SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अर्हत् वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर, वर्ष - 12, अंक - 3 जुलाई 2000, 29 - 34 प्रमुख जैन पुराणों में प्रतिपादित राजा के गुण-दोष ■ सरोज चौधरी * राज्य के उत्तरदायित्व को वहन करने के लिये राजा में ऐसे गुण होना चाहिये, जिससे कि वह राज्य का संचालन सम्यक प्रकार से सम्पन्न कर सके। इसी कारण प्राचीन मनीषियों ने भी राजाओं के गुणों का निर्धारण किया है। जैन पुराणों में भी राजाओं के गुणों का विस्तृत वर्णन किया गया है। विभिन्न विद्वानों का विचार है कि राजा एक ऐसा व्यक्ति होता है जो राजसत्ता की उन शक्तियों को अपने में निहित रखता है जिसके द्वारा राज्य का संचालन और नियमन होता है। राज्य के संचालन से अभिप्राय विधिवत अर्थ और काम से है, इतना ही नहीं राजा का अस्तित्व संत्ता के व्याप्त होने से है। गुणी राजा दुष्टों का निग्रह करता है और सज्जन पुरुषों को प्रश्रय देता है। पद्मपुराण में वर्णित राजा के गुण पद्मपुराण में राजा के गुणों का वर्णन करते हुए पुराण प्रणेता रविषेणाचार्यजी ने लिखा है कि राजा को नीतिज्ञ, शूरवीर और अहंकार रहित होना चाहिये । शूरवीरता के द्वारा राजा समस्त लोगों की रक्षा करता है। राजा को जैन धर्म के रहस्य का ज्ञाता, शरणागत वत्सल, परोपकारी, दयावान, विद्वान, विशुद्ध हृदयी अर्थात् विशाल हृदय वाला, निंदनीय कार्यों से पृथक, पिता के तुल्य प्रजारक्षक प्राणियों की भलाई में तत्पर शत्रु संहारक शस्त्रास्त्र का अभ्यासी शांति कार्य में अभ्यस्त, परस्त्री से विरत, संसार की नश्वरता के कारण धर्म में रूचिवंत, सत्यवादी और जितेन्द्रिय होना चाहिये। 1 राजा को नीतिपूर्वक कार्य करने वाला होना चाहिये। समुद्र के समान गम्भीर परमार्थ को जानने वाला श्रेष्ठ राजा माना गया है। राजा में सब वर्ण, धर्म, कल्याण प्रकृति, कलाग्राही, लोकधारी, प्रतापी, धनी, व्यायाम से अभिमुख, आपत्ति के समय व्यग्रतारहित, विनम्र, मनुष्य का सम्मानदायी, सज्जनों का प्रेमदानी, हस्तिमदमर्दन आदि गुणों से संयुक्त होना चाहिये। 2 इसी पुराण के अनुसार राजा के इस विशिष्ट गुण का वर्णन करते हुए लिखा है कि वह ब्राह्मण, मुनि, निहत्थे व्यक्ति और स्त्री, बालक, पशु एवं दूत के ऊपर प्रहार नहीं करता है। इसी पुराण के अनुसार श्रेष्ठ राजा को लोकतंत्र, जैन व्याकरण एवं नीतिशास्त्र का ज्ञाता, महान गुणों से विभूषित होना चाहिये। 4 राजा प्रचुर कोश का स्वामी, शत्रु विजेता, अहिंसक धर्म का पालन कर्ता, सत्यवादी एवं जीवों का रक्षक होता है इसलिये उन्हें रक्षक कहा है। पिता के समान न्याय वत्सल, प्रजा की रक्षा करना, विचारपूर्वक कार्य करने वाला, दुष्ट मनुष्य को कुछ देकर वश में करना, स्नेहपूर्ण व्यवहार द्वारा आत्मीयजनों को अनुकूल रखने वाला, क्षमा से क्रोध को, मार्दव से मान को, आर्जव से माया को, संतोष से लोभ को वश में करने वाला, राजा के ये गुण माने जाते हैं। 5 आदिपुराण में प्रतिपादित राजा के गुण आदिपुराण में राजा के गुणों का वर्णन करते हुए आचार्य जिनसेन स्वामी लिखते हैं कि राजा अनुराग अथवा प्रेम से अपने मंडल (देश) को धारण करता है। राजा को अग्रगामी होना चाहिये । यदि राजा आगे चलता है तो अल्पशक्ति के धारक लोग भी उसी 6 * शोध छात्रा कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, 584, महात्मा गांधी मार्ग, इन्दौर। निवास- 1 /5, छोटी ग्वालटोली, इन्दौर
SR No.526547
Book TitleArhat Vachan 2000 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2000
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy