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श्री सूरजमल बोबरा, प्रो. सी. के. तिवारी, प्रो. जे. सी. उपाध्याय के निर्णायक मंडल की अनुशंसा पर रामकथा संग्रहालय फैजाबाद के पूर्व निदेशक एवं विख्यात इतिहासवेत्ता डॉ. शैलेन्द्रकुमार रस्तोगी को उनकी कृति 'जैनधर्म कलाप्राण भगवान ऋषभदेव' पर प्रदान किया गया। इस पुरस्कार के अन्तर्गत शाल, श्रीफल एवं प्रशस्ति के अतिरिक्त रु.5,000/- की राशि भी प्रदान की गई।
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प्रतिष्ठित कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ पुरस्कार - 98 इस वर्ष प्रो. राधाचरण गुप्त, पूर्व प्राध्यापक- गणित, बिरला प्रौद्योगिकी संस्थान, मेसरा (रांची) एवं सम्पादक गणित भारती (झांसी) को उनकी कृति 'जैन गणित' पर प्रदान किया गया । ( पुरस्कृत विद्वानों के चित्रों हेतु देखें कवर - 2 एवं 3 ) उनको यह पुरस्कार प्रो. ए. ए. अब्बासी - इन्दौर, प्रो. सुरेशचन्द्र अग्रवाल- मेरठ एवं पं. शिवचरणलाल जैन मैनपुरी के त्रिसदस्यीय निर्णायक मंडल की सर्वसम्मत अनुशंसा के आधार पर प्रदान किया गया। पुरस्कार समर्पण समारोह के अवसर पर अपने उद्गार व्यक्त करते हुए प्रो. गुप्त ने कहा कि 'अति अल्प अवधि में अधुनातन तकनीकों के माध्यम से इस संस्थान ने शोध के क्षेत्र में इतनी अधिक प्रगति कर ली है, जो श्लाघनीय है। कार्य को मूर्त रूप देने वाले अनुपमजी तो अनुपम ही हैं। इतनी कम उम्र में इतना काम करने वाले बहुत ही कम मिलेंगे। मैं आभारी हूँ इस संस्था का जिसने मुझे मेरे काम के लिये सम्मानित किया है। मैं 40-50 वर्षों से गणित पर काम कर रहा हूँ। इसमें वैदिक गणित भी है, अन्य गणित भी है पर मुझे जो आनन्द जैन गणित पर काम करने में आया वह अद्वितीय है। यह वर्ष (2000) विश्व गणितीय वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। इस संस्थान ने गणित पर पुरस्कार देकर सूझ बूझ का परिचय दिया है। वास्तव में आज के तकनीकी युग में कोई काम बिना गणित के नहीं चलता। आज भगवान ऋषभदेव का जन्मदिन है जिन्होंने अपनी पुत्री सुन्दरी को गणित सिखाया। गणित सार संग्रह बड़ा महत्वपूर्ण ग्रन्थ है, और भी कई ग्रन्थ हैं। आज जो पुरस्कार मुझे जिस संकलन पर दिया गया है उसका पहला लेख मैंने 1975 में लिखा था। उसकी भी सिल्वर जुबली मनाई जा रही है। यह भी एक संयोग है। जम्बूद्वीप की परिधि की पूरी गणना करके हमनें जो मान निकाला था वह जैन ग्रन्थों से पूरा मेल खाता है। मैंने यह काम प्राचीन जैन ग्रन्थों में उपलब्ध सूत्रों के आधार पर किया था । तिलोयपण्णत्ती के कुछ अंश पांडुलिपि में नष्ट हो जाने से पहले अनुपलब्ध होने से मैंने उस अंश के कुछ सूत्र निकाले जिनके आधार पर मैं अपने काम को मंजिल तक जा सका। यह सूत्र तिलोयपण्णत्ती के आगामी संस्करण में देख मुझे हर्ष हुआ। मैं इस संस्थान का जैन गणित के क्षेत्र में कार्य करने हेतु दिये गये प्रोत्साहन हेतु आभारी हूँ।'
कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ पुरस्कार निर्णायक मंडल के अध्यक्ष प्रो. ए. ए. अब्बासी ने कहा कि कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ की दुत प्रगति को मैं देख रहा हूँ। अधिकांश संस्थाओं में नेतृत्व बुजुर्गों के हाथ में रहता है। उन्होंने बुजुर्गों की ओर इशारा करते हुए विनोदपूर्ण लहजे में कहा कि 'हमारी और आपकी लाल बत्ती जल चुकी है इसलिये पता नहीं कब बुलावा आ जाये। किन्तु यहाँ नेतृत्व ने अनुपम जैसे युवा को जोड़ रखा है इसलिये इस संस्था की दीर्घकाल तक निर्बाध प्रगति सुनिश्चित है। अनुपम तो हर वक्त ज्ञानपीठ की तरक्की का ही चिंतन करता है।' मुख्य अतिथि न्यायमूर्ति जैन ने भगवान ऋषभदेव के जीवन पर अपने विचार रखते हुए सभी पुरस्कृत विद्वानों को बधाई दी तथा आयोजकों को ऐसे श्रेष्ठ कार्यों हेतु साधुवाद दिया।
कहा कि
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कार्यक्रम के अध्यक्ष विक्रम वि.वि. के पूर्व कुलपति प्रो. 'भगवान ऋषभदेव जन्मजयंती समारोह के पावन
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आर. आर. नांदगांवकर ने
पर्व पर कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ
अर्हत् वचन,
अप्रैल 2000