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अर्हत् वच कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर
वर्ष 13, अंक 2 अप्रैल 2001, 7 - 8
प्रकाशकीय अनुरोध
अर्हत् वचन पत्रिका का 50 वाँ अंक सुयोग से महावीर जयंती के पावन अवसर पर प्रकाशित हो रहा है। किसी भी शोध पत्रिका का 50 वाँ अंक नियमित प्रकाशन होना वैसे ही आल्हादकारी होता है फिर इसका भगवान महावीर की 2600 वीं जन्म जयंती के अवसर पर प्रकाशित होना और भी सुखद है। अपने सुधी पाठकों एवं समर्पित लेखकों का सम्बल पाकर ही हम इस मंजिल तक पहुँचे फलत: इस अवसर पर हम आप सबको बधाई देते हैं।
भगवान महावीर के 2500 वें निर्वाण महोत्सव के उपरान्त 2600 वाँ जन्म जयंती महोत्सव वर्ष के रूप में पुनः अवसर आया है जब हमें जैनधर्म की प्राचीनता, प्रासंगिकता, समीचीनता एवं ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में जैनाचार्यों के अवदान को विश्व समुदाय के सम्मुख प्रस्तुत करना है। निर्वाणोत्सव के समय भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा जैनकला एवं स्थापत्य भाग, भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी द्वारा भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ 5 भाग, भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत् परिषद द्वारा तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा 4 भाग सदृश्य कालजयी कृतियाँ विश्व समुदाय के सम्मुख आई हैं।
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भगवान महावीर के 2600 वें जन्म जयंती वर्ष के सन्दर्भ में कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर ने एक अतिमहत्वपूर्ण प्रकल्प हस्तगत किया है। 9वीं शताब्दी के दिगम्बर जैन आचार्य श्री कुमुदेन्दु ने अंकलिपि में सर्वभाषाभयी ग्रंथ 'सिरिभूवलय' की रचना की थी। अंकलिपि एवं कानड़ी अक्षर लिपि में समन्वित रूप से लिखे इस ग्रंथ में बने चार्टों में विविध बंधों के माध्यम से भारतीय संस्कृति के अनेक प्रमुख / बहुश्रुत ग्रंथ गुथित हैं। जिनको प्रकट करने से इन ग्रंथों के 9 वीं शताब्दी में प्रचलित वास्तविक पाठों को प्राप्त करना संभव होगा। कालक्रम से साम्प्रदायिक दुराग्रहों के कारण विकृत किये गये अंशों का ज्ञान होने से हम अपने सच्चे इतिहास एवं संस्कृति को भली प्रकार जान सकेंगे। साथ ही ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्रों में जैनाचार्यों के योगदान को अधिक सक्षमता से प्रदर्शित किया जा सकेगा।
आचार्यरत्न श्री देशभूषणजी महाराज द्वारा बीसवीं सदी के पाँचवें दशक में इस ग्रंथ का जो प्राथमिक अध्ययन कराया गया था उसके निष्कर्ष के आधार पर यह ग्रंथ धवला से भी अधिक परिष्कृत वैज्ञानिक एवं गणितीय ज्ञान से समृद्ध डॉ. अनुपम जैन के मार्गदर्शन में कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ ने इस ग्रंथ की पांडुलिपियों एवं अब तक कृत कार्य की खोज, संकलन, लिप्यांतरण, अनुवाद एवं आलोचनात्मक अध्ययन की एक विशेष कार्य योजना तैयार की है। अर्हत् वचन ID अंकों में इस विषय पर काफी लिखा जा चुका है। अब सम्पूर्ण योजना में समन्वय हेतु डॉ. महेन्द्रकुमार जैन 'मनुज' को कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ में शोधाधिकारी (भूवलय परियोजना) के रूप में दायित्य दिया गया है। हमें विश्वास है कि हम इस दुर्लभ ग्रंथ को विद्वत् जगत के सम्मुख प्रस्तुत कर सकेंगे।
अर्हत् वचन, अप्रैल 2001
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भारत के प्रथम राष्ट्रपति महामहिम डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने इस ग्रंथ को देखकर इसे भारत का 8 वाँ आश्चर्य निरूपित किया था एवं उनके आदेशानुसार ही इसे राष्ट्रीय अभिलेखागार
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