SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अंकुश, तोरण, चमर, श्वेतछत्र, ध्वजा, सिंहासन, दो मछलियां, दो घड़े, समुद्र, चक्र, तालाब, विमान, लागभवन, पुरुष स्त्री का जोड़ा, बड़ा भारी सिंह, तोमर, गंगा इन्द्र, सुमेरू, गोपुर, चन्द्रमा, पुर, सूर्य, घोड़ा, बीजना, मृदंग, सर्प, माला, वीणा, वसुरी, रेशमी वस्त्र, दैदीप्यमान, कुण्डल, विचित्र आभूषण, फल सहित बगर, पके हुए अनाज वाला खेत, हीरा रतन, बड़ा दीपक, पृथ्वी, लक्ष्मी, सरस्वती सुवण, कल्पबेल, चूडा रत्न, महानिधि, गाय, बैल, जामुन का वृक्ष, पक्षिराज, सिद्धार्थ वृक्ष, महल, नक्षत्र, गृह प्रतिकार्य आनि दिव्य एक सौ आठ लक्ष्क्षों से तथा नौ सौ सर्वश्रेष्ठ व्यंजनों से विचित्र आभूषणों से और मालाओं से प्रभु का स्वभाव सुन्दर दिव्य औदारिक शरीर अत्यन्त सुशोभित हआ। 15 भगवान के लक्षणों में पर्यावरण के इन तत्वों अंगों का शामिल होना भगवान द्वारा ही इन तत्वों को महत्व प्रदान करता है। जिसके लिए भगवान महत्व प्रदान करते उनको अनुयायियों द्वारा महत्व दिया ही जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त भगवान के 10 अतिशय में वृक्ष भी शामिल हैं। भगवान महावीर को प्रकृति के साथ कई तरह से जोड़ा गया। महावीर के संसार में आने की सूचना प्रकृति के अंगों से दी गयी। उनकी माता त्रिशला देवी को स्वप्न में 16 प्रकार की वस्तुएं दिखीं। 1. मदोन्मत्त हाथी, 2. गंभीर शब्द और ऊंचे कंधे वाला चन्द्रमा के सदृश्य शुभ्र कांति वाला बैल, 3. अपूर्व कांति वृहद् शरीर और लाल कंधे वाला सिंह, 4. कमलरूपी सिंहासन पर आरोहित लक्ष्मीदेवी को देव स्नान कराते हुए, 5. सुगंधित दो माला, 6. ताराओं से घिरा हुआ चन्द्रमा, 7. सूर्य उदयाचल पर्वत से निकलते हुए, 8. कमल के पत्तों से आच्छादित मुंहवाले सोने के दो मल, 9. तालाब में क्रीड़ा करती हुई मछलियां यह तालाब कुमुदनी एवं कमलिनी से खिल रहा था। 10. भरपूर ताल जिसमें कमलों की पीली रज तैर रही थी। 11. गंभीर गर्जना करता हुआ चंचल तरंगों से युक्त समुद्र। 12. दैदीप्यमान मणि से युक्त ऊंचा सिंहासन। 13. बहुमूल्य रत्नें से प्रकाशित स्वर्ग का विमान, 14. पृथ्वी को फाड़कर ऊपर की और आता हआ फणीन्द्र का ऊंचा भवन, 15. रत्न की विशाल राशि, 1 अग्नि। इन स्वप्नों का फल सिद्धार्थ ने बताया। उन्होंने वही बताया जो हुआ लेकिन यहां महत्व इस बात का है कि प्रकृति के लगभग प्रत्येक अंग को महत्व दिया गया। भगवान के संदर्भ में शुभपरिणाम घोषित किये गये। मनुष्य का प्रकृति से संबंध सुन्दर होता है। जैन साहित्य में प्रकृति के प्रत्येक अंग को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। जीव का अस्तित्व होने पर उन्हें विनष्ट या हानि न पहुंचाने के लिए सिद्धांतों और पाप - पुण्य के नियमों से उन्हें सुरक्षित रखने का आव्हान तो किया ही है, साथ ही उन्हें यथोचित सम्मान भी दिया गया है। जैन साहित्य लोक के वर्णन में प्रकृति के समस्त घटकों की अपरिहार्यता पर बल दिया गया है एवं महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। मानव के परस्पर सौहार्द्र एवं सौमनस्यपूर्ण व्यवहार पर्यावरण संतुलन के लिए अत्यंत आवश्यक है। यह सोच विश्वव्यापी होना अनिवार्य है अन्यथा पृथ्वी का ताप बढ़ने, ओजोन परत नष्ट होने, समुद्र जल स्तर बढने आदि से मनुष्य जाति पर संकट आ सकता है समय से पहले विश्व युद्ध हो सकता है। भारत - पाक, अरब - इजराइल समस्या एक ऐतिहासिक वैमनस्यता का परिणाम है। मानव में परस्पर सौहार्द्र पूर्वक संबंध एवं प्रकृति के जीवों के प्रति चेतना एवं सम्मान के लिए उमास्वामी का मोक्षशास्त्र में लिखा महावीर का उपदेश रूपी एक वाक्य ही पर्याप्त अर्हत् वचन, अप्रैल 2000 61
SR No.526546
Book TitleArhat Vachan 2000 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2000
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy