SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वारा ऋषभ देशना के विशेषांकों का लोकार्पण सम्पन्न हुआ। दिनांक 6 फरवरी को आयोजित सर्व धर्म सभा में विभिन्न गुरुओं के अतिरिक्त प्रख्यात पुराविद श्री मुनीशचन्द्र जोशी एवं प्रो. प्रभाकर मिश्र- पूर्व कुलपति के उदबोधन अत्यन्त प्रभावी रहे। पूर्व कुलपति प्रो. मिश्र ने कहा कि ऋषभ के अनुसंधान से ही देश का कल्याण संभव है। सम्पूर्ण कलाओं एवं विद्याओं का इसमें समावेश है। भगवान ऋषभदेव ने सष्टि के प्रथम राजा बनकर समस्त शासकों को शासन करना सिखाया। पुराविद डॉ. मुनीशचन्द्र जोशी ने कहा कि यदि हम भगवान ऋषभ के 6 सिद्धान्तों पर चलें तो देश की अर्थ व्यवस्था सुधर सकती है, देश से हिंसा, भ्रष्टाचार, अनाचार मिट सकता है। श्वेताम्बर जैन मुनि अमरेन्द्रजी, साध्वी प्रवीणाजी, जत्थेदार रिछपालसिंहजी ने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम का संयोजन श्री हृदयराज जैन ने एवं संचालन डा. अनुपम जैन ने किया। इसी अवसर पर पूज्य आर्यिका श्री चन्दनामती माताजी द्वारा रचित सचित्र 'ज्ञानाञ्जलि' पुस्तक का विमोचन किया गया। दिनांक 8 फरवरी को केन्द्रीय लोक निर्माण मंत्री श्री राजनाथसिंह आल्या एवं लोकप्रिय सांसद श्री राघवजी पधारे। इस विशेष धर्मसभा में पूज्य माताजी की प्रेरणा से 4-6 अक्टूबर 98 के मध्य जम्बूद्वीप, हस्तिनापुर में आयोजित भगवान ऋषभदेव राष्ट्रीय कुलपति सम्मेलन की 250 पृष्ठीय 'आख्या' का विमोचन किया गया। इसमें सम्मेलन की सम्पूर्ण कार्यवाही तो संकलित है ही, देश के दर्जनों कुलपतियों के आलेखों/ संदेशों में जैन धर्म की प्राचीनता, भगवान ऋषभदेव की देश की विभिन्न संस्कृतियों में सर्वमान्यता, उनकी शिक्षाओं की आवश्यकता, उपादेयता के बारे में व्यक्त उद्गार दिशाबोधक हैं। इसका संपादन डा. अनुपम जैन ने किया है। महोत्सव के उद्घाटन अवसर पर आयोजित ऋषभदेव जैन मेला के मुख्य आकर्षण 8 पेवेलियन, दुकानें एवं झूले आदि थे, जिन्होंने दर्शकों एवं पर्यटकों का मनोरंजन करने के साथ ज्ञान भी प्रदान किया। इनके बारे में विस्तृत रिपोर्ट अगले अंक में प्रकाशित की जायेगी। कन्दकन्द ज्ञानपीठ द्वारा भी जैन साहित्य एवं पत्र-पत्रिका पेवेलियन का संयोजन किया गया था। कार्यक्रम के समापन में दिल्ली के राज्यपाल श्री विजय कपूर मुख्य अतिथि तथा प्रख्यात विधिवेत्ता एवं सांसद श्री लक्ष्मीमल सिंघवी अध्यक्ष के रूप में पधारे। पूज्य गणिनी ज्ञानमती माताजी ने समापन सभा में कहा कि - "यह महोत्सव का अथ है, मैं कभी इति नहीं करती। आप सबको निरन्तर भगवान ऋषभदेव की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार कर धर्म, समाज एवं राष्ट्र की सेवा करनी है, पुण्य का अर्जन करना है। इसमें सब सफल हों, यही मेरा मंगल आशीर्वाद है।' रत्न प्रतिमाओं के अभिषेक के साथ ही इस सप्त दिवसीय आयोजन का समापन एवं वर्ष पर्यन्त चलने वाले कार्यक्रमों का शुभारम्भ हुआ। - डा. अनुपम जैन, प्रचार मंत्री 94 अर्हत् वचन, जनवरी 2000
SR No.526545
Book TitleArhat Vachan 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2000
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy