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________________ संक्षिप्त आख्या अर्हत् वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर) श्रुत संवर्द्धन पुरस्कार 2001 समर्पण समारोह केकड़ी, 26.5.2002 -जयसेन जैन* राजस्थान प्रान्त के अजमेर जनपद के अन्तर्गत केकड़ी शहर में सराकोद्धारक संत परमपूज्य उपाध्यायरत्न श्री ज्ञानसागरजी महाराज की प्रेरणा से श्रुत संवर्द्धन संस्थान, मेरठ द्वारा प्रवर्तित श्रुत संवर्द्धन पुरस्कार - 2001 का समर्पण समारोह 26 मई 2002 को भव्य समारोह में सम्पन्न हुआ। केकड़ी (राज.) में नवनिर्मित भव्य जिनालय की वेदी प्रतिष्ठा एवं श्री मज्जिनेन्द्र पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के अंतिम दिन मोक्ष कल्याणक के समापन के पश्चात् पूज्य उपाध्याय श्री ज्ञानसागरजी व मुनि श्री इन्द्रनन्दिजी के ससंघ सान्निध्य में आयोजित इस समारोह के प्रमुख अतिथि केन्द्रीय वस्त्र राज्यमंत्री श्री वी. धनंजयकुमार थे। विशिष्ट अतिथि के रूप में स्थानीय विधायक एवं समाज के वरिष्ठ समाजसेवी बड़ी संख्या में उपस्थित थे। - मंगलाचरण के पश्चात् उपाध्याय श्री ज्ञानसागरजी के गुरु पूज्य आचार्य श्री 108 सुमतिसागरजी महाराज के चित्र के समक्ष अतिथिगणों ने दीप प्रज्जवलित किया। पश्चात् डॉ. अनुपम जैन द्वारा संकलित एवं संपादित श्रुत संवर्द्धन संस्थान, मेरठ द्वारा प्रदत्त पुरस्कारों की परिचायिका, अन्य ग्रंथों एवं डॉ. भागचन्द्र जैन 'भास्कर' द्वारा लिखित जैन संस्कृति कोश के 3 खण्डों तथा 'सन्मतिवाणी' मासिक का विमोचन सम्पन्न हुआ। प्रमुख अतिथि केन्द्रीय मंत्री श्री वी. धनंजयकमार ने पूज्य उपाध्याय श्री ज्ञानसागरजी के प्रति हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए कहा कि पूज्य उपाध्यायश्री द्वारा जैन धर्म की अपूर्व प्रभावना हो रही है। देश के पूर्वी क्षेत्र स्थित प्रांतों के निवासी सराक बन्धुओं के उद्धार एवं उन्हें जैन धर्म के अनुसरण हेतु प्रेरित करने हेतु पूज्य उपाध्यायश्री ने जो अभूतपूर्व प्रयास किये हैं, वे श्लाघनीय हैं। श्रमण संस्कृति के अन्य साधकों को भी इस क्षेत्र में आगे आकर सहयोग देना चाहिये। उन्होंने आगे कहा कि विश्व में जैन धर्म ही एक ऐसा धर्म है जिसके सिद्धान्तों पर चल कर विश्व शांति संभव है। भगवान महावीर के 2600 वें जन्म कल्याणक महोत्सव वर्ष हेतु सरकार ने 100 करोड़ रु. आबंटित कर हमारे जैन धर्म का सम्मान ही किया है, धर्म प्रभावना के क्षेत्र में इस राशि का भरपूर सदुपयोग किया जाना चाहिये। पूज्य उपाध्याय श्री ज्ञानसागरजी महाराज ने महती धर्मसभा को आशीर्वाद देते हए कहा कि आप लोग 'कंकर से शंकर', 'आत्मा से परमात्मा' तथा 'भक्त से भगवान' बनें, यही हमारी भावना है। उन्होंने केन्द्रीय मंत्री श्री धनंजयकुमार, डॉ. अनुपम जैन तथा श्रुत संवर्द्धन संस्थान के समस्त पदाधिकारियों की भी प्रशंसा करते हुए उन्हें धर्मवृद्धि हेतु आशीर्वाद दिया। पूज्य उपाध्यायश्री ने केकड़ी समाज की भी मुक्त मंठ से प्रशंसा की जिन्होंने इस छोटे से नगर में प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव का वृहद् आयोजन सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में तन, मन व धन समर्पित किया। आपने पुरस्कार प्राप्त करने वाले विद्वज्जनों को भी धर्म प्रभावनार्थ आजीवन संलग्न रहने हेतु आशीर्वाद दिया। पुरस्कार समर्पण समारोह में पुरस्कृत समस्त विद्वानों को प्रमुख अतिथि श्री धनंजयकुमारजी, अर्हत वचन 1412-3) 2002 113 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526554
Book TitleArhat Vachan 2002 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2002
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size9 MB
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