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________________ S 5. मुनि श्री वर्द्धमानसागर स्मृति श्रुत संवर्द्धन पुरस्कार- 99 (कुल प्रविष्टियाँ 20) जैन धर्म / दर्शन के किसी भी क्षेत्र में लिखी गई मौलिक, शोधपूर्ण, अप्रकाशित कृति पर डॉ. कस्तूरचन्द्र 'सुमन', प्रभारी - जैन विद्या संस्थान, श्रीमहावीरजी (राज.) पुरस्कार समर्पण समारोह 'डॉ. हीरालाल जैन - व्यक्तित्व एवं कृतित्व, राष्ट्रीय संगोष्ठी' के मध्य जैन भवन , केसरगंज, अजमेर में लगभग 50 विद्वानों एवं शताधिक श्रावकों की गरिमामय उपस्थिति में आयोजित किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री माननीय श्री मुरलीमनोहरजी जोशी का आना निश्चित था किन्तु अपरिहार्य कारणों से उनकी यात्रा स्थगित होने से उनके प्रतिनिधि के रूप में लोकप्रिय क्षेत्रीय सांसद श्री रासासिंह रावत पधारे। अपने संबोधन में माननीय श्री रावतजी ने कहा कि सरस्वती के इन 5 वरद् पुत्रों का सम्मान करते हुए वे स्वयं अभिभूत हैं। 'सत्यं शिवं सुन्दरम्' को अपना आदर्श मनाने वाले पुरस्कृत सभी विद्वानों को आपने अपनी ओर से बधाई दी। कार्यक्रम का शुभारम्भ बगलाल ब्र. अनिता बहन के मंगलाचरण से हुआ। श्रुत संवर्द्धन संस्थान के अध्यक्ष डॉ. नलिन के. शास्त्री ने स्वागत भाषण में कहा कि श्रुत परम्परा को विलुप्त होने से बचाने के लिये परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी, आचार्य श्री सुमतिसागरजी एवं उपाध्याय श्री ज्ञानसागरजी की चरण रज से पवित्र अजमेर में जन प्रतिनिधियों एवं डॉ. हीरालाल जैन की जन्म शताब्दी में आयोजित संगोष्ठी में पधारे विद्वत्जनों की श्रुत संवर्द्धन संस्थान के अध्यक्ष डॉ. नलिन के. शास्त्री (बोधगया) का सम्मान उपस्थिति आज के कार्यक्रम को ऐतिहासिक बना रही है। इसके लिये सौजन्य प्रदाता एवं जिन्होंने पुण्यार्जन किया उनके प्रति वे कृतज्ञ हैं। यह संस्थान शोध पत्रों के प्रकाशन, शोधकर्ताओं की सुविधा व्यवस्था एवं शोध ग्रन्थालय के स्थापना हेतु जो योजना बना रही है उसमें जननायक का समर्थन व समाज का मार्गदर्शन मिले तो उन्हें मूर्त रूप देने का विचार किया जायेगा। इसके बाद पुरस्कार निर्णायक मंडल के प्राचार्य नरेन्द्र प्रकाश जैन (सम्पादक - जैन गजट साप्ताहिक) ने चयन प्रक्रिया के विषय में बतलाते हुए कहा कि 123 विद्वानों के आवेदनों में से चयन समिति ने विधिपूर्वक सर्वानमति से विद्वानों का चयन किया। उन्होंने कहा कि समाज ज बहती हुई नदी है जिसके एक किनारे पर विद्वान है और दूसरे किनारे पर साधु हैं, किनारे टूटने पर विनाश का कारण बनता है। आज विद्वान कम होते जा रहे है और साधुओं की संख्या बढ़ रही है। संस्कृति और भारतीय मूल्यों को जीवित रखने को साधु एवं विद्वान दोनों के सहयोग की आवश्यकता है और इस संबंध में उपाध्यायश्री ने जिस तरह विद्वानों को गोष्ठियों आदि द्वारा जो स्वर्णिम गौरव दिलाया वे उनके प्रति नममस्तक है। पुरस्कार योजना के संयोजक डॉ. अनुपम जैन, इन्दौर संयोजक ने बतलाया कि 1997 तक 6, 1998 में 5 और आज 1999 में 5 विद्वानों को, इस प्रकार कुल 16 विद्वानों को इस योजना के अन्तर्गत पुरस्कृत किया जा चुका पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं ने अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए संस्थान, समिति को साधुवाद एवं अर्हत् वचन, अक्टूबर 99
SR No.526544
Book TitleArhat Vachan 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size5 MB
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