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________________ प्राकृत भाषा और ब्राह्मी लिपि में उल्लिखित उदयगिरि-खण्डगिरि का शिलालेख भारतीय इतिहास के परिप्रेक्ष्य में बहुत महत्व रखता है। आपने गणेश वर्णी दि. जैन संस्थान के संस्थापक पं. फूलचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्री की जैन साहित्य के विकास में योगदान की सराहना की। व्याख्यानमाला का शुभारंभ साध्वीद्वय श्री सिद्धान्तसागरजी एवं सम्वेगसागरजी के प्राकृत भाषा के मंगलाचरण एवं अरिहंतकुमार जैन के महावीराष्टक से हुआ। आरंभ में संस्थान के मंत्री डॉ. अशोककुमार जैन ने अतिथियों का स्वागत करते हुए संस्थान का तथा संस्थान के गौरवशाली प्रकाशनों का परिचय दिया। इस अवसर पर "यह जीवन कठिन कहानी है' नामक आध्यात्मिक काव्य संग्रह पुस्तक का विमोचन प्रो. आर.सी. शर्मा ने अपने कर कमलों से किया। अंत में व्याख्यान माला के प्रमुख वक्ता प्रो. राजारामजी जैन का अंगवस्त्र, श्रीफल और माल्यार्पण द्वारा सम्मान किया गया। धन्यवाद ज्ञापन व्याख्यान माला के संयोजक एवं संस्थान के उपाध्यक्ष डॉ. फूलचन्द्र जैन 'प्रेमी' ने किया। - डॉ. फूलचन्द्र जैन 'प्रेमी' जैन महाविद्यालय अलवर में अहिंसा पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी अलवर। भगवान महावीर के 2600 वें जन्म कल्याणक महोत्सव वर्ष पर श्री आदिनाथ दिग. जैन शिक्षण संस्थान, अलवर में परम पूज्य उपाध्याय श्री ज्ञानसागरजी महाराज के पावन सान्निध्य में अहिंसा पर आयोजित द्विदिवसीय संगोष्ठी का शुभारंभ ब्र. अनीताजी के मंगलाचरण से हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता की श्री पी.सी. जैन ने तथा दीप प्रज्जवलन किया जिला कलेक्टर महोदय ने। ___ संगोष्ठी में सम्मिलित डॉ. एच.सी. गुप्त, डॉ. सी.पी. माथुर, पं. निर्मल जैन (सतना), श्री रिवल्लीमल जैन एडवोकेट, श्री ताराचन्द प्रेमी, श्री पी.सी. जैन, श्री प्रकाशचन्द जैन, डॉ. संदीप जैन (दिल्ली), डॉ. अशोक जैन (लाडनूं) आदि विद्वानों ने अहिंसा के महत्व पर अपने विचार व्यक्त किये। उपाध्याय श्री ने कहा कि हमारा देश वर्तमान में अनेकों गंभीर स्थितियों से गुजर रहा है, देश ही नहीं, पूरा विश्व आज अशान्त नजर आ रहा है। इसका कारण हिंसा का ताण्डव नृत्य है। चारों ओर झूठ, कपट, अन्याय, अनीति, अत्याचार का बोलबाला है। विश्व शान्ति हेतु आज भगवान महावीर के सिद्धान्तों की महती आवश्यकता है। 'प्रमत्तयोगात् प्राण व्यपरोपणं हिंसा', जैन दर्शन में अहिंसा की बहुत सूक्ष्म विवेचना है - जिसके जीवन में प्रमाद है, असावधानी, बेहोशी है, वहाँ हिंसा है और जिसके जीवन में सावधानी है, होश है, जागरूकता है, वहाँ अर्हिसा है। श्री आदिनाथ जैन शिक्षण संस्थान के अध्यक्ष श्री सुरेन्द्र जैन ने आभार व्यक्त किया। - मुकेश कुमार जैन शास्त्री महाराष्ट्र जैन इतिहास परिषद का अधिवेशन सम्पन्न महाराष्ट्र जैन इतिहास परिषद का द्वितीय अधिवेशन आरा (बिहार) निवासी प्रो. (डॉ.) राजाराम जैन, मानद निदेशक - श्री कुन्दकुन्द भारती, नई दिल्ली की अध्यक्षता में भातकुली दि. जैन अतिशय क्षेत्र, अमरावती (महा.) में दिनांक 12 - 13 जनवरी 2002 को सम्पन्न हुआ। इसमें जैन इतिहास सम्बन्धी शोध पत्र वाचन, विशिष्ट भाषण तथा विविध सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन किये गये। इसका उद्घाटन अमरावती विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. सुधीर पाटिल ने किया। परिषद के महासचिव श्रेणिक अन्नदाते ने परिषद के कार्यकलापों पर विस्तृत प्रकाश डाला तथा मंच संचालन सौ. पद्मा चन्द्रकान्त महाजन एवं सौ. मीना गरीबे ने किया। परिषद के अध्यक्ष श्री सतीश संगई ने धन्यवाद ज्ञापन किया। - सौ. पद्मा चन्द्रकान्त महाजन आयोजन सचिव, अमरावती (महा.) 126 अर्हत् वचन, 14 (2 -3), 2002 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526554
Book TitleArhat Vachan 2002 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2002
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size9 MB
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