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________________ विश्व की आदिलिपि मानी जाती है। उन्होंने कहा कि सत्य, ज्ञान एवं प्रकाश का उदय ऋषभ शब्द से ही हुआ है। उन्होंने वेदों एवं उपनिषदों के अनेक प्रमाण देते हुए भारत देश का नाम भगवान ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम से प्रवर्तित बतलाया। कार्यक्रम का संचालन सुप्रसिद्ध जैन विद्वान् प्राचार्य नरेन्द्रप्रकाश जैन, फिरोजाबाद ने अपने चिरपरिचित प्रभावक अन्दाज में किया। संगोष्ठी का प्रथम सत्र डॉ. मुनीशचन्द्र जोशी, पूर्व महानिदेशक, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की अध्यक्षता में प्रारंभ हुआ। इस सत्र के प्रमुख वक्ता डॉ. धर्मवीर शर्मा, अधीक्षक पुरातत्वविद, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा ने फतेहपुर सीकरी का जैन पुरा - वैभव विषय पर अपना व्याख्यान स्लाइड्स के माध्यम से प्रस्तुत किया। डॉ. शर्मा ने फतेहपुर सीकरी एवं उसके आसपास के क्षेत्रों से प्राप्त मूर्तियों एवं अन्य पुरातात्विक महत्व के अवशेषों का वर्णन करते हुए कहा कि यह क्षेत्र अत्यंत प्राचीन एवं समृद्ध रहा है। इसमें हुए उत्खनन कार्य की जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि यह क्षेत्र कभी जैन संस्कृति एवं मंदिरों का समूह रहा है। यहाँ की उत्कृष्ट कला के उदाहरण के रूप में यहां से प्राप्त जैन सरस्वती की प्रतिमा की विशेष महत्ता से परिचित कराया तथा कहा कि संपूर्ण देश में इससे सुन्दर सरस्वती की प्रतिमा नहीं है। इस सत्र का संचालन प्रतिष्ठान के संयुक्त महासचिव, जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर के प्रोफेसर डॉ. अशोक जैन ने किया। संगोष्ठी का द्वितीय सत्र आचार्य प्रभाकर मिश्र की अध्यक्षता में प्रारंभ हुआ। इस सत्र में डॉ. देवेन्द्र कुमार शास्त्री, दिल्ली एवं प्रोफेसर सत्यपाल नारंग, संस्कृत विभागाध्यक्ष, दिल्ली विश्वविद्यालय ने "संस्कृत का प्राचीनतम व्याकरण - कातन्त्र" पर अपने विचार व्यक्त किये। डॉ. शास्त्री ने बताया कि हजारों वर्ष पूर्व कातन्त्र व्याकरण की परम्परा प्रचलित रही है। डा. नारंग ने कातन्त्र व्याकरण की महत्ता को बतलाते हये कहा कि पाणिनि आदि के व्याकरणों की अपेक्षा कातन्त्र सरलतम व्याकरण है जिसका प्रचलन विदेशों तक में रहा है। संगोष्ठी के तृतीय सत्र में कातन्त्र व्याकरण पर ही डॉ. वृषभ प्रसाद जैन, लखनऊ एवं डॉ. जानकी प्रसाद द्विवेदी, वाराणसी ने विस्तृत प्रकाश डालते हुए इस व्याकरण के अध्ययन को पुन: प्रारंभ करने पर जोर दिया। इस सत्र का संचालन प्रो. अशोक जैन, ग्वालियर ने किया। द्वितीय दिवस 19.3.2001 का सत्र 'आगरा जनपद के जैन कवियों का हिन्दी साहित्य को योगदान' पर केन्द्रित रहा। जिनमें डा. रवीन्द्रकुमार जैन (मद्रास) ने 'बनारसी दास', श्री नीरज जैन (सतना) ने 'भूघरदास' डा. मक्खनलाल पाराशर (फिरोजाबाद) ने 'बह्मगुलाल', डा. कपूरचंद जैन (खतौली) ने 'भैया भगवतीदास, डा. फूलचन्द्र जैन 'प्रेमी' (वाराणसी) ने 'द्यानतराय' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला। इस सत्र के अध्यक्ष आगरा विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. जी.के. अग्रवाल ने अपने अध्यक्षीय उदबोधन में कहा कि यह आगरा जनपद के लिये अत्यन्त गौरव का विषय है कि हिन्दी, संस्कृत और अपभ्रंश साहित्य को शिखर पर पहुँचाने वाले ऐसे महान जैन कवियों का आगरा जनपद में जन्म हुआ। भोजनोपरान्त "राष्ट्र निर्माण में जैन महिलाओं का योगदान' विषय पर संगोष्ठी आयोजित हुई जिसकी अध्यक्षता इतिहासविद् प्रो. प्रतिमा अस्थाना (पूर्व कुलपति गोरखपुर विश्वविद्यालय) ने की। सर्वप्रथम मंगलाचरण डा. जयश्री जैन, आगरा ने किया। तत्पश्चात् प्राचार्या डॉ. मालती जैन, मैनपुरी ने जैन महिलाओं के समाज को प्रत्येक क्षेत्र में दिये गये योगदान पर अपने ओजस्वी विचार प्रकट किये। गोष्ठी को प्रो. पुष्पलता जैन (नागपुर), डा. सुधा जैन (बिलासपुर), डा. नगीना जैन (आगरा), डॉ. ज्योति जैन (खतौली), डॉ. पुष्पा सिंघई (वाराणसी), डॉ. कल्पना जैन (आगरा), डॉ. विमला जैन (फिरोजाबाद), श्रीमती सरोज जैन (बीना), डॉ. नीलम जैन (गाजियाबाद) आदि विदुषी महिलाओं ने सम्बोधित किया। * मंत्री - ऋषभदेव प्रतिष्ठान, आगरा 92 अर्हत् वचन, अप्रैल 2001 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526550
Book TitleArhat Vachan 2001 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2001
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size14 MB
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