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________________ कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ के ज्ञान अनुष्ठान का सहभागी बनना एक सुखद प्रसंग है। सीमित साधनों के साथ निष्ठावान और समर्पित कार्यकर्ताओं ने जिन प्रतिमानों की रचना की है, वह श्लाघ्य है। अर्हत् वचन के माध्यम से शोध के कीर्तिमान स्थापित करने के अनन्तर पाण्डुलिपियों के सूचीकरण की परियोजना श्रुत संवर्द्धन की दिशा में एक नया अध्याय है। सूचना प्रोद्यौगिकी का प्रयोग एक स्तुत्य प्रयास है। काकासाहब और बाबूसाहब की संकल्पनाओं को मूर्त रूप दे रहे युवा अध्येता डॉ. अनुपम जैन का सुव्यवस्थित अहर्निश परिश्रम तो प्रेरणास्पद है ही, उनके सहकर्मियों की निष्ठा और चेहरे पर बिना शिकन लाये काम करने की जुगत आज के दौर में अनुपम है। कोटिश: बधाइयाँ। 29.3.2000 . प्रो. नलिन के. शास्त्री समायोजक - महाविद्यालय विकास परिषद, मगध वि.वि., बोधगया - 824 234 I have visited the Jñanapitha and found the library very excellent with its limited resources. I feel it should be a leading centre of research in the field of Jainology not only in India but in abroad too. I am really impressed by the dynasim of Dr. Anupam Jain. 29.3.2000 . Dr. Ashoka K. Mishra Reader-Dept. of History, Culture and Archaelogy, Dr. Ram Manohar Lohia Avadh University, Faizabad (U.P.) नया स्तम्भ - आगम का प्रकाश : जीवन का विकास अर्हत् वचन की लोकप्रियता एवं समसामयिक उपयोगिता में अभिवृद्धि एवं इसके पाठकों को जिनागम के गूढ रहस्यों से सहज परिचित कराने हेतु हम एक स्तम्भ 'आगम का प्रकाश-जीवन का विकास' अगले अक से प्रारम्भ कर रहे हैं। ___ इस स्तम्भ के अन्तर्गत हम ऐसे लघु शोध आलेख या टिप्पणी प्रकाशित करेंगे जिसमें निम्नांकित विशेषताएँ हों - 1. जैनागम का कोई मूल उद्धरण अवश्य हो। 2. हमारे जीवन में सीधा उपयोगी हो। अर्हत वचन के पाठक इस स्थल पर अपने जीवन के विकास / सुख / शांति के लिये कुछ प्राप्त करने के उद्देश्य से इस अंक की उत्सुक्ता से प्रतीक्षा करें व उन्हें अवश्य इससे कुछ शांति मिले। 3. जैन दर्शन के कोई कम प्रचारित या दबे हुए पक्ष की जीवन में महत्ता उद्घाटित होती हो। 4. नवीन वैज्ञानिक अनुसंधानों के परिप्रेक्ष्य में महत्वपूर्ण हो। उपर्युक्त 4 बिन्दुओं में प्रथम दो आवश्यक हैं व शेष 2 आवश्यक तो नहीं किन्तु हो जाये तो अच्छा है। सम्पादक मंडल के माननीय सदस्य प्रो. पारसमल अग्रवाल - ओक्लोहोमा (अमेरिका) के सुझाव पर प्रारम्भ इस स्तम्भ के अन्तर्गत प्रथम आलेख उनका ही - "जैनागम में प्राणायाम एवं ध्यान' अर्हत् वचन के जुलाई - 2000 अंक में प्रकाश्य है। सुधी पाठकों से उक्त निर्देशों के अनुरुप आलेख प्रेषित करने का निवेदन है। - सम्पादक अर्हत् वचन, अप्रैल 2000
SR No.526546
Book TitleArhat Vachan 2000 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2000
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size6 MB
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