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अर्हत्व कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर
अर्हत् वचन, 10 (3), जिज्ञासा प्रकट की गई है में प्राप्त हैं ?'
कि
पत्र में लेख
अर्द्धपद्मासन प्रतिमाएँ
■ शिवकुमार जैन
जुलाई - 98, पृ. 71 में श्री कुन्दनलाल जैन, प्राचार्य द्वारा
'क्या अर्हन्तों की प्रतिमाएँ सुखासन या अर्द्धपद्मासन
-
इस सन्दर्भ में जिज्ञासु लेखक को निवेदन करना चाहता हूँ कि मूल दक्षिण भारत की अधिसंख्य बैठी हुई प्रतिमायें, अर्द्धपद्मासन ( सुखासन) में उपलब्ध हैं। स्वयं लेखक के अनुसार (यदि यह उद्धरण स्व. अजितप्रसादजी का नहीं है)। 'किन्तु हैदराबाद (दक्षिण) के केसरगंज में बीसों प्राचीन मूर्तियाँ अर्द्धपद्मासन बिराजमान हैं तब उनकी जिज्ञासा / सन्देह का मर्म रहस्यमय है तथा लेखक महोदय को भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन 'जैन कला और स्थापत्य' में 'सुखासन वाली कोई प्रतिमा का चित्र दृष्टिगोचर नहीं होना भी आश्चर्यजनक है। मैं उनका ध्यान उक्त ग्रन्थ में प्रकाशित निम्न चित्रों की ओर आकृष्ट करना चाहता हूँ जो अर्द्ध पद्मासन की प्रतिमाओं के हैं । यथा -
खण्ड 1
चित्र संख्या - 88
खण्ड 2
चित्र संख्या क्रमश: 123, 133, 135, 136, 138, 206, 208, 218, 257
खण्ड 3
चित्र संख्या क्रमश: 308, 309, 312, 320, 325, 328, 339, 383 भारतवर्ष के दि. जैन तीर्थ, भाग 5 -
चित्र संख्या : 2, 5, 9, 13, 22, 38, 42, 45, 47, 49, 52, 57 तथा 100
उत्तर भारत की प्रतिमा निर्माण शैली अर्द्धपद्मासन की नहीं है। अतः उत्तर भारत के मंदिरों में विराजमान अर्द्धपद्मासन की धातु प्रतिमायें मूलतः दक्षिण भारत की हैं जिन्हें उत्तर भारतीय तीर्थ यात्रियों द्वारा दक्षिण भारत से लाया गया है तथा दक्षिण भारतीय भट्टारक महोदयों द्वारा भी लाया / उपलब्ध कराया गया है। वर्तमान समय में भी दक्षिण भारत के बाजारों और मठों में धातु प्रतिमाएँ सहज विक्रय हेतु उपलब्ध हैं।
अर्हत् वचन, अप्रैल 2000
श्री टी. एन. रामचन्द्रन की पुस्तक JAIN MONUMENTS AND PLACES OF FIRST CLASS IMPORTANCE' में प्रकाशित अर्द्धपद्मासन प्रतिमाओं के अनेक चित्रों में से 3 चित्र ( अगले पृष्ठ पर ) लेखक महोदय की शंका समाधान हेतु प्रस्तुत कर रहा हूँ।
* 37 / 7 बी, खेलात बाबू लेन,
कलकत्ता - 700037
तीर्थ एवं जिन प्रतिमाएँ हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं।
इनके संरक्षण एवं विकास में
हम सभी को योगदान देना चाहिये ।
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