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________________ 124 पुस्तक का नाम: गणित सार सङग्रह मूल रचनाकार अंग्रेजी अनुवाद Jain Education International कन्नड़ अनुवाद प्रकाशन वर्ष पृष्ठ संख्या प्रकाशक समीक्षक पुस्तक समीक्षा सुदीर्घ आवश्यकता की पूर्ति (मूल संस्कृत, अंग्रेजी लिप्यांतरण, अंग्रेजी एवं कन्नड़ अनुवाद तथा कन्नड़ टिप्पण सहित) - : महावीराचार्य ( 850 ई.) : रायबहादुर एम. रंगाचार्य, मद्रास : प्रो. (डॉ.) पद्मावथम्मा, मैसूर : 2000 €, मूल्य 1912 में मद्रास सरकार द्वारा गणित सार संग्रह के अंग्रेजी अनुवाद एवं टिप्पण सहित प्रकाशन के साथ ही विश्व समुदाय का ध्यान जैन गणितज्ञों की गौरवशाली परम्परा की ओर आकृष्ट हुआ। 1963 में प्रो. एल. सी. जैन द्वारा अंग्रेजी अनुवाद के आधार पर तैयार किया गया हिन्दी अनुवाद भी सोलापुर से प्रकाशित हो चुका है। किन्तु ये दोनों संस्करण वर्तमान में उपलब्ध न होने के कारण भारतीय गणित के अध्येताओं को बहुत असुविधा हो रही थी। डॉ. पद्मावथम्मा ने न केवल इस अभाव की पूर्ति की है अपितु कन्नड़ भाषा भाषी अध्येताओं की सुविधा हेतु इसका कन्नड़ अनुवाद टिप्पण सहित उपलब्ध कराया है। मूलतः कन्नड़ भाषी आचार्य महावीर की संस्कृत भाषा में लिखी इस कृति का कन्नड़ अनुवाद पाकर निश्चय ही कन्नड़ भाषा भाषियों को हर्ष होगा । - रु.750.00 : LVI + 835 : श्री सिद्धान्त कीर्ति ग्रन्थमाला, श्री होम्बुज मठ, होम्बुज (कर्नाटक) 1912 में इस ग्रन्थ के प्रकाश में आने के बाद करणानुयोग समूह के जैन ग्रन्थों के गणितीय दृष्टि से अध्ययन का क्रम प्रारम्भ हुआ एवं प्रो. बी. बी. दत्त, प्रो. ए. एन. सिंह, प्रो. एल. सी. जैन, प्रो. टी. ए. सरस्वती आदि विद्वानों ने त्रिलोकसार तिलोयपण्णत्ति एवं जम्बूद्वीपपण्णतिसंगहो आदि का अध्ययन किया। लगभग 9 दशकों में महावीराचार्य के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर पर्याप्त शोध कार्य हुआ है, इनको समाहित करते हुए हमने प्रो. सुरेशचन्द्र अग्रवाल के सहयोग से एक पुस्तक 'महावीराचार्य एक समीक्षात्मक अध्ययन' लिखी थी जिसमें प्रदत्त सूचनाओं का प्रस्तुत कृति की भूमिका लिखते समय प्रो. पद्मावथम्मा ने उपयोग किया। वे स्वयं लिखती हैं The book in Hindi on Mahavirācārya authored by Dr. Anupam Jain was quite useful for me to write the preface.' पुस्तक का मुद्रण निर्दोष एवं आकर्षक है। गणित इतिहास विशेषतः भारतीय गणित के अध्येताओं हेतु पुस्तक उपयोगी है। अनुवाद कर्त्री इस श्रम एवं समय साध्य किन्तु महत्वपूर्ण कृति के सृजन हेतु बधाई की पात्र है। : डॉ. अनुपम जैन, गणित विभाग, होल्कर स्वशासी विज्ञान महाविद्यालय, इन्दौर For Private & Personal Use Only अर्हत वचन, 14 (2-3). 2002 www.jainelibrary.org
SR No.526554
Book TitleArhat Vachan 2002 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2002
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size9 MB
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