SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सृष्टि में भी रचे हैं तथा सब लोक लोकान्तरों में बनाये गये हैं, भेद किंचिन्मात्र भी नहीं होता । हमारी पृथ्वी के अलावा अन्य ग्रहों में जीवन की संभावनाओं के बारे में समय - समय पर अटकलें लगाई जाती रही हैं, पर अभी तक यह एक रहस्य ही बना हुआ है, वैज्ञानिकों विशाल दूरबीनों तथा अन्य यंत्रों की सहायता से अधिकांश आकाश छान डाला, पर उन्हें अभी तक मानव का अस्तित्व अन्यत्र प्रकाश में नहीं आया। - हमारी पृथ्वी का ब्रह्माण्ड से तुलनात्मक अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि यह हमारे सौरमंडल का एक छोटा सा भाग है, जैसे घड़े में पानी की बूंद के बराबर । यह नौ ग्रह व उपग्रहों वाला सौरमंडल हमारी गैलेक्सी 'मंदाकिनी में उसके केन्द्र से 25000 प्रकाशवर्ष दूर रहते हुए चारों ओर 220 किलोमीटर प्रति सैकन्ड की गति से चक्कर लगा रहा है और लगभग 27,00,00,000 ( सत्ताइस करोड़) वर्षों में एक चक्कर लगा पाता है, इस तश्तरी जैसे आकार की गैलेक्सी का व्यास लगभग एक लाख प्रकाशवर्ष है, इसमें हमारे जैसे कई सौर मंडल होने की संभावना है, ब्रह्माण्ड में ऐसी गैलेक्सीज की संख्या लाखों में है, और नई नई गैलेक्सीज का पता लगता जा रहा है, हमारे सबसे निकट वाली गैलेक्सी 'एन्ड्रोमिडा' हमसें 23 लाख प्रकाश वर्ष दूर है, वैज्ञानिकों की भाषा में ये गैलेक्सियाँ द्वीपों के समान हैं ( Islands of Universe) और दूर से ऐसी लगती है मानों एक ही तारा चमक रहा हो, इस प्रकार यह आकाश अनंत द्वीप समूहों से भरा हुआ हैं, पर यह एक रहस्य बना हुआ है कि आखिर इन सबके आगे क्या है और इसकी सीमा कहाँ तक है ? उपर्युक्त वर्णन से इस ब्रह्माण्ड की विशालता का पता चलता है तथा तुलनात्मक दृष्टि से हमारी पृथ्वी का तो इसमें एक रजकण के बराबर भी अस्तित्व नहीं है, फिर भी हम अपनी सीमित क्षमताओं, उपलब्धियों, साधनों, बुद्धिकौशल, संख्याबल, इतिहास, मान्यताओं एवं सिद्धांतों आदि का गर्व करके फूले नहीं समाते और दंभ के साथ यदि हम कहें कि हमारे जैसे मानव कहीं और नहीं हैं, तो यह केवल हमारी अज्ञानता ही होगी। हमारे सूर्य का व्यास 30 लाख किलोमीटर के लगभग है, वहाँ से प्रतिमिनट 5.43 X 1027 कैलोरीज ऊर्जा निकल रही है, जो 37 x 1027 वाट के बराबर है, सूर्य की सतह का तापक्रम 6000° से. है, वहाँ हाइड्रोजन व हीलियम गैसें मुख्यत: हैं, सूर्य से हमारे जीवन का गहरा संबंध है, वह जीवनदाता है। वहाँ तो जीवन का भंडार होना चाहिए पर हाँ, हमारे जैसा मानव वहाँ नहीं हो सकता । जैन शास्त्रों के अनुसार अग्नि में भी जीव होते हैं, उन्हें अग्निकायिक जीव कहते हैं, तथा तारामंडल एवं ग्रह नक्षत्रों में ज्योतिष जाति के देव रहते हैं, मनुष्य लोक में जम्बूद्वीप, लवण समुद्र, घातकीखण्ड, कालोदधि एवं पुष्करार्ध शामिल हैं। "जम्बूद्वीप लवणोद्वादय: शुभनामानो द्वीप समुद्राः । भरतस्य विष्कम्भो जम्बूद्वीपपस्यनवति शत भागः ॥ द्विर्धातकी खण्डे | पुष्करार्द्धच ॥ प्राङ्मानुषोत्तरान्मनुष्याः || आर्याम्लेच्छाश्च ॥ भरतैरावत- विदेहाः कर्मभूमयोऽन्यत्र देवकुरूत्तर कुरूभ्यः ॥" तत्वार्थ सूत्र तृतीयोध्याय । "व्यंतराकिंन्नर किंपुरुष महोरग गंधर्व यक्ष राक्षस भूत पिशाचाः ॥ ज्योतिष्काः सूर्या, चन्द्रमसौ ग्रह नक्षत्र प्रकीर्णक तारकाश्च ॥ मेरूप्रदक्षिणा: नित्य गतयो नृलोके" | " भवनेषु च ॥ व्यन्तराणां च ॥ ज्योतिष्काणां च ॥ लोकान्तिनामष्टौ सागरोपमणि च सर्वेषाम् ॥" 48 तत्वार्थ सूत्र चतुर्थोऽध्याय । अर्हत् वचन; जनवरी 2000
SR No.526545
Book TitleArhat Vachan 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2000
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy