केन्द्रीय गृहमंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणी, वित्तमंत्री श्री यशवंत सिन्हा, केन्द्रीय कपड़ा राज्यमंत्री श्री धनंजयकुमार, केन्द्रीय संस्कृति सचिव श्री एन. गोपाल स्वामी, प्रसिद्ध विधिवेत्ता डॉ. लक्ष्मीमल सिंघवी एवं महासमिति की कार्याध्यक्ष श्रीमती इन्दु जैन मंच पर आसीन थे।
प्रधानमंत्री ने बोलते हुए आगे कहा कि आज से 2600 वर्ष पूर्व की कल्पना कीजिये जब भगवान महावीर ने अहिंसा एवं अनेकान्त का दर्शन दिया जिसमें धर्मनिरपेक्षता, सह अस्तित्व एवं सहिष्णुता का पाठ था। उनके सिद्धान्तों में बल प्रयोग का कोई स्थान नहीं था बल्कि आत्म बल की महत्ता थी। अनेकता में एकता ही सच्ची धर्म निरपेक्षता है।
उन्होंने कहा कि आज हम एक संकटपूर्ण हिंसा के दौर से गुजर रहे हैं। हो सकता है हम समय - समय पर भटक गये हों। ऐसी संकटपूर्ण स्थितियों से जूझना पड़ा हो, पर हम अपना धर्मनिरपेक्षता एवं अनेकता में एकता का लक्ष्य कभी नहीं भूलें। अंधकार में प्रकाश की यही एक किरण है जो हमें सही रास्ता दिखा रही है और हमें क्षणिक संकटों से उबारती रही है। अंधकार में ज्ञान के दीप का प्रकाश हमें अपना लक्ष्य मार्ग दिखायेगा। हमें विश्वास है कि यह स्थिति शीघ्र सुधर जायेगी। हमें निराश होने की जरूरत नहीं क्योंकि हमारा आधार मजबूत है और भविष्य उज्जवल है। उन्होंने गुजरात में हिंसा की घटनाओं पर पश्चिम व यूरोपीय देशों की टिप्पणियों पर कहा कि वे धर्मनिरपेक्षता पर हमें उपदेश न दें। भगवान महावीर का अहिंसा, अनेकान्त व सहिष्णुता का दर्शन धर्मनिरपेक्षता का दर्शन है जो हमारे पूर्वज हजारों साल पहले हमें सिखा गये हैं। हमें इसे कारगर रूप में अमल में लाना है। आत्मचिंतन की मुद्रा में उन्होंने विश्व के जैन मंदिरों का उल्लेख करते हुए कहा कि ये कलात्मक मंदिर हमें शताब्दियों से मानवता का संदेश दे रहे हैं। ये मंदिर कैसे बने, कैसे उनकी रक्षा हो, सभी इनका दर्शन करें, महावीर की मानवता का संदेश 'दुनिया भर में फैले, यही हम चाहते हैं।
स्वागत भाषण करते हुए महासमिति की कार्याध्यक्ष श्रीमती इन्दु जैन ने जैन धर्म की आधारभूत देन - अहिंसा, अनेकान्त, धर्मनिरपेक्षवाद एवं पर्यावरण संरक्षण पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि अहिंसा एवं अनेकान्त से बड़ा कोई धर्म नहीं है जो सभी जीवों को जीवन जीने का समान अधिकार व दूसरों के मत को सम्मान देना सिखाता है। भगवान महावीर का अहिंसा का संदेश इस हिंसक विश्व में और अधिक समीचीन हो गया है। यह परम्परा प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ से प्रारंभ होकर आज तक प्रवाहित है। उन्होंने जैन समाज को 'अल्पसंख्यक समुदाय घोषित करने की भी प्रार्थना सरकार से की। श्रीमती जैन ने कहा कि महावीर सबसे बड़े धर्मनिरपेक्ष थे जिन्होंने अपने संघ 128
अर्हत् वचन, 14 (2 - 3), 2002
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