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माघ कृष्णा चतुर्दशी की रात्रि को ऋषभदेव कैलाश पर्वत से शिवपुर गये थे। उस रात्रि सर्व साधु संघ ने कैलाश पर्वत पर उपवास एवं जागरण कर ऋषभदेव की आराधना की थी। इस कारण यह महाशिवरात्रि और कैलाश पर्वत दोनों पूज्य हुए। इन दोनों का संबंध शिव से भी जुड़ा हुआ है। शिव को महाशिवरात्रि में शिवत्व की प्राप्ति हुई थी। उत्तर भारत में शिवरात्रि का पर्व फाल्गुन कृष्णा चतुर्दशी माना है, जबकि दक्षिण भारत में माघ कृष्णा चतुर्दशी को शिवरात्रि मनाई जाती है। उत्तर - दक्षिणी पंचांगों में मौलिक भेद के कारण यह अन्तर है। उत्तर भारत वाले मास का प्रारम्भ कृष्ण पक्ष से मानते हैं जबकि दक्षिण वाले शुक्लपक्ष से। ईशान संहिता19 में भी माघ कृष्णा चतुर्दशी को महाशिवरात्रि मानी
शिव शब्द से जुड़ा 'लिंग' शब्द का स्पष्टीकरण भी अपेक्षित है। पहले 'क्षेत्र' को लिंग शब्द से सम्बोधित किया जाता था जैसे कलिंग, दार्जिलिंग आदि। तिब्बतीय भाषा में 'लिंग' शब्द का उपयोग क्षेत्र' के लिये किया जाता है। इसी दृष्टि से शिव के साथ शिव-लिंग पूजा की परम्परा का संबंध कैलाश-क्षेत्र की पूजा से जुड़ा है जो कालान्तर में शिव - लिंग की पूजा में बदल गया है। वस्तुत: सिद्धक्षेत्र कैलाश की पूजा ही लिंग - पूजा
उक्त तथ्यों पर विचार करने पर यह स्पष्ट होता है कि आदिब्रह्मा और भगवान विष्णु के अवतार भगवान ऋषभदेव स्वयं ही शिव हैं। वे परमब्रह्म परमात्मा के साथ ही वस्त के सत् स्वरूप की तीन अवस्थाओं के प्रतीकात्मक प्रतिनिधि भी हैं। उन्हें अच्छी तरह पहिचान एवं समझकर ही हम अपने अज्ञान-मोह रूप अंधकार को दूर कर आत्म - जागरण कर सुखी हो सकते हैं और शुभ - अशुभ भावों की कर्म - संतति का नाश कर शिवत्व प्राप्त कर सकते हैं। यही शिव एवं आत्म -- स्वभाव रूप शिवत्व की आराधना है। समग्र रूप से ऋषभदेव वैदिक एवं श्रमण संस्कृति के सर्वमान्य एवं पूज्य आद्य महापुरुष हैं। साम्प्रदायिक भेद के ऊपर उठकर यदि हम उनका मूल्यांकन करें तो राष्ट्रीय एकात्मता एवं स्वसंचालित विश्व व्यवस्था के सूत्र हमें उनकी शिक्षाओं में सहज ही प्राप्त हो जायेंगे। सन्दर्भ - 1 महाशिवपुराण 7-2-9, पद 4/47. 2. प्रभाष पुराण। 3. आदि पुराण। 4. धवला, पृ. 46, भक्तामर स्तोत्र, श्लोक 25 5. पउम चरिउ। 6. महापुराण, पर्व 12,95. 7. ऋग्वेद, 10, सूत्र 121, 1. 8. महाभारत शान्ति पर्व, अ. 349. 9. ऋग्वेद 4/58/3.
अथर्ववेद, 10/7/17 अथर्ववेद, 15/42/4.
वाराह पुराण, अध्याय 74, पृ. 49. 13. लिंग पुराण, अध्याय 47, श्लोक 19-24. 14. स्कन्ध पुराण, अध्याय 37, श्लोक 57. 15. वायु पुराण, अध्याय 33, पद्य 50-52. 16. ब्रह्माण्ड पुराण, अध्याय 14, पद्य 61. 17. कूर्मपुराण, अध्याय 41, श्लोक 37-38. 18. अग्नि पुराण, 10/10-11. 19. ईशान संहिता प्राप्त - 30.1.2000
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अर्हत् वचन, अप्रैल 2001
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