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________________ वर्ष - 12, अंक - 1, जनवरी 2000, 17 - 20 अर्हत् वचन (कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर जैन धर्म पर डाक टिकटें सुधीर जैन* अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य का मार्ग दर्शाने वाला जैन धर्म विश्व का एक प्राचीन धर्म है। इस धर्म का अपना इतिहास और संस्कृति है। जैन धर्म के अनुयायी इसे अनादि अनन्त धर्म मानते हैं। अनादि अनन्त का अर्थ है जिसका न तो कोई प्रारम्भ हो और न कोई अन्त हो। जैन धर्मावलम्बियों की ऐसी मान्यता है कि प्रत्येक काल में चौबीस तीर्थकर होते हैं जो जैन धर्म का प्रचार - प्रसार करते हैं। वर्तमान काल में भगवान ऋषभदेव. पहले तथा भगवान महावीर चौबीसवें तीर्थकर थे। इनमें से पहले ऋषभदेव ने कैलाश पर्वत (हिमालय की एक चोटी) से, बारहवें वासुपूज्य ने चम्पापुर (बिहार) से, बाईसवें नेमिनाथ ने गिरनार (गुजरात) से, भगवान महावीर ने पावापुरी से तथा शेष बीस तीर्थकरों ने सम्मेदशिखर (बिहार) से मोक्ष प्राप्त किया। भारतीय डाक विभाग द्वारा जैन धर्म से संबंधित अनेक डाक टिकट जारी किये गये हैं। जर्मनी द्वारा भी जैन धर्म संबंधी एक टिकट जारी किया जा चुका है। जैन धर्म से संबंधित डाक टिकटों का विस्तृत विवरण यहाँ प्रस्तुत है। सबसे पहले देखें विदेश में जारी जैन धर्म संबंधी डाक टिकट। पूर्व जर्मनी द्वारा 23.8.79 को भारतीय मिनियेचर पेंटिंग्स पर चार टिकटों का बहुत ही सुन्दर सेट जारी किया गया था। इनमें से एक टिकट (क्रमांक एक) पर श्वेताम्बर आम्नाय की भगवान महावीर की रंगीन पेंटिंग अंकित है। पंद्रहवीं/ सोलहवीं शताब्दी की यह आकर्षक पेंटिंग बर्लिन संग्रहालय में संग्रहीत है। भारत में जारी जैन धर्म से संबंधित डाक टिकटों को तीन भागों में बाँटा जा सकता है। पहली जैन मंदिरों पर डाक टिकटें, दूसरी जैन मूर्तियों पर डाक टिकटें और तीसरी जैन महापुरुषों पर डाक टिकटें। सबसे पहले दर्शन करें जैन मन्दिरों के। कलकत्ता में स्थित ऐतिहासिक बेलगछिया जैन मंदिर पहला जैन विषय था जिस पर 6 मई 1935 को सवा आना मूल्य की एक दोरंगी टिकट (क्रमांक दो) जारी हई थी। इस टिकट पर किंग जार्ज पंचम के साथ बेलगछिया के भगवान शीतलनाथ का चित्र छपा था। स्वतंत्रता के पश्चात् 15 अगस्त 1949 को भारत सरकार ने पुरातत्व विषय पर प्रथम नियत डाक टिकट माला जारी की थी। सोलह टिकटों की इस श्रृंखला में दो टिकटें जैन धर्म से संबंधित थीं। पंद्रह रूपये मूल्य की टिकट (क्रमांक तीन) परं गुजरात के सुप्रसिद्ध तीर्थ पालीताना में स्थित शत्रुजय जैन मंदिर का चित्र अंकित है। इसी श्रृंखला की एक रूपये मूल्य की डाक टिकट (क्रमांक चार) पर चित्तौड़गढ़ स्थित विजयस्तंभ अंकित जैन धर्म के अंतिम तीर्थकर भगवान महावीर का 2500 वाँ निर्वाण महोत्सव सन 1974 - 75 में बहुत धूम - धाम से मनाया गया था। इस उपलक्ष्य में भारत सरकार द्वारा दीपावली के दिन 17 नवम्बर 1974 को एक डाक टिकट (क्रमांक पाँच) जारी किया गया था। इस टिकट पर भगवान महावीर के निर्वाण स्थल पावापुर (बिहार) में स्थित जल * सुषमा प्रेस, सतना-485 001 (म.प्र.) फोन : 07672 - 23565
SR No.526545
Book TitleArhat Vachan 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2000
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size24 MB
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