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गतिविधियाँ प्राकृत भाषा भारतीय संस्कृति की अन्तरात्मा है
प्रो. भोला शंकर व्यास 26.12.99 को शारदानगर कालोनी, वाराणसी स्थित अनेकान्त विद्या भवनम् में 'इक्कीसवीं शती में प्राकृत भाषा एवं साहित्य विकास की संभावनायें' विषय पर आयोजित परिचर्चा संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे प्रो. भोलाशंकर व्यास ने कहा कि प्राकृत भाषा मात्र भाषा ही नहीं बल्कि यह भारत की अन्तरात्मा और संपूर्ण सांस्कृतिक पहचान का माध्यम है। आज भी इसका प्राय: सभी भाषाओं पर प्रभाव विद्यमान है। अनेक प्रादेशिक और लोक भाषायें इसी से उद्भूत हैं किन्तु विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में इसकी उपेक्षा असहनीय है। संस्कृत, हिन्दी आदि भाषा साहित्य के अध्ययन के साथ प्राकृत का अध्ययन अनिवार्य कर देना चाहिए। संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय की साहित्याचार्य तथा अन्य परीक्षाओं में इसका एक प्रश्न पत्र जरूर होना चाहिए तभी प्राकृत भाषा और साहित्य की सुरक्षा होगी।
प्रमुख वक्ता के रूप में प्रो. लक्ष्मीनारायण तिवारी ने कहा कि प्राकृत भाषा और साहित्य में हमारी भारतीय संस्कृति का हार्द समाया हुआ है। अत: इसकी रक्षा और विकास के लिए संघर्ष की आवश्यकता है साथ ही शताब्दियों पूर्व स्थापित यह भ्रम. टूटना चाहिए कि संस्कृत भाषा से प्राकृत भाषा की उत्पत्ति हुयी। यथार्थ यह है कि संस्कृत भी प्राकृत से व्युत्पन्न है। जहां इसका और विकास तथा विस्तार होना
चाहिए वहीं विश्वविद्यालय अनुदान मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए प्रो. भोलाशंकर व्यास। बायें प्रसिद्ध पुरातत्वविद् आयोग नई दिल्ली ने राष्ट्रीय प्रो. रमेशचन्द्र शर्मा तथा दायें प्राकृत के अग्रणी विद्वान् प्रो. लक्ष्मीनारायण तिवारी
ये प्राकृत क अग्रणा विद्वान् प्रा. लक्ष्मानारायण तिवारा पात्रता परीक्षा (नेट) से प्राकत भाषा को हटाकर मूलभूत भारतीय भाषा और संस्कृति के साथ अन्याय किया है (डा. सुदीप जैन, सम्पादक-प्राकृत विद्या, ने सूचना दी है कि डा. मण्डन मिश्र के अथक प्रयासों से यह पुन: नेट में पूर्ववत सम्मिलित कर ली गई है। - सम्पादक) तथा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय जैसे विशाल
और गौरवपूर्ण विश्वविद्यालय में प्राकृत अध्ययन का अभाव भी कम आश्चर्यकारी नहीं है। पहले के मम्मट इत्यादि विद्वानों ने अलंकार और ध्वनियों के उदाहरण में प्राकृत के छंदों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग किये हैं। आपने रामभक्त हनुमान को प्राकृत भाषा का विशेषज्ञ बतलाते हुए कहा कि जिस समय रावण ने सीता का अपहरण किया तब सीता से मिलने हनुमान पहुँचे तो हनुमान ने सीता से संस्कृत की अपेक्षा प्राकृत भाषा में बात करना इसलिए उचित समझा कि कहीं वे मुझे वानर वेश धारी प्रकाण्ड संस्कृतज्ञ रावण ही न समझ बैठे।
_ संगोष्ठी के संयोजक संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में जैन दर्शन विभागाध्यक्ष डॉ. फूलचन्द जैन 'प्रेमी' ने कहा कि प्राकृत भाषा अपने देश की प्राचीनतम मूल जीवन्त भाषा है, जिसे अनेक प्रादेशिक भाषाओं तथा राष्ट्र भाषा हिन्दी की जननी होने का गौरव प्राप्त है। प्राकृत भाषा का विशाल वांङ्गमय आज भी विद्यमान है किन्तु इसकी वि.वि. क्षेत्रों में हो रही उपेक्षा से चिंतित होना अर्हत् वचन, अप्रैल 2000
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