________________
बढ़ता है। यही कारण है कि आज रेल, टेलीफोन, हवाई जहाज, मोटर, कम्प्यूटर, बिजली आदि ऐसे कई आविष्कार जन जन तक व घर-घर तक पहुँच सके हैं और इनका लाभ वे कट्टर धर्मान्ध व्यक्ति भी उठा रहे हैं, जो विज्ञान और वैज्ञानिकों को प्रायः कोसते रहते हैं। आज एक धार्मिक गुरु की धर्मसभा में जबतक माइक्रोफोन, स्पीकर्स, पंखे, वीडियो, टी.वी., टेपरिकार्डर, केमरे नहीं होते तब तक उन्हें चैन ही नहीं मिलता, क्या ये विज्ञान की देन नहीं है ?
आर्किमिडीस, आइन्सटाइन, फ्रैंकलिन, लेवोईजियर, जगदीश बोस, फैराडे, न्यूटन, सुकरात, गैलिलियो आदि वैज्ञानिक उच्च कोटि के दार्शनिक हुए हैं। उनके चित्रों को देखने से वे ऋषि जैसे लगते हैं, इनका जीवन बड़ा सीधा सीधा, मायाचार से रहित रहा है। अनुसंधान करते समय अपने खाने पीने सोने की भी सुध बुध खो देते थे, अपनी प्रयोगशाला के सिवा कोई विशेष परिग्रह इनके पास नहीं होता था, आईन्सटीन तो कपड़े धोने, नहाने और हजामत बनाने, तीनों के लिये एक ही साबुन का प्रयोग करता था।
आज जब एक वैज्ञानिक अपनी खोज के पश्चात उसमें कोई भी सुधार सत्य के आधार पर करने को तैयार रहता है, वहीं कट्टरपंथी लोग केवल पौराणिक शास्त्र या तथाकथित आगम के सिद्धान्तों में सुधार करने को तैयार नहीं, चाहे वे जैनागम हो, कुरान, वेद, बाइबल, कुछ भी हो। इसका कारण यह है कि खोज में निरन्तरता (Continuity) तो है नहीं, जो कुछ भी पास में है उसमें भी कोई विकास करने की इच्छा नहीं है, तो नई पीढ़ी को उससे लगाव कैसे हो ? यही तो कारण है कि कट्टरवादी लोग अब भी पृथ्वी को चपटा मानते हैं, सूर्य को पास में और चन्द्रमा को सूर्य से ऊपर मानते हैं, पृथ्वी को स्थिर मानते हैं, ग्रहण होने का कारण राहू और केतु राक्षसों का डसना मानते हैं । ।
अब भी समय है कि धार्मिक बुद्धिजीवी तथा वैज्ञानिक परस्पर बैठकर आपस में तालमेल कर एक दूसरे की विशेषताएँ स्वीकार कर विकास की दिशा में आगे बढ़ें और विश्व को नफरत, आतंकवाद व गरीबी से दूर करने में सहयोग देवें, वरना धर्म तो पीछे रह जायेगा और विज्ञान आगे बढ़ता जायेगा ।
28.9.99
आज मैंने शोध संस्थान की लायब्रेरी का विस्तृत अवलोकन किया। पुस्तकों का संग्रह देखकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई। सभी पुस्तकों का हिन्दी में कम्प्यूटराइज्ड केटलाग भी तैयार किया गया है जो एक अनुपम प्रयोग है, इससे पुस्तकों को आसानी से खोजा जा सकता है। पुस्तकालय में जैन धर्म की आधुनिक एवं नवीनतम रचनाएँ उपलब्ध हैं जो निश्चित ही इसमें रुचि रखने वाले के लिये बहुत उपयोगी होगा। आशा है कि पुस्तकालय में पुस्तकों की निरन्तर वृद्धि होती रहेगी।
7.8.99
■ हेमन्तकुमार जैन
729, किसान मार्ग, बरकतनगर, जयपुर 302015
888
■ डॉ. देवेन्द्र सिंघई आयुक्त - पिछड़ा वर्ग कल्याण, म.प्र. शासन, सम्प्रति : निदेशक - पर्यटन एवं आवास प्रबन्धन संस्थान,
ग्वालियर (म.प्र.)
अर्हत् वचन, अक्टूबर 99