________________
इन 6 शोध पत्रों के माध्यम से जैन गणित के विविध पक्षों की प्रभावी प्रस्तुति की गई। संगोष्ठी के समापन सत्र में Jaina School की ओर से प्रतिक्रिया व्यक्त करते हेतु डॉ. अनुपम जैन, इन्दौर को आमंत्रित किया गया।
डॉ. जैन ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि मैं लगभग 23 वर्षों से I.S.H.M. से जुड़ा हूँ। भारतीय गणित इतिहास परिषद की शोध पत्रिका गणित भारती के प्रकाशन के अतिरिक्त अन्य गतिविधियाँ लगभग 1/2 दशक से सुस्त पड़ी थी, गत 2 वर्षों से पुन: गति आई है, इसी का प्रतिफल है कि जैन गणित के अध्ययन के कार्य में प्रगति हो रही है। I.S.H.M. के इस मंच से प्रो. बी.बी. दत्त, प्रो. ए.एन. सिंह एवं प्रो. एल.सी. जैन के काम को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी एवं जैनाचार्यों के गणितीय कृतित्व के सम्यक अध्ययन से भारतीय गणित इतिहास के पुनर्लेखन का पथ प्रशस्त होगा, ऐसा मेरा विश्वास
जैन गणित के अध्ययन में संलग्न हम सभी कोचीन में प्रस्तावित आगामी सम्मेलन में सम्मिलित होने का विश्वास दिलाते हुए परिषद की शोध पत्रिका गणित भारती की आवृत्ति बढ़ाने का अनुरोध करते हैं।
जैन गणित इतिहास के इन सभी अध्येताओं का दल डॉ. अनुपम जैन के नेतृत्व में पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के दर्शन हेतु राजाबाजार गया। वहाँ पूज्य माताजी ने सभी को साहित्य भेंट कर मंगल आशीर्वाद दिया। प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चन्दनामती माताजी एवं क्षु. मोतीसागरजी ने विद्वानों को सम्बोधित कर उन्हें शोध कार्यों में पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया।
कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ पुरस्कार
श्री दिगम्बर जैन उदासीन आश्रम ट्रस्ट, इन्दौर द्वारा जैन साहित्य के सृजन, अध्ययन, अनुसंधान को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर के अन्तर्गत रुपये 25,000% 00 का कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रतिवर्ष देने का निर्णय 1992 में लिया गया था। इसके अन्तर्गत नगद राशि के अतिरिक्त लेखक को प्रशस्ति पत्र, स्मृति चिह्न, शाल, श्रीफल भेंट कर सम्मानित किया जाता है।
1993 से 1999 के मध्य संहितासरि पं. नाथूलाल जैन शास्त्री (इन्दौर), प्रो. लक्ष्मीचन्द्र जैन (जबलपुर), प्रो. भागचन्द्र 'भास्कर' (नागपुर), डॉ. उदयचन्द्र जैन (उदयपुर), आचार्य गोपीलाल 'अमर' (नई दिल्ली), प्रो. राधाचरण गुन्त (झांसी) एवं डॉ. प्रकाशचन्द्र जैन (इन्दौर) को कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
वर्ष 2000 एवं 2001 हेतु प्राप्त प्रविष्टियों का मूल्यांकन कार्य प्रगति पर है। वर्ष 2002 हेतु जैन विद्याओं के अध्ययन से सम्बद्ध किसी भी विधा पर लिखी हिन्दी/अंग्रेजी, मौलिक, प्रकाशित/अप्रकाशित कृति पर प्रस्ताव 31 दिसम्बर 02 तक सादर आमंत्रित हैं। निर्धारित प्रस्ताव पत्र एवं नियमावली कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ कार्यालय से उपलब्ध है। देवकुमारसिंह कासलीवाल
डॉ. अनुपम जैन अध्यक्ष 31.3.2002
मानद सचिव
102
अर्हत् वचन, 14 (1), 2002
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org