SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बैल सेही वज्र आदि अनेक प्रकार के दो इन्द्रिय होते हैं। स्पर्श, रसना, घ्राण को धारण किये हुए चींटी आदि तीन इन्द्रिय जीव हैं। स्पर्श, रसना, घ्राण, चक्षु वाले चार इन्द्रिय जीव हैं। स्पर्श, रसना, घ्राण, चक्षु व श्रोत इन पांच इन्द्रियों को ग्रहण करने वाले मनुष्य, मृग, पशु, पक्षी, देव, नारकी आदि ये पांच इन्द्रियों को धारण करने वाले जीव हैं। इन जीवों के हृदय में अष्टदल कमलाकर कमल के समान एक मांस का पिण्ड या टुकड़ा होता है उसको द्रव्य मन कहते हैं। भाव मन को प्राप्त किये हुए जीव के अन्दर ग्रहण और मनन की शक्ति होती है। इन जीवों को सैनी पंचेन्द्रिय जीव कहते हैं। द्रव्य मन से रहित जीवों को मनन करने की शक्ति नहीं रहने वाले जीवों को असैनी पंचेन्द्रिय जीव कहते हैं। इन जीवों को न सताने के लिए सिर्फ जीव हिंसा का त्याग ही सिद्धांत के रूप में अपनाने के लिए ही नहीं कहा गया है, बल्कि तीर्थंकरों ने पशु, पक्षी एवं वनस्पति को महत्व भी दिया। तीर्थकरों के चिन्ह पर्यावरणीय तत्व ही हैं। प्रकृति के अंगों को तीर्थकरों के चिन्ह के रूप में निरूपित करने में प्रकृति के प्रति महत्व को ही बताया गया है। 24 तीर्थंकरों के क्रम से चिन्ह इस प्रकार हैं - 1. श्री ऋषभदेव 13. श्री विमलनाथ शूकर 2. श्री अजितनाथ हाथी 14. श्री अनंतनाथ 3. श्री संभवनाथ घोड़ा 15. श्री धर्मनाथ 4. श्री अभिनंदननाथ बन्दर 16. श्री शांतिनाथ हिरण 5. श्री सुमतिनाथ चकवा 17. श्री कुन्थुनाथ बकरा 6. श्री पद्मनाथ कमल 18. श्री अरहनाथ मछली 7. श्री सुपार्श्वनाथ साथिया 19. श्री मल्लिनाथ कलश 8. श्री चन्द्रप्रभु चन्द्रमा 20. श्री मुनिसुव्रतनाथ कछवा 9. श्री पुष्पदन्त मगर 21. श्री नमिनाथ नीलकमल 10. श्री शीतलनाथ कल्पवृक्ष 22. श्री नेमिनाथ शंख 11. श्री श्रेयांसनाथ 23. श्री पार्श्वनाथ नाग 12. श्री वासुपूज्य भैंसा 24. श्री वर्द्धमान जीव जन्तुओं पर एक समग्र सोच न बनने से छोटे - छोटे निरीह एवं मूक प्राणी उपेक्षित रह जाते हैं। पशुओं एवं अन्य जन्तुओं के प्रति मानवता के स्थान पर वाणिज्यिक दृष्टिकोण अपनाया जा रहा है। हमारी संस्कृति मानवतावादी रही है। जीव, जन्तुओं एवं वनस्पति के प्रति संरक्षणवादी नीति तभी अपनायी जा सकती है जब मानव का अन्तर्मन इसको प्रेरित करें। कानून के साथ ही चेतना की भी आवश्यकता है। यह तभी संभव है जब हम स्वयं में एवं प्रकृति के समस्त घटकों में चेतना का अनुभव करें तभी सभी जन्तुओं एवं वनस्पति के प्रति संवेदनाके भाव का विकास संभव हो सकेगा। भगवान महावीर और उनका तत्व दर्शन में भगवान के लक्षण बताये गये हैं। "दिव्य शरीर को पाकर वे प्रभु ऐसे सुशोभित हो रहे थे जैसे धर्मात्माओं को पाकर धर्मादि गुण सुशोभित होते हैं। उन भगवान के लक्षण ये हैं। श्री वृक्ष, शंख, पद्म, स्वास्तिक, अर्हत् वचन, अप्रैल 2000 60 गैंडा सिंह
SR No.526546
Book TitleArhat Vachan 2000 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2000
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy