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________________ कठिन रास्ते से चलने लगते हैं। 7 क्षत्रिय पुत्र को जिसे कोई हरण न कर सके ऐसे यशरूपी धन की रक्षा करनी चाहिये, क्योंकि इस पृथ्वी में निधियों को गाड़कर अनेक लोग मर चुके हैं। जो रत्न एक हाथ पृथ्वी तक भी साथ नहीं जाते और जिनके लिये राजा लोग मृत्यु प्राप्त करते हैं, ऐसे रत्नों से क्या लाभ?8 राजाओं को वृद्ध मनुष्यों की सलाह मानना चाहिये क्योंकि उनकी स्थिति विद्या की अपेक्षा बहुत अनुभव की होती है। प्रेम और विनय, इन दोनों का मिलन कुटुम्बी लोगों में ही संभव हो सकता है। यदि उन्हीं कुटुम्बी लोगों में विरोध हो जाये तो उन दोनों की गति नष्ट हो जाती है। 10 राजाओं को अपने सम्मान का ध्यान रखना चाहिये। तेजस्वी मनुष्य को जो कुछ अपनी भुजा रूपी वृक्ष का फल मिलता है उसके लिये मोह रूपी लता का फल अर्थात् मोह के इशारे से प्राप्त हुआ चार समुद्र पर्यंत पृथ्वी का ऐश्वर्य भी प्रशंसनीय नहीं है। जिस प्रकार ( डूण्डभ) पनिया सांप, सांप शब्द को निरर्थक करता है उसी प्रकार जो मनुष्य राजा होकर भी दूसरे की आज्ञा से अपहृत हुई लक्ष्मी को धारण करता है, वह 'राजा' शब्द को निरर्थक करता उत्तम राजा पराक्रम युक्त, गंभीर, उच्चवृत्ति वाला और मर्यादा सहित होता है। वह केवल प्रजा से कर ही नहीं लेता अपितु उसे देता भी है। वह प्रजा को दंड नहीं देता अपितु उसकी रक्षा भी करता है। इस प्रकार धर्म के द्वारा उसकी विजय होती है। 11 12 13 महापुराण के अनुसार राजा के गुण महापुराण के कथनानुसार राजा अपने चित्त का समाधान करते हुए दुष्ट पुरुषों का निग्रह और श्रेष्ठ पुरुषों का पालन करता है, वही उसका समज्जसव्व गुण है। 14 इसी पुराण के अनुसार राजाओं में छह गुण संधि, विग्रह, यान, संस्था और द्वेधीभाव का होना अनिवार्य माना गया था। इसी पुराण के अनुसार राजा को साम, दाम, दंड एवं भेद का ज्ञान और सहाय साधनों, देश विभाग, काल विभाग तथा विनिपात प्रतिकार आदि पांच अंगों से निर्णित संधि एवं विग्रह और युद्ध के रहस्य का ज्ञान होना चाहिये। 15 हरिवंश पुराण में प्रतिपादित राजा के गुण हरिवंशपुराण के रचयिता जिनसेनाचार्य 'राजा' के गुणों का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि सूर्य सी प्रभा जिस महापुरुष में होती है वह 'राजा' बनने की योग्यता रखता है तथा जो पुरुषार्थ की भावना से ओतप्रोत है एवं प्रजा के सभी कष्टों का निवारण करने के लिये तत्पर रहता है वही राजा होने की पात्रता रखता है। आगे वे लिखते हैं कि राजा के गुणों की तुलना किसी से भी नहीं की जा सकती | राजा को धर्माचार्य होना चाहिये क्योंकि दूसरों का हित अहित जानने वाले राजा ही राज्य व्यवस्था करने में सफल होते हैं, अन्य नहीं। 16 यदि हाथी, घोड़ा, स्त्री आदि कोई वस्तु संसार में अमूल्य हो और प्रजा के योग्य न हो तो राजा के लिये हितकारी है। जिस प्रकार समुद्र हजारों नदियों और उत्तम रत्नों की खान है, उसी प्रकार राजा भी इस लोक में अनर्घ्य वस्तुओं की खान है। 'कैसा है राजा सिद्ध भये है पुरुषार्थ जाके अरु जो सब अर्थ का देखनहारा है, राजा के गुण अतुल हैं, जिन गुणन करि वह नरधिवति त्रैलोक्य के गुरु जो वर्धमान है तिनका गुरु पिता होता भया । ' 17 उत्तरपुराण में वर्णित राजा के - गुण 30 आचार्य गुणभद्रजी के अनुसार राजा को आन्वीक्षिकी, त्रयी, वार्ता और दंड इन चार विद्याओं में पारंगत होना चाहिये। जिसकी प्रजा दंड के मार्ग में नहीं जाती और इस कारण जो राजा दंड का प्रयोग नहीं करता वह श्रेष्ठ माना जाता है। 18 राजा को दानी अर्हत् वचन, जुलाई 2000
SR No.526547
Book TitleArhat Vachan 2000 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2000
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size17 MB
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